-कोड़ा पर कार्रवाई का दिख रहा असर -कोल्हान में नामांकन के दौरान किसी ने नहीं किया शक्ति प्रदर्शन-शहर से गांव तक न बाजे का शोर और न दिख रहे पोस्टर-दहशत में खो सा गया 'जीतेगा भई जीतेगा' का नारा------------------कामन इंट्रो : यह वही चुनाव क्षेत्र है जहां पिछली बार हुए चुनावों के दौरान धूम-धड़ाके, नारेबाजी व शोरगुल का माहौल सिर चढ़कर बोलता था। इस बार न तो वो चुनावी हलचल दिख रही है और न ही वो रौनक। पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा व उनके कथित सहयोगियों के घोटाले के आरोपों में फंसने के बाद निगरानी महकमे द्वारा शिकंजा कसना और लगातार नजर रखना इसका कारण बताया जा रहा है। कोल्हान के इस चुनावी माहौल पर जमीनी हकीकत बयां करती चक्रधरपुर से लौटकर अशोक कुमार सिंह की रिपोर्ट-------------------स्टोरी : चौथे चरण के मतदान में मात्र 14 दिन शेष है, पर मंझगांव, मनोहरपुर व चक्रधरपुर में कहीं भी किसी पार्टी का न झंडा दिख रहा है, न ही बैनर व होर्डिंग। इसका कारण पूर्व मुख्यमंत्री व उनके कथित साथियों पर निगरानी महकमे की टेढ़ी नजर का होना बताया जा रहा है।कोल्हान में सभी चरणों के लिए नामांकन की प्रक्रिया करीब-करीब पूरी होने वाली है। लेकिन किसी पार्टी ने शक्ति प्रदर्शन नहीं किया। इसके पूर्व हुए चुनावों में प्रत्याशियों के नोमिनेशन के दौरान ढोल-नगाड़े, वाहनों के काफिले व हजारों लोग होते थे। पहले आयकर विभाग की दबिश, तो अब चुनाव आयोग का डंडा। दोनों ही महकमे की तिरछी नजर ने यहां के चुनावी स्वयंबर की फिजा ही बदल दी है। न बाजा, न शोर। न पोस्टर, न बैनर। हालात यह हैं कि पम्पलेट व बिल्लों के लिए गांवों में गाडि़यों के पीछे भागने वाले बच्चे भी निराश है। दिन भर प्रचार वाहनों में बैठ जीतेगा भाई जीतेगा.. नारे लगाने वालों के गले भी साफ नहीं हो पा रहे हैं। शाम होते ही गांवों में लड़के अपने मन से ही किसी का झंडा ले जुलूस निकाल चुनाव-चुनाव खेलने लगते थे। इस बार ऐसा पहली बार दिखाई पड़ रहा है कि चुनावी माहौल कहीं नहीं है। न शहर में, न गांव में। एक तरह से पूरी तरह उदासीन माहौल है। आयकर विभाग की दहशत चुनाव में भाग लिये लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। साथ ही चुनाव आयोग के पर्यवेक्षकों की पैनी नजर प्रत्याशियों की हर गतिविधियों पर है। जरा भी लीक छोड़ी नहीं कि मुकदमा कायम। दहशत इतनी कि आदेश के बावजूद भी घरों पर झंडे नहीं लगाये जा रहे हैं। कहीं से भी नहीं लग रहा है कि विधानसभा का चुनाव 12 व 18 दिसंबर को होने वाला है। न लाउडस्पीकरों का शोर है, न कहीं कैसेट बज रहे हैं। बैनर भी शहर में कहीं नहीं दिखाई पड़ रहे हैं। दीवार लेखन पर तो जैसे पूर्णत: प्रतिबंध ही लगा है। दहशत इतनी है कि झारखंड की राजनीति में पकड़ रखने वाले राजनेता नामांकन कर चले आ रहे हैं और किसी को पता भी नहीं चल रहा है। स्थानीय लोग भी पिछले चुनावों को याद कर कह रहे हैं कि इस बार चुनाव का रंग काफी बदला-बदला सा है। कोल्हान में ठंड बढ़ी है लेकिन सियासत की लड़ाई अंदर ही अंदर गर्मी का अहसास दिला रही है। कमोबेश सभी पार्टी के नेता हाईटेक चुनाव प्रचार का दावा कर रहे हैं। मगर अभी तक इसका अक्स कम ही देखने को मिल रहा है। जो कुछ जनसंपर्क या प्रचार किया जा रहा है उसमें इस बात का खास खयाल रखा जा रहा है कि कहीं निगरानी की टेढ़ी नजर न पड़ जाय। मतदाताओं का कहना है कि पार्टी के लोग वोटरों के डायरेक्ट 'टच' में हैं। चुनावी सरगर्मी सड़क से उतर कर गांवों की ओर रुख कर गयी है। हां, पार्टियों के कार्यालय जरूर सभी जगह खुल गये हैं। चौथे चरण के लिए मंझगांव, मनोहरपुर व चक्रधरपुर में 12 दिसंबर को वोट डाले जाने हैं। उसके बाद चाईबासा, जगन्नाथपुर, सरायकेला व खरसांवा में 18 दिसंबर को पोलिंग होगी।
रविवार, 29 नवंबर 2009
निगरानी की नजर बचा चल रहे 'नजराने'
-कोड़ा पर कार्रवाई का दिख रहा असर -कोल्हान में नामांकन के दौरान किसी ने नहीं किया शक्ति प्रदर्शन-शहर से गांव तक न बाजे का शोर और न दिख रहे पोस्टर-दहशत में खो सा गया 'जीतेगा भई जीतेगा' का नारा------------------कामन इंट्रो : यह वही चुनाव क्षेत्र है जहां पिछली बार हुए चुनावों के दौरान धूम-धड़ाके, नारेबाजी व शोरगुल का माहौल सिर चढ़कर बोलता था। इस बार न तो वो चुनावी हलचल दिख रही है और न ही वो रौनक। पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा व उनके कथित सहयोगियों के घोटाले के आरोपों में फंसने के बाद निगरानी महकमे द्वारा शिकंजा कसना और लगातार नजर रखना इसका कारण बताया जा रहा है। कोल्हान के इस चुनावी माहौल पर जमीनी हकीकत बयां करती चक्रधरपुर से लौटकर अशोक कुमार सिंह की रिपोर्ट-------------------स्टोरी : चौथे चरण के मतदान में मात्र 14 दिन शेष है, पर मंझगांव, मनोहरपुर व चक्रधरपुर में कहीं भी किसी पार्टी का न झंडा दिख रहा है, न ही बैनर व होर्डिंग। इसका कारण पूर्व मुख्यमंत्री व उनके कथित साथियों पर निगरानी महकमे की टेढ़ी नजर का होना बताया जा रहा है।कोल्हान में सभी चरणों के लिए नामांकन की प्रक्रिया करीब-करीब पूरी होने वाली है। लेकिन किसी पार्टी ने शक्ति प्रदर्शन नहीं किया। इसके पूर्व हुए चुनावों में प्रत्याशियों के नोमिनेशन के दौरान ढोल-नगाड़े, वाहनों के काफिले व हजारों लोग होते थे। पहले आयकर विभाग की दबिश, तो अब चुनाव आयोग का डंडा। दोनों ही महकमे की तिरछी नजर ने यहां के चुनावी स्वयंबर की फिजा ही बदल दी है। न बाजा, न शोर। न पोस्टर, न बैनर। हालात यह हैं कि पम्पलेट व बिल्लों के लिए गांवों में गाडि़यों के पीछे भागने वाले बच्चे भी निराश है। दिन भर प्रचार वाहनों में बैठ जीतेगा भाई जीतेगा.. नारे लगाने वालों के गले भी साफ नहीं हो पा रहे हैं। शाम होते ही गांवों में लड़के अपने मन से ही किसी का झंडा ले जुलूस निकाल चुनाव-चुनाव खेलने लगते थे। इस बार ऐसा पहली बार दिखाई पड़ रहा है कि चुनावी माहौल कहीं नहीं है। न शहर में, न गांव में। एक तरह से पूरी तरह उदासीन माहौल है। आयकर विभाग की दहशत चुनाव में भाग लिये लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। साथ ही चुनाव आयोग के पर्यवेक्षकों की पैनी नजर प्रत्याशियों की हर गतिविधियों पर है। जरा भी लीक छोड़ी नहीं कि मुकदमा कायम। दहशत इतनी कि आदेश के बावजूद भी घरों पर झंडे नहीं लगाये जा रहे हैं। कहीं से भी नहीं लग रहा है कि विधानसभा का चुनाव 12 व 18 दिसंबर को होने वाला है। न लाउडस्पीकरों का शोर है, न कहीं कैसेट बज रहे हैं। बैनर भी शहर में कहीं नहीं दिखाई पड़ रहे हैं। दीवार लेखन पर तो जैसे पूर्णत: प्रतिबंध ही लगा है। दहशत इतनी है कि झारखंड की राजनीति में पकड़ रखने वाले राजनेता नामांकन कर चले आ रहे हैं और किसी को पता भी नहीं चल रहा है। स्थानीय लोग भी पिछले चुनावों को याद कर कह रहे हैं कि इस बार चुनाव का रंग काफी बदला-बदला सा है। कोल्हान में ठंड बढ़ी है लेकिन सियासत की लड़ाई अंदर ही अंदर गर्मी का अहसास दिला रही है। कमोबेश सभी पार्टी के नेता हाईटेक चुनाव प्रचार का दावा कर रहे हैं। मगर अभी तक इसका अक्स कम ही देखने को मिल रहा है। जो कुछ जनसंपर्क या प्रचार किया जा रहा है उसमें इस बात का खास खयाल रखा जा रहा है कि कहीं निगरानी की टेढ़ी नजर न पड़ जाय। मतदाताओं का कहना है कि पार्टी के लोग वोटरों के डायरेक्ट 'टच' में हैं। चुनावी सरगर्मी सड़क से उतर कर गांवों की ओर रुख कर गयी है। हां, पार्टियों के कार्यालय जरूर सभी जगह खुल गये हैं। चौथे चरण के लिए मंझगांव, मनोहरपुर व चक्रधरपुर में 12 दिसंबर को वोट डाले जाने हैं। उसके बाद चाईबासा, जगन्नाथपुर, सरायकेला व खरसांवा में 18 दिसंबर को पोलिंग होगी।
शुक्रवार, 27 नवंबर 2009
हैलो चुनाव आयोग : नहीं मिल रहा सूची में नाम
-परिचय पत्र नहीं होने से लौटाये गये वोटर
अशोक सिंह जमशेदपुर : लोकतंत्र के महापर्व में कुछ लोग भाग लेने से वंचित रह गये। जमशेदपुर पश्चिम विधान सभा अन्तर्गत मिसेज केएमपीएम इंटर कालेज स्थित 136 नंबर बूथ पर मतदान करने आये बबन सिंह व विनीता सिंह उस समय आश्चर्य में पड़ गये जब उनके नाम मतदाता सूची से गायब मिले। आनन-फानन में बबन सिंह ने अखबारों में छपे चुनाव आयोग के नंबर को डायल कर दिया। बताया कि वे पिछले कई चुनावों से मतदान करते आये हैं लेकिन इसबार उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया है। पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि आयोग ने कार्रवाई का आश्वासन दिया है। हालांकि काफी खोजबीन के बाद विनीता सिंह का नाम मिल गया। उधर वोटिंग के दौरान कई मतदान कर्मियों को माकूल परिचय पत्र नहीं होने के कारण वापस लौटना पड़ा। न्यू रानीकुदर निवासी संजीत कुमार, काली पूजा क्लब स्थित मतदान केन्द्र पर वोट डालने पहुंचे थे मगर उनके पास चुनाव आयोग द्वारा जारी पहचान पत्र नहीं था। वहीं ग्वालपाड़ा निवासी त्रिभुवन चक्रवर्ती के पास सिर्फ करीम सिटी कालेज का पहचान पत्र था। इस वजह से वे मतदान करने से वंचित रह गये। गौरतलब हो कि चुनाव आयोग ने नरेगा कार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, पैन कार्ड आदि को पहचान पत्र का विकल्प दिया था। इसके बावजूद कई मतदाताओं के पास उपयुक्त पहचान पत्र नहीं थे।
'तू-तू, मैं-मैं' में छूट गया पहचानापत्रजमाशेदापुर
: मतदान करने जाने के लिए सजने-संवरने में तू-तू, मैं-मैं क्या हुई, एक दंपति का पहचान पत्र ही घर में छूट गया। बिष्टुपुर जुस्को स्कूल स्थित बूथ पर पहुंचने के बाद जब मतदाता पहचान पत्र की खोज हुई तो वहां भी गुपचुप तरीके से फिर तू तू मैं मैं हुई। अंत में दंपति पहचान पत्र लाने के लिए घर लौट गये।
अशोक सिंह जमशेदपुर : लोकतंत्र के महापर्व में कुछ लोग भाग लेने से वंचित रह गये। जमशेदपुर पश्चिम विधान सभा अन्तर्गत मिसेज केएमपीएम इंटर कालेज स्थित 136 नंबर बूथ पर मतदान करने आये बबन सिंह व विनीता सिंह उस समय आश्चर्य में पड़ गये जब उनके नाम मतदाता सूची से गायब मिले। आनन-फानन में बबन सिंह ने अखबारों में छपे चुनाव आयोग के नंबर को डायल कर दिया। बताया कि वे पिछले कई चुनावों से मतदान करते आये हैं लेकिन इसबार उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया है। पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि आयोग ने कार्रवाई का आश्वासन दिया है। हालांकि काफी खोजबीन के बाद विनीता सिंह का नाम मिल गया। उधर वोटिंग के दौरान कई मतदान कर्मियों को माकूल परिचय पत्र नहीं होने के कारण वापस लौटना पड़ा। न्यू रानीकुदर निवासी संजीत कुमार, काली पूजा क्लब स्थित मतदान केन्द्र पर वोट डालने पहुंचे थे मगर उनके पास चुनाव आयोग द्वारा जारी पहचान पत्र नहीं था। वहीं ग्वालपाड़ा निवासी त्रिभुवन चक्रवर्ती के पास सिर्फ करीम सिटी कालेज का पहचान पत्र था। इस वजह से वे मतदान करने से वंचित रह गये। गौरतलब हो कि चुनाव आयोग ने नरेगा कार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, पैन कार्ड आदि को पहचान पत्र का विकल्प दिया था। इसके बावजूद कई मतदाताओं के पास उपयुक्त पहचान पत्र नहीं थे।
'तू-तू, मैं-मैं' में छूट गया पहचानापत्रजमाशेदापुर
: मतदान करने जाने के लिए सजने-संवरने में तू-तू, मैं-मैं क्या हुई, एक दंपति का पहचान पत्र ही घर में छूट गया। बिष्टुपुर जुस्को स्कूल स्थित बूथ पर पहुंचने के बाद जब मतदाता पहचान पत्र की खोज हुई तो वहां भी गुपचुप तरीके से फिर तू तू मैं मैं हुई। अंत में दंपति पहचान पत्र लाने के लिए घर लौट गये।
मंगलवार, 24 नवंबर 2009
दैनिक जागरण के जनजागरण अभियान लाया रंग, बही बदलाव की बयार
-'परिवर्तन लाने को निष्पक्ष मतदान जरूरी'-
अशोक सिंह, जमशेदपुर : दैनिक जागरण का जनजागरण अभियान सराहनीय प्रयास है परंतु जब राजनैतिक पार्टियां, व्यक्ति विशेष, पार्टी विशेष व समूह विशेष की जागीर बन गयी हो तो समाज में किसी तरह की आशा करना व्यर्थ है। यदि समाज में परिवर्तन लाना है तो निष्पक्ष मतदान जरूरी है। ये बातें शहर में मतदान के लिए अलख जगाने निकले दैनिक जागरण के जनजागरण अभियान के दौरान प्रबुद्ध लोगों ने कहीं। हमारा चुनाव लायेगा बदलाव, अब नहीं तो कब, हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा, जैसे नारों के साथ जनजागरण रथ ने चुनाव के प्रति लोगों में जागरूकता लाई। डिमना रोड स्थित कार्यालय से निकला दैनिक जागरण अभियान रथ शहर के विभिन्न इलाकों में घूमता रहा। इस दौरान शहरवासियों के बीच यह संदेश देने का प्रयास किया गया कि चुनाव में सुधार जरूरी है ..लोकतंत्र का परिमार्जन जरूरी है और यह काम एक-एक मतदाता के जागरूक हुये बिना नहीं हो सकता है। सोमवार को जनजागरण अभियान रथ सुबह 11 बजे डीसी आवास के समक्ष पहुंचा तो लोगों ने इस अभियान को हाथों-हाथ लिया। लोगों ने नुक्कड़ नाटक देखने बाद दांतों तले अंगुली दबा ली। स्कूल से अपने बच्चों को लेकर लौट रही महिलाओं के समूह ने भी नाटक को बड़े ही गौर से देखा। कौतूहल का विषय यह था कि बच्चे बीच-बीच में अपने मम्मियों से सीधे सवाल दाग रहे थे। मां यह क्या हो रहा है। मां झिझक रही है और बच्चे के सवालों के जबाव शार्ट-कट में देकर फिर कार्यक्रम के तरफ मुखातिब हो रही थी। शत प्रतिशत महिलाओं ने माना कि मतदाताओं के लिए उनसे सीधे संवाद के लिए दैनिक जागरण का पहल जरूरी था। शहर के पॉश इलाके के लोगों को जगाने के बाद जनजागरण अभियान रथ अति व्यस्त माने जाने वाले जगह हावड़ा ब्रिज पहुंचा। यहां दैनिक जागरण का अभियान रथ ठीक चौराहे पर लगा और रंग कर्मियों की आवाज सुन लोग रुकने-ठहरने लगे थे। इस प्रस्तुति के साथ ही जुटे लोगों से बातचीत भी जारी रही और लोगों ने खुल कर अपनी बातें रखीं। सड़क के बीच बने सुंदर डिवाइडर पर खड़े होकर देख रहे लोगों ने कहा कि इस बार बदलाव की बयार बहेगी। विनोद पोद्दार व नयन प्रमाणिक तो काफी गुस्से में दिखे। इनका गुस्सा लाजिमी था। कारण कि वोट के बदले नोट जैसी समाज की बुराइयां लोगों के समक्ष पेश हो रही थी। अमरेन्द्र सिंह ने दैनिक जागरण के प्रयास की सराहना की। उन्होंने कहा कि वह वोट जरूर देंगे और अपनी समझ का इस्तेमाल भी करेंगे। चुनाव प्रचार का शोर थमने से कुछ देर पहले तक जानजागरण अभियान रथ गोलमुरी पहुंचा तो लोगों और राजनीतिक पार्टियों में धीरे-धीरे खामोशी आ रही थी। अंत में लोगों का कहना था कि दैनिक जागरण इतनी बड़ी जनसहभागिता के बाद लोगों के वजूद से जुड़ी एक जरूरी व एक जिंदा बहस छेड़ गया है। यदि इस पर अमल हुआ तो इसका सुखद परिणाम आने वाले दिनों में होगा।
सोमवार, 23 नवंबर 2009
शुक्रवार, 20 नवंबर 2009
गुरुवार, 19 नवंबर 2009
मुद्दे नहीं, व्यक्तित्व पर होगी बात
-पक्ष व विपक्ष के नेता होंगे कटघरे में-जनप्रतिनिधियों से सवाल पूछने के मूड में हैं छात्राएं
अशोक सिंह, जमशेदपुर : जमशेदपुर पूर्व में मुद्दे तो बहुत हैं पर जीत या हार को गढ़ने की ताकत किसी में नहीं है। यहां व्यक्ति विशेष की अहमियत ही चुनाव में जीत या हार का कारण बनेगा। यानी जिसका जितना संपर्क उसे उतने ही समर्थन की गुंजाइश। जमशेदपुर पूर्वी विधान सभा क्षेत्र की छात्राओं के मन में सबसे बड़ा सवाल इस क्षेत्र में उच्च शिक्षा के लिए एक भी कालेज का नहीं होना है। इस क्षेत्र में उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य व पेयजल की सुविधा काफी बदतर स्थिति में है। इस क्षेत्र में इंटर स्तर के कालेज तो हैं लेकिन कई विषयों के शिक्षक नहीं हैं। पुस्तकालय कंगाल है और प्रयोगशाला बदहाल। अंतिम छोर के इलाकों में प्राइमरी शिक्षा का हाल भी बेहाल है।आपका जनप्रतिनिधि कैसा हो-इस सवाल के जवाब में गीता सिंह मुंडा कहतीं है जनप्रतिनिधि जनता के प्रति समर्पित व दूरदर्शी होना चाहिए। जिससे लोगों का जीवन सुगम व सुखमय हो। शिक्षिका रंजना भारती कहती हैं कि आने वाला कल चुनौतियों भरा होगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्र के विकास में परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। परिवार ठीक रहेगा तो समाज ठीक रहेगा। समाज ठीक रहेगा तो हम सही जनप्रतिनिधि भी चुन सकते हैं। मुद्दे हर चुनाव में आते-जाते हैं। मगर जनप्रतिनिधि का व्यक्तित्व काफी मायने रखता है।इंटर की छात्रा इंदू कुमारी कहतीं हैं कि हम मुद्दे नहीं व्यक्तित्व के आधार पर अपना जनप्रतिनिधि चुनेंगे। यदि हमारे जनप्रतिनिधि साफ सुथरी छवि वाले हों तो अपनी बात उनके सामने रख सकते हैं। नीता कुमारी का कहना है कि समाज में अराजकता फैलाने वाला जनप्रतिनिधि नहीं चाहिये। वे जिस क्षेत्र में रहती हैं वहां सभी बुनियादी सुविधाएं हैं। मगर वक्त-बेवक्त अराजक स्थितियां परेशान करतीं हैं। जनप्रतिनिधि को इस पर ध्यान देना चाहिये। छात्रा कौशल्या कर्मकार कहती हैं विधान सभा क्षेत्र में विश्वविद्यालय तो दूर महाविद्यालय नहीं है। छात्रा ज्याली मार्डी ने कहा कि महिलाओं को भी मौके मिलें तो बात बनेगी। छात्रा प्रिया कुमारी का कहना है कि जनप्रतिनिधियों को उच्च शिक्षा व्यवस्था की बात करनी चाहिये। कोमली कुमारी का कहना है कि जनप्रतिनिधि जनता व समाज की भलाई की बात करें। इस क्षेत्र में प्रयोगशाला व लाईबे्ररी नहीं है। आश्चर्यजनक यह है कि आजतक इस सुविधा के लिए किसी ने आवाज नहीं उठायी। इन सहित तमाम मुद्दों पर ये युवतियां जनप्रतिनिधयों से सवाल पूछने के मूड में हैं।
अशोक सिंह, जमशेदपुर : जमशेदपुर पूर्व में मुद्दे तो बहुत हैं पर जीत या हार को गढ़ने की ताकत किसी में नहीं है। यहां व्यक्ति विशेष की अहमियत ही चुनाव में जीत या हार का कारण बनेगा। यानी जिसका जितना संपर्क उसे उतने ही समर्थन की गुंजाइश। जमशेदपुर पूर्वी विधान सभा क्षेत्र की छात्राओं के मन में सबसे बड़ा सवाल इस क्षेत्र में उच्च शिक्षा के लिए एक भी कालेज का नहीं होना है। इस क्षेत्र में उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य व पेयजल की सुविधा काफी बदतर स्थिति में है। इस क्षेत्र में इंटर स्तर के कालेज तो हैं लेकिन कई विषयों के शिक्षक नहीं हैं। पुस्तकालय कंगाल है और प्रयोगशाला बदहाल। अंतिम छोर के इलाकों में प्राइमरी शिक्षा का हाल भी बेहाल है।आपका जनप्रतिनिधि कैसा हो-इस सवाल के जवाब में गीता सिंह मुंडा कहतीं है जनप्रतिनिधि जनता के प्रति समर्पित व दूरदर्शी होना चाहिए। जिससे लोगों का जीवन सुगम व सुखमय हो। शिक्षिका रंजना भारती कहती हैं कि आने वाला कल चुनौतियों भरा होगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्र के विकास में परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। परिवार ठीक रहेगा तो समाज ठीक रहेगा। समाज ठीक रहेगा तो हम सही जनप्रतिनिधि भी चुन सकते हैं। मुद्दे हर चुनाव में आते-जाते हैं। मगर जनप्रतिनिधि का व्यक्तित्व काफी मायने रखता है।इंटर की छात्रा इंदू कुमारी कहतीं हैं कि हम मुद्दे नहीं व्यक्तित्व के आधार पर अपना जनप्रतिनिधि चुनेंगे। यदि हमारे जनप्रतिनिधि साफ सुथरी छवि वाले हों तो अपनी बात उनके सामने रख सकते हैं। नीता कुमारी का कहना है कि समाज में अराजकता फैलाने वाला जनप्रतिनिधि नहीं चाहिये। वे जिस क्षेत्र में रहती हैं वहां सभी बुनियादी सुविधाएं हैं। मगर वक्त-बेवक्त अराजक स्थितियां परेशान करतीं हैं। जनप्रतिनिधि को इस पर ध्यान देना चाहिये। छात्रा कौशल्या कर्मकार कहती हैं विधान सभा क्षेत्र में विश्वविद्यालय तो दूर महाविद्यालय नहीं है। छात्रा ज्याली मार्डी ने कहा कि महिलाओं को भी मौके मिलें तो बात बनेगी। छात्रा प्रिया कुमारी का कहना है कि जनप्रतिनिधियों को उच्च शिक्षा व्यवस्था की बात करनी चाहिये। कोमली कुमारी का कहना है कि जनप्रतिनिधि जनता व समाज की भलाई की बात करें। इस क्षेत्र में प्रयोगशाला व लाईबे्ररी नहीं है। आश्चर्यजनक यह है कि आजतक इस सुविधा के लिए किसी ने आवाज नहीं उठायी। इन सहित तमाम मुद्दों पर ये युवतियां जनप्रतिनिधयों से सवाल पूछने के मूड में हैं।
बुधवार, 18 नवंबर 2009
जनजागरण-'बस अब और नहीं'
-बारिश में भी रही जनजागरण रथ की धूम-'बिहार के बाद अब झारखंड को ठीक करने की बारी'-'विधायकों को कार्यकाल के बीच में वापस बुलाने की व्यवस्था लागू हो'---------
अशोक सिंह, जमशेदपुर : झारखंड राज्य का गठन हुए नौ साल हो गये हैं। इस दौरान छह मुख्यमंत्री व छह राज्यपाल बने, मगर पता भी नहीं चला। वाकई इस मामले में भी झारखंड ने रिकार्ड बनाया है मगर विकास के मामले में हर मोर्चे पर राज्य शून्य साबित हुआ है। लोगों के बीच पहुंचने के बाद जागरण अभियान रथ जब यह याद दिलाता है तो लोगों में आक्रोश उमड़ पड़ता है। दैनिक जागरण के जनजागरण अभियान के दौरान नुक्कड़ नाटक व लघु फिल्म देखने के बाद लोग खुद कहते हैं 'बस अब और नहीं'।मंगलवार को जनजागरण रथ की रफ्तार और तेज हो गयी। शहर में जब रथ सोनारी वेस्ट ले आउट पहुंचा तो उसे देखने व सुनने के लिए हुजूम उमड़ पड़ा। नुक्कड़ नाटक 'नोट के बदले वोट' का मंचन होने पर खूब तालियां बजीं। सोनारी निवासी व मल्टीनेशनल कंपनी से रिटायर्ड 70 वर्षीय एके चौधरी कहते हैं वेरी इंटरेस्टिंग! उन्होंने कहा कि मतदान को लेकर हम सब में उदासीनता आयी है, तभी तो हमें नुक्कड़ नाटक के माध्यम से जागरूक किया जा रहा है। रविशंकर मिश्र कहते हैं विधायकों को कार्यकाल के बीच में वापस बुलाने की व्यवस्था लागू होनी चाहिये। थोड़ी देर बाद जनजागरण का कारवां कदमा बाजार पहुंचता है। नुक्कड़ नाटक शुरू होने में देर होने पर लोगों की बेचैनी बढ़ जाती है। नाटक का मंचन शुरू होता है तो लोगों में खामोशी छा जाती है। लेकिन जबरदस्ती वोट मांगने वाले सीन ने लोगों को ठहाके लगाने पर मजबूर कर दिया। ऐसे में कदमा निवासी कृत्या नंद ठाकुर कहते है नेता राष्ट्र भक्त हो, न की बोतल भक्त।शाम पांच बजे जनजागरण रथ ज्योंही शास्त्री नगर पहुंचा तो वहां स्वागत बारिश ने किया। लोग लघु फिल्म देखने के बाद प्रतिक्रिया देते हैं। दैनिक जागरण का यह प्रयास काफी सराहनीय है। रामजी शर्मा कहते हैं राज्य का गठन जिस उद्देश्य से किया गया था, उसे भ्रष्ट नेताओं ने मिट्टी में मिला दिया। नाटक देखने के बाद शिवराम कृष्ण शर्मा कहते हैं कि झारखंड दुनिया का सबसे भ्रष्ट राज्य बनने में शुमार हो गया है। बिहार तो ठीक हो गया है अब झारखंड को ठीक करने की बारी आ गयी है।
'सबसे खतरनाक है सपनों का मर जाना'
--दैनिक जागरण के जनजागरण अभियान का जमशेदपुर पश्चिम में आगाज--निगेटिव वोटिंग व्यवस्था लागू करने की मांग
अशोक सिंह, जमशेदपुर : जनता, जनप्रतिनिधि व जनतांत्रिक प्रणाली कठिनाइयों से घिर गयी है। इन कठिनाइयों से बाहर निकले के लिए यही सही समय है। दैनिक जागरण के जनजागरण अभियान की हवा पश्चिम से जब पूर्व की ओर बही तो लोगों ने इसे हाथों हाथ लिया। इस दौरान मंचित नाटक को देख कर लोगों ने कह डाला कि घर में बैठ जाना खतरनाक नहीं है और न ही शरीर स्थिर कर लेना खतरनाक है, सबसे खतरनाक है सपनों का मर जाना। दैनिक जागरण के जनजागरण अभियान के पांचवे दिन जमशेदपुर पश्चिम विधान सभा क्षेत्रों में ठंड बढ़ने के साथ-साथ जनजागरण रथ की भी रफ्तार बढ़ी। बुधवार को भालूबासा से शुरुआत हुई तो टिनप्लेट यूनियन महिला कालेज में जनजागरण अभियान का जबदस्त क्रेज रहा। इस विस चुनाव में पहली बार मतदान करने वाली छात्राओं ने नुक्कड़ नाटक को देखकर खुलकर निगेटिव वोटिंग व्यवस्था लागू करने की मांग की। मानदंड पर खरे न उतरने के बाद जनप्रतिनिधि को बीच में वापस बुलाने के सवाल पर सभी छात्रों ने एक स्वर में कहा-हां, हां ऐसी व्यवस्था अवश्य बननी चाहिये। टिनप्लेट यूनियन महिला कालेज की प्राचार्य ने कहा कि जनता को निर्भीक होकर मतदान करना चाहिये। पढ़े लिखे लोगों में ही मतदान का प्रतिशत कम होता है। चुनाव को हम पर्व के तरह मनाये तो जनतांत्रिक व्यवस्था चमकदार हो जायेगी। इस दौरान पॉलिटिकल साइंस की टीचर रंजना भगत ने दैनिक जागरण की सरहाना करते हुये कहा कि जनजागरण अभियान में हो रहे नाटक के मंचन देखने से लोगों में उत्साह आयेगा। उन्होंने कहा कि सदी की शुरुआत में तीन राज्यों का गठन हुआ था, जिसमें उतराखंड व छत्तीसगढ़ का विकास सराहनीय है। लेकिन अपार संभावनाएं होने के बावजूद झारखंड का विकास नहीं हो सका। उन्होंने कहा कि सही समय है स्वच्छ व साथ-सुथरे जनप्रतिनिधि चुनने का। शाम को जनजागरण रथ के बारीडीह पहुंचने पर लोगों में जबरदस्त उत्सुकता देखी गयी। नुक्कड़ नाटक को देखकर व्यवसायी गोपाल दास और प्रभु भुइंया ने दैनिक जागरण की प्रशंसा करते हुये कहा कि पिछड़े क्षेत्रों में साक्षरता कम होने के कारण गलत लोग पैसे का लालच देकर वोट प्राप्त कर विधानसभा पहुंच जाते हैं।
मंगलवार, 17 नवंबर 2009
वाह! दैनिक जागरण, माइंड ब्लोइंग
--जनजागरण चुनाव रथ का शहर में भरपूर समर्थन--
अशोक सिंह, जमशेदपुर : चुनाव में जीत कर जाने के बाद नेताओं ने झारखंड को सिर्फ और सिर्फ लूटा है। झारखंड गठन के नौ साल हो गये हैं। पर यहां पर कोई विकास कार्य नहीं हुआ है। क्रिकेटर रनों के मामले में रिकार्ड बनाते हैं, यहां के नेता घोटाले में रिकार्ड बना रहे हैं। हर रोज नये- नये रूप में इनके कारनामे सामने आ रहे हैं। इन विधान सभा चुनाव में ऐसे नेताओं को सबक सिखाना ही होगा। यह शब्द दैनिक जागरण के जनजागरण चुनाव रथ पर प्रस्तुत नुक्कड़ नाटक को देख कर अनायास ही दो युवतियों के मुंह से निकले। सोमवार को साकची गोलचक्कर के पास जनजागरण चुनाव रथ से मंचित किये जा रहे नुक्कड़ नाटक का सामने से फोटो खींच रहीं रितिका और सौम्या ने कहा वाह! दैनिक जागरण 'माइंड ब्लोइंग'। लोगों को झारखंड के जमीनी हालात व नेताओं की भूमिका से जुड़ी बातें समझ में आ जानी चाहिये। पहले तो नेताओं के बारे में सिर्फ सुनने को मिलता था। आज हर दिन अखबारों में इनके द्वारा किये गये घोटालों के नित्य नये रिकार्ड सामने आ रहे हैं। इसके बाद रथ पहुंचा बिष्टुपुर। वहां जनजागरण कार्यक्रम के दौरान पहली बार मतदान करने जा रहे छात्र-छात्राओं ने कहा कि निगेटिव वोटिंग की व्यवस्था होनी चाहिये। छात्रों से यह पूछे जाने पर कि क्या विधायक को कार्यकाल के बीच में बुलाने का कानून बनना चाहिये? शतप्रतिशत छात्रों ने कहा- हां, हां, ऐसा कानून निश्चित रूप से तुरंत बनाकर उसे प्रभावी भी कर देना चाहिए। नुक्कड नाटक व लघु फिल्म को देखने के बाद 70 बसंत पर कर चुके रिटायर्ड टाटा स्टीलकर्मी एमएन यादव ने दैनिक जागरण को बधाई देते हुये कहा कि फिल्म को देखने के बाद लोगों की आंखें खुल जाती हैं। उन्होंनें कहा कि जैसे नौकरी पेशा में न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता जरूरी होती है, वैसे ही जनप्रतिनिधियों के लिए भी शैक्षणिक योग्यता को अनिवार्य बनाना चाहिये। इसके बाद जुगसलाई में जनजागरण रथ के पहुंचते ही लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। नुक्कड नाटक में वोट के लिए पैसे की बारिश होते देख लोगों ने खूब तालियां बजाईं। लगे हाथ नेताओं पर आक्रोश भी दिखाया। इस दौरान मेघा सामड ने कहा कि इस चुनाव में भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा होगा। अविनाश दवागार का कहना था कि स्थायी सरकार हो, प्रत्याशियों को नकारने के लिए निगेटिव वोटिंग की व्यवस्था हो।झारखंड के दूसरे विधानसभा चुनाव में मतदाताओं में जनजागरण लाने के लिए निकला दैनिक जागरण के चुनाव रथ की स्पीड सोमवार को काफी तेज रही। कई इलाकों में भ्रमण के दौरान जनता का उसे भारी समर्थन मिला।
अशोक सिंह, जमशेदपुर : चुनाव में जीत कर जाने के बाद नेताओं ने झारखंड को सिर्फ और सिर्फ लूटा है। झारखंड गठन के नौ साल हो गये हैं। पर यहां पर कोई विकास कार्य नहीं हुआ है। क्रिकेटर रनों के मामले में रिकार्ड बनाते हैं, यहां के नेता घोटाले में रिकार्ड बना रहे हैं। हर रोज नये- नये रूप में इनके कारनामे सामने आ रहे हैं। इन विधान सभा चुनाव में ऐसे नेताओं को सबक सिखाना ही होगा। यह शब्द दैनिक जागरण के जनजागरण चुनाव रथ पर प्रस्तुत नुक्कड़ नाटक को देख कर अनायास ही दो युवतियों के मुंह से निकले। सोमवार को साकची गोलचक्कर के पास जनजागरण चुनाव रथ से मंचित किये जा रहे नुक्कड़ नाटक का सामने से फोटो खींच रहीं रितिका और सौम्या ने कहा वाह! दैनिक जागरण 'माइंड ब्लोइंग'। लोगों को झारखंड के जमीनी हालात व नेताओं की भूमिका से जुड़ी बातें समझ में आ जानी चाहिये। पहले तो नेताओं के बारे में सिर्फ सुनने को मिलता था। आज हर दिन अखबारों में इनके द्वारा किये गये घोटालों के नित्य नये रिकार्ड सामने आ रहे हैं। इसके बाद रथ पहुंचा बिष्टुपुर। वहां जनजागरण कार्यक्रम के दौरान पहली बार मतदान करने जा रहे छात्र-छात्राओं ने कहा कि निगेटिव वोटिंग की व्यवस्था होनी चाहिये। छात्रों से यह पूछे जाने पर कि क्या विधायक को कार्यकाल के बीच में बुलाने का कानून बनना चाहिये? शतप्रतिशत छात्रों ने कहा- हां, हां, ऐसा कानून निश्चित रूप से तुरंत बनाकर उसे प्रभावी भी कर देना चाहिए। नुक्कड नाटक व लघु फिल्म को देखने के बाद 70 बसंत पर कर चुके रिटायर्ड टाटा स्टीलकर्मी एमएन यादव ने दैनिक जागरण को बधाई देते हुये कहा कि फिल्म को देखने के बाद लोगों की आंखें खुल जाती हैं। उन्होंनें कहा कि जैसे नौकरी पेशा में न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता जरूरी होती है, वैसे ही जनप्रतिनिधियों के लिए भी शैक्षणिक योग्यता को अनिवार्य बनाना चाहिये। इसके बाद जुगसलाई में जनजागरण रथ के पहुंचते ही लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। नुक्कड नाटक में वोट के लिए पैसे की बारिश होते देख लोगों ने खूब तालियां बजाईं। लगे हाथ नेताओं पर आक्रोश भी दिखाया। इस दौरान मेघा सामड ने कहा कि इस चुनाव में भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा होगा। अविनाश दवागार का कहना था कि स्थायी सरकार हो, प्रत्याशियों को नकारने के लिए निगेटिव वोटिंग की व्यवस्था हो।झारखंड के दूसरे विधानसभा चुनाव में मतदाताओं में जनजागरण लाने के लिए निकला दैनिक जागरण के चुनाव रथ की स्पीड सोमवार को काफी तेज रही। कई इलाकों में भ्रमण के दौरान जनता का उसे भारी समर्थन मिला।
रविवार, 15 नवंबर 2009
वोट डालो, झारखंड बचाओ
---लोगों को जगाने निकला दैनिक जागरण का जनजागरण रथ -- जमशेदपुर पश्चिम में घूमा, लोगों में बहाई बदलाव की बयार
अशोक सिंह, जमशेदपुर : झारखंड विधान सभा चुनाव में लोगों को मतदान करने के प्रति सजग करने के लिए दैनिक जागरण द्वारा शुरू किये गये जनजागरण अभियान के तहत शनिवार को एक नये अध्याय की शुरुआत हुई। मानगो डिमना रोड स्थित कार्यालय से दैनिक जागरण का चुनाव रथ निकला जिसे शहर में प्रमुख महिला व्यवसायियों में शुमार विनीता शाह, सरला गनेड़ीवाल, प्रीति अग्रवाल, वंदना पाण्डेय, सुमिता पाण्डेय व अर्चना गौतम ने संयुक्त रूप से रवाना किया। पहले दिन मानगो के बाम्बे चौक व शंकुसाई इलाके में रथ घूमा। इसमें नुक्कड़ नाटक व गीत संगीत के जरिए लोगों को संदेश दिया गया कि झारखंड को बचाना है तो हर मतदाता को अपने मताधिकार का प्रयोग करना ही होगा। दैनिक जागरण के संदेश में लोगों ने काफी दिलचस्पी दिखाई। बदलाव की बयार बहती नजर आई। नुक्कड नाटक के जरिए बताया कि झारखंड गठन के नौ साल में छह सरकार बनीं, छह राज्यपाल भी रहे पर जनता बदहाल ही रह गई तो इसका कारण यही रहा कि सत्ता से जुड़े लोग स्वार्थसिद्धि में ही लगे रहे। सूबे को लूटते रहे। लेकिन यह चुनाव झारखंड को बचाने का बड़ा अवसर है। इसे हमें यूं ही जाने नहीं देना है। हालांकि इस दौरान हमें नाना प्रकार के प्रलोभन दिये जाएंगे। नोट से लेकर कई कई दूसरे प्रकार के लालच दिखाये जाएंगे पर हमें किसी में फंसना नहीं है। हमें स्थायी सरकार के लिए योग्य प्रत्याशी को चुनना है। नुक्कड़ नाटक के माध्यम से कलाकारों ने लोगों को बताया कि झारखंड को लूटने वाले फिर थैली खोल कर मैदान में आ गए हैं। वे चंद पैसों और शराब के बल पर फिर हमारे वोटों का सौदा करेंगे लेकिन हमें इस बार इनके बहकावे में नहीं आना है। हमें चंद सिक्कों की खातिर अपने भविष्य को गिरवी नहीं रखना है। हम स्वच्छ छवि वाले दलीय प्रत्याशियों को ही वोट देंगे ताकि राज्य में स्थिर सरकार बन सके। नुक्कड़ नाटक लोगों को काफी प्रभावित कर रहा था। दैनिक जागरण का चुनाव जनजागरण रथ रविवार को पटमदा इलाके में जाएगा।
अशोक सिंह, जमशेदपुर : झारखंड विधान सभा चुनाव में लोगों को मतदान करने के प्रति सजग करने के लिए दैनिक जागरण द्वारा शुरू किये गये जनजागरण अभियान के तहत शनिवार को एक नये अध्याय की शुरुआत हुई। मानगो डिमना रोड स्थित कार्यालय से दैनिक जागरण का चुनाव रथ निकला जिसे शहर में प्रमुख महिला व्यवसायियों में शुमार विनीता शाह, सरला गनेड़ीवाल, प्रीति अग्रवाल, वंदना पाण्डेय, सुमिता पाण्डेय व अर्चना गौतम ने संयुक्त रूप से रवाना किया। पहले दिन मानगो के बाम्बे चौक व शंकुसाई इलाके में रथ घूमा। इसमें नुक्कड़ नाटक व गीत संगीत के जरिए लोगों को संदेश दिया गया कि झारखंड को बचाना है तो हर मतदाता को अपने मताधिकार का प्रयोग करना ही होगा। दैनिक जागरण के संदेश में लोगों ने काफी दिलचस्पी दिखाई। बदलाव की बयार बहती नजर आई। नुक्कड नाटक के जरिए बताया कि झारखंड गठन के नौ साल में छह सरकार बनीं, छह राज्यपाल भी रहे पर जनता बदहाल ही रह गई तो इसका कारण यही रहा कि सत्ता से जुड़े लोग स्वार्थसिद्धि में ही लगे रहे। सूबे को लूटते रहे। लेकिन यह चुनाव झारखंड को बचाने का बड़ा अवसर है। इसे हमें यूं ही जाने नहीं देना है। हालांकि इस दौरान हमें नाना प्रकार के प्रलोभन दिये जाएंगे। नोट से लेकर कई कई दूसरे प्रकार के लालच दिखाये जाएंगे पर हमें किसी में फंसना नहीं है। हमें स्थायी सरकार के लिए योग्य प्रत्याशी को चुनना है। नुक्कड़ नाटक के माध्यम से कलाकारों ने लोगों को बताया कि झारखंड को लूटने वाले फिर थैली खोल कर मैदान में आ गए हैं। वे चंद पैसों और शराब के बल पर फिर हमारे वोटों का सौदा करेंगे लेकिन हमें इस बार इनके बहकावे में नहीं आना है। हमें चंद सिक्कों की खातिर अपने भविष्य को गिरवी नहीं रखना है। हम स्वच्छ छवि वाले दलीय प्रत्याशियों को ही वोट देंगे ताकि राज्य में स्थिर सरकार बन सके। नुक्कड़ नाटक लोगों को काफी प्रभावित कर रहा था। दैनिक जागरण का चुनाव जनजागरण रथ रविवार को पटमदा इलाके में जाएगा।
शुक्रवार, 13 नवंबर 2009
दीवाली में शहरवासी कैसे लेंगे सांस
--पटाखा से गोलमुरी व बिष्टुपुर में सर्वाधिक वायु प्रदूषण--
अशोक सिंह, जमशेदपुर : क्षिति जल पावक गगन समीरा वाले पंचतत्व से बने मानव शरीर में सबसे अहम तत्व है वायु। शरीर में वायु के न रहने पर मनुष्य निष्प्राण हो जाता है। शुद्ध वायु जहां हमारे शरीर के स्वस्थ रहने में सहायक होती है वहीं प्रदूषित वायु हमारी मौत का कारण भी बन जाती है। आज के भीड़भाड़ भरे जीवन में वैसे तो हमें लगभग रोज ही प्रदूषित वायु का सामना करना पड़ता है, पर दीपावली के अवसर पर होने वाली आतिशबाजी के कारण हमारे शरीर में प्रचुर मात्रा में प्रदूषित या यूं कह लें कि जहरीली वायु प्रवेश कर जाती है। इसके चलते हम मारक बीमारी का शिकार हो जाते हैं। बावजूद इसके पर्व के उल्लास में हम इस ओर कतई ध्यान नहीं देते हैं।
दीवाली पर होने वाली आतिशबाजी के कारण वायुमंडल में वायु प्रदूषण की मात्रा तय मानक से कहीं ज्यादा होती है। वायुमंडल में तैरते रासायनिक पदार्थो का आंकड़ा प्रति क्यूबिक मीटर 120 माईक्रोग्राम होना चाहिये। वहीं बिष्टूपुर में प्रति क्यूबिक मीटर में वायु प्रदूषण की मात्रा 261 माईक्रोग्राम मिलती है। प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से प्राप्त आंकड़े के मुताबिक बिष्टुपुर के वायुमंडल में एसओ टू की मात्रा 38, एनओटू की मात्रा 62 जिसका प्रदूषण औसत 52 मिलता है। वहीं इस क्षेत्र में सस्पेंडेड पार्टिकल्स आफ मैटर (एसपीएम) की मात्रा 191 मिलता है। गोलमुरी में प्रति क्यूबिक मीटर में वायु प्रदूषण की मात्रा 256 माईक्रोगाम मिलती है। एसओ टू की मात्रा 40, एनओटू की मात्रा 54 जिसका प्रदूषण औसत 52 मिलता है। वहीं इस क्षेत्र में सस्पेंडेड पार्टिकल्स आफ मैटर (एसपीएम) की मात्रा 203 मिलता है।
प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के रीजनल आफिसर आरएन चौधरी ने बताया कि दीवाली के दौरान शहर में दो जगह गोलमुरी व बिष्टुपुर में मानेटरिंग प्वाइंट लगाया जाता है। उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण की मात्रा का आंकलन तो हर रोज किया जाता है लेकिन खास कर दीवाली के दिन वायु प्रदूषण ज्यादा होती है। उन्होंने बताया कि हाई वॉल्यूम सस्पेंडेड मशीन गोलमुरी वाहन केंद्र व बिष्टुपुर वाहन केंन्द्र के पास स्थापित किया गया है।
जागरूकता के लिए चलाते हैं अभियान
आरएन चौधरी ने बताया कि लोगों को जागरूक करने के लिए समय समय पर प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड द्वारा अभियान चलाया जाता है। उन्होने बताया कि पौधारोपण कर लोगों को जागरूक किया जाता है। इसके अलावा लोगों में जागरूकता लाने के लिए पर्यावरण दिवस पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। उन्होंने इस दीवाली लोगों से न्यूनतम वायु व ध्वनि प्रदूषण वाले पटाखे छोड़ने का आह्वान किया।
अशोक सिंह, जमशेदपुर : क्षिति जल पावक गगन समीरा वाले पंचतत्व से बने मानव शरीर में सबसे अहम तत्व है वायु। शरीर में वायु के न रहने पर मनुष्य निष्प्राण हो जाता है। शुद्ध वायु जहां हमारे शरीर के स्वस्थ रहने में सहायक होती है वहीं प्रदूषित वायु हमारी मौत का कारण भी बन जाती है। आज के भीड़भाड़ भरे जीवन में वैसे तो हमें लगभग रोज ही प्रदूषित वायु का सामना करना पड़ता है, पर दीपावली के अवसर पर होने वाली आतिशबाजी के कारण हमारे शरीर में प्रचुर मात्रा में प्रदूषित या यूं कह लें कि जहरीली वायु प्रवेश कर जाती है। इसके चलते हम मारक बीमारी का शिकार हो जाते हैं। बावजूद इसके पर्व के उल्लास में हम इस ओर कतई ध्यान नहीं देते हैं।
दीवाली पर होने वाली आतिशबाजी के कारण वायुमंडल में वायु प्रदूषण की मात्रा तय मानक से कहीं ज्यादा होती है। वायुमंडल में तैरते रासायनिक पदार्थो का आंकड़ा प्रति क्यूबिक मीटर 120 माईक्रोग्राम होना चाहिये। वहीं बिष्टूपुर में प्रति क्यूबिक मीटर में वायु प्रदूषण की मात्रा 261 माईक्रोग्राम मिलती है। प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से प्राप्त आंकड़े के मुताबिक बिष्टुपुर के वायुमंडल में एसओ टू की मात्रा 38, एनओटू की मात्रा 62 जिसका प्रदूषण औसत 52 मिलता है। वहीं इस क्षेत्र में सस्पेंडेड पार्टिकल्स आफ मैटर (एसपीएम) की मात्रा 191 मिलता है। गोलमुरी में प्रति क्यूबिक मीटर में वायु प्रदूषण की मात्रा 256 माईक्रोगाम मिलती है। एसओ टू की मात्रा 40, एनओटू की मात्रा 54 जिसका प्रदूषण औसत 52 मिलता है। वहीं इस क्षेत्र में सस्पेंडेड पार्टिकल्स आफ मैटर (एसपीएम) की मात्रा 203 मिलता है।
प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के रीजनल आफिसर आरएन चौधरी ने बताया कि दीवाली के दौरान शहर में दो जगह गोलमुरी व बिष्टुपुर में मानेटरिंग प्वाइंट लगाया जाता है। उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण की मात्रा का आंकलन तो हर रोज किया जाता है लेकिन खास कर दीवाली के दिन वायु प्रदूषण ज्यादा होती है। उन्होंने बताया कि हाई वॉल्यूम सस्पेंडेड मशीन गोलमुरी वाहन केंद्र व बिष्टुपुर वाहन केंन्द्र के पास स्थापित किया गया है।
जागरूकता के लिए चलाते हैं अभियान
आरएन चौधरी ने बताया कि लोगों को जागरूक करने के लिए समय समय पर प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड द्वारा अभियान चलाया जाता है। उन्होने बताया कि पौधारोपण कर लोगों को जागरूक किया जाता है। इसके अलावा लोगों में जागरूकता लाने के लिए पर्यावरण दिवस पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। उन्होंने इस दीवाली लोगों से न्यूनतम वायु व ध्वनि प्रदूषण वाले पटाखे छोड़ने का आह्वान किया।
जमशेदपुर में ध्वनि प्रदूषण का बढ़ता खतरा
-ध्वनि प्रदूषण के मामले में मानगो चौक अव्वल, दूसरे स्थान पर बिष्टुपुर व गोलमुरी
अशोक सिंह, जमशेदपुर : प्रकाश पर्व दीवाली पर सब कुछ प्रकाशमय नहीं रहता। खुशियों एवं उत्साह भरे इस प्रकाशोत्सव पर कुछ ऐसा भी होता है जो हमारे अपनों के जीवन के लिए सुखद नहीं होता है। दीवाली के अवसर पर होने वाले प्रदूषण का सर्वाधिक नुकसान लौहनगरी को होता है। दुखद पहलू यह है कि शहर का सबसे पाश इलाका माने जाने वाले बिष्टुपुर में ध्वनि प्रदूषण की मात्रा मानगो के बाद सर्वाधिक मापी गई है।
झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बीते दीवाली ध्वनि प्रदूषण को डेसिबल पैमाने पर मापने के बाद पाया कि शहर के कुछ विशेष क्षेत्र में ध्वनि प्रदूषण किसी स्वस्थ शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक स्तर तक पहुंच जाता है। पटाखों से होने वाले वायु प्रदूषण से पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुंचा है।
यहां-यहां होता है सर्वाधिक प्रदूषण
आदित्यपुर स्थित राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तय मानक के अनुरूप 6 बजे से 9 बजे तक औद्योगिक क्षेत्रों में ध्वनि प्रदूषण की मात्रा 75 डेसिबल अधिकतम व पूर्वाह्न 9 बजे से अपराह्न 6 बजे तक 70 डेसिबल अधिकतम होनी चाहिए जबकि व्यवसायिक क्षेत्रों में दिन में ध्वनि प्रदूषण की मात्रा 65 डेसिबल व रात में 55 डेसिबल तय की गई है। रिहायशी क्षेत्रों में दिन में अधिकतम ध्वनि प्रदूषण की मात्रा 55 व रात में 45 डेसिबल निर्धारित है। मनुष्य के लिए उपयुक्त ध्वनि क्षमता जहां सामान्य दिनों में 45 से 55 डेसिबल होती है, वहीं ध्वनि प्रदूषण के मामले में मानगो चौक पहले पायदान पर है। यहां सर्वाधिक ध्वनि प्रदूषण दीवाली के दिन 94 डेसिबल होता है। दूसरे पायदान पर बिष्टुपर व गोलमुरी है, जहां ध्वनि प्रदूषण की मात्रा 89 डेसिबल रहती है। तीसरे स्थान पर साकची गोलचक्कर (86 डेसिबल) व हावड़ा ब्रिज(86 डेसिबल) है। इसके अलावा आदित्यपुर शेरे पंजाब व एस टाइप में ध्वनि प्रदूषण का मात्रा 96 है जो इस क्षेत्र का सर्वाधिक ध्वनि प्रदूषण है। ये सभी आंकडे़ तय मानक से काफी ज्यादा हैं।
24 जगहों पर लगाये जायेंगे मापक यंत्र
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हर वर्ष आदित्यपुर समेत शहर के 18 जगहों पर दीवाली के एक दिन पूर्व व दीवाली के दिन प्रदूषण का आकलन करता है लेकिन इस वर्ष 24 जगहों पर प्रदूषण मापक यंत्र लगाए जायेंगे जिसमें बर्मामाइंस, सोनारी एयरोड्रम, रेलवे स्टेशन व एनआईटी को शामिल किया गया है।
अशोक सिंह, जमशेदपुर : प्रकाश पर्व दीवाली पर सब कुछ प्रकाशमय नहीं रहता। खुशियों एवं उत्साह भरे इस प्रकाशोत्सव पर कुछ ऐसा भी होता है जो हमारे अपनों के जीवन के लिए सुखद नहीं होता है। दीवाली के अवसर पर होने वाले प्रदूषण का सर्वाधिक नुकसान लौहनगरी को होता है। दुखद पहलू यह है कि शहर का सबसे पाश इलाका माने जाने वाले बिष्टुपुर में ध्वनि प्रदूषण की मात्रा मानगो के बाद सर्वाधिक मापी गई है।
झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बीते दीवाली ध्वनि प्रदूषण को डेसिबल पैमाने पर मापने के बाद पाया कि शहर के कुछ विशेष क्षेत्र में ध्वनि प्रदूषण किसी स्वस्थ शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक स्तर तक पहुंच जाता है। पटाखों से होने वाले वायु प्रदूषण से पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुंचा है।
यहां-यहां होता है सर्वाधिक प्रदूषण
आदित्यपुर स्थित राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तय मानक के अनुरूप 6 बजे से 9 बजे तक औद्योगिक क्षेत्रों में ध्वनि प्रदूषण की मात्रा 75 डेसिबल अधिकतम व पूर्वाह्न 9 बजे से अपराह्न 6 बजे तक 70 डेसिबल अधिकतम होनी चाहिए जबकि व्यवसायिक क्षेत्रों में दिन में ध्वनि प्रदूषण की मात्रा 65 डेसिबल व रात में 55 डेसिबल तय की गई है। रिहायशी क्षेत्रों में दिन में अधिकतम ध्वनि प्रदूषण की मात्रा 55 व रात में 45 डेसिबल निर्धारित है। मनुष्य के लिए उपयुक्त ध्वनि क्षमता जहां सामान्य दिनों में 45 से 55 डेसिबल होती है, वहीं ध्वनि प्रदूषण के मामले में मानगो चौक पहले पायदान पर है। यहां सर्वाधिक ध्वनि प्रदूषण दीवाली के दिन 94 डेसिबल होता है। दूसरे पायदान पर बिष्टुपर व गोलमुरी है, जहां ध्वनि प्रदूषण की मात्रा 89 डेसिबल रहती है। तीसरे स्थान पर साकची गोलचक्कर (86 डेसिबल) व हावड़ा ब्रिज(86 डेसिबल) है। इसके अलावा आदित्यपुर शेरे पंजाब व एस टाइप में ध्वनि प्रदूषण का मात्रा 96 है जो इस क्षेत्र का सर्वाधिक ध्वनि प्रदूषण है। ये सभी आंकडे़ तय मानक से काफी ज्यादा हैं।
24 जगहों पर लगाये जायेंगे मापक यंत्र
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हर वर्ष आदित्यपुर समेत शहर के 18 जगहों पर दीवाली के एक दिन पूर्व व दीवाली के दिन प्रदूषण का आकलन करता है लेकिन इस वर्ष 24 जगहों पर प्रदूषण मापक यंत्र लगाए जायेंगे जिसमें बर्मामाइंस, सोनारी एयरोड्रम, रेलवे स्टेशन व एनआईटी को शामिल किया गया है।
मनोकामना या स्वार्थ
--धार्मिक भावनाओं के साथ हो रहा खिलवाड़--
अशोक सिंह, जमशेदपुर : छठ व्रत के पावन अवसर पर उगते व डूबते सूरज को अर्घ्य देना महज परंपरा नहीं है, बल्कि इसमें जीवन का महत्वपूर्ण सार छिपा होता है। इस लिए पूरब के इस व्रत को मनाने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसा कहा जाता है कि मनोकामना पूरी करने के लिए भीख मांगकर छठ करने की परंपरा है। यद्यपि कुछ लोग अति निर्धन होने के कारण भीख मांगकर छठ व्रत के पुण्य की प्राप्ति करते हैं। मगर उसका दूसरा पहलू यह भी है कि हाल के वर्षो में छठ आते ही सड़कों, बाजारों व मुहल्लों में छठ व्रत करने के लिए भीख मांगने वालों की भीड़ बढ़ती जा रही है। पेश है आस्था से जुड़े इस मुद्दे की सच्चाई उजागर करती रिपोर्ट-
भीख मांगकर छठ करने वालों की तादाद खास कर साकची बाजार में काफी देखा जा सकती है। मंगलवार को दोपहर साढ़े बारह बजे गाड़ी रोकते ही हाथ में लाल कपड़े से ढका सूप लिए एक महिला सामने आती है और छठ के नाम पर कुछ पैसे मांगती है। पैसे लेकर वह आगे बढ़ जाती है। तभी अनयास ही मेरे मुंह एक सवाल निकल जाता है, तुम इस पैसे को क्या करोगी, बताने से बचते हुये वह तेजी से आगे बढ़ जाती है। उसकी बच्ची ने बताया कि शाम को इस पैसे से चावल खरीदेंगे। इस तरह से मेरे मन में उत्सुकता हुई, और इसको लेकर और खोजबीन की। एक अधेड़ महिला मिलती है। उसे छठ व्रत के बारे में कुछ भी पता नहीं है। कब से शुरू हो रहा है छठ, किस दिन प्रथम अर्घ्य है। इसका मतलब उसे मालूम नहीं है। लेकिन वह छठ के नाम पर लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रही है। उससे बातचीत करने पर कहीं से नहीं लगा कि वह छठ करने वाली है या कभी की है।
भीख से मिलता है निवाला
पिछले एक माह से भालुबासा के आसपास के क्षेत्रों में छठ के नाम पर भीख मांग रही कामली को छठ की महत्ता को बताने के बाद बताती है कि इसी के सहारे उसके परिवार को निवाला मिलता है। हालांकि कमला का भरापूरा परिवार है पर पति के शराबी होने के चलते परिवार की गाड़ी उसी को खींचनी पड़ती है। अनपढ़ होने के चलते उसे जीविकोपार्जन के लिये भिक्षाटन का सहारा लेना पड़ा है। वैसे तो छठ व्रत से उसका कोई लेना-देना नहीं है पर उसे यह पता है कि छठ व्रत के नाम पर भीख देने से जल्दी कोई इनकार नहीं करता है। यही कारण है कि पिछले एक माह से वह छठ के नाम पर भीख मांग रही है। उसने बताया कि जब वह छठ के नाम पर भीख मांगती है तो उसे अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है और उसके परिवार को दो जून की रोटी मयस्सर हो जाती है।
फोटो---
छठ के नाम पर चल रही इनकी जीविका
जमशेदपुर : छठ व्रत के पावन अवसर पर उगते व डूबते सूरज को अर्घ्य देना महज परंपरा नहीं है वरन इसमें जीवन का महत्वपूर्ण सार छिपा है। शायद इस कारण ही पूरब के इस व्रत को मनाने वाले लोगों की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। सामान्यत: मनोकामना पूरी करने के लिए भीख मांगकर छठ करने की परंपरा रही है। वहीं कुछ लोग अति निर्धन होने के कारण भी भीक्षाटन कर छठ व्रत करते हैं। तो दूसरा पहलू यह भी है कि हाल के वर्षो में छठ आते ही बाजारों व मुहल्लों में छठ व्रत करने के लिए भीख मांगने वालों की तादाद बढ़ जाती है लेकिन अधिकांश मामलों में छठ के नाम पर दो जून की रोटी का जुगाड़ करने की कोशिश होती है। साकची बाजार में मंगलवार दोपहर साढ़े बारह बजे गाड़ी रोकते ही हाथ में लाल कपड़े से ढका सूप लिए एक महिला सामने आती है और छठ के नाम पर कुछ पैसे मांगती है। पैसा मिलते ही आगे बढ़ जाती है। यह पूछने पर कि क्या वास्तव में वह छठ करेगी, वह बिना बोले आगे बढ़ जाती है। तब तक साथ चल रही उसकी बच्ची बताती है कि शाम को पैसे से चावल खरीदेंगे। थोड़ी ही देर में एक अधेड़ महिला मिलती है। उसे छठ व्रत के बारे में कुछ भी पता नहीं है। कब से शुरू हो रहा है छठ, किस दिन प्रथम अर्घ्य है लेकिन वह भी छठ के नाम पर लोगों से पैसे मांग रही है। भीख से मिलता है निवाला
पिछले एक महीने से भालूबासा के आसपास के क्षेत्रों में छठ के नाम पर भीख मांग रही कामली बताती है कि इसी के सहारे उसके परिवार को निवाला मिलता है। हालांकि कमला का भरापूरा परिवार है पर पति के शराबी होने के चलते परिवार की गाड़ी उसी को खींचनी पड़ती है। अनपढ़ होने के चलते उसे जीविकोपार्जन के लिये भिक्षाटन का सहारा लेना पड़ता है। वैसे तो छठ व्रत से उसका कोई लेना-देना नहीं है पर उसे यह पता है कि छठ व्रत के नाम पर भीख देने से जल्दी कोई इनकार नहीं करता। यही कारण है कि पिछले एक महीने से वह छठ के नाम पर भीख मांग रही है। उसने बताया कि जब वह छठ के नाम पर भीख मांगती है तो उसे अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है और उसके परिवार को दो जून की रोटी मयस्सर हो जाती है।
अशोक सिंह, जमशेदपुर : छठ व्रत के पावन अवसर पर उगते व डूबते सूरज को अर्घ्य देना महज परंपरा नहीं है, बल्कि इसमें जीवन का महत्वपूर्ण सार छिपा होता है। इस लिए पूरब के इस व्रत को मनाने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसा कहा जाता है कि मनोकामना पूरी करने के लिए भीख मांगकर छठ करने की परंपरा है। यद्यपि कुछ लोग अति निर्धन होने के कारण भीख मांगकर छठ व्रत के पुण्य की प्राप्ति करते हैं। मगर उसका दूसरा पहलू यह भी है कि हाल के वर्षो में छठ आते ही सड़कों, बाजारों व मुहल्लों में छठ व्रत करने के लिए भीख मांगने वालों की भीड़ बढ़ती जा रही है। पेश है आस्था से जुड़े इस मुद्दे की सच्चाई उजागर करती रिपोर्ट-
भीख मांगकर छठ करने वालों की तादाद खास कर साकची बाजार में काफी देखा जा सकती है। मंगलवार को दोपहर साढ़े बारह बजे गाड़ी रोकते ही हाथ में लाल कपड़े से ढका सूप लिए एक महिला सामने आती है और छठ के नाम पर कुछ पैसे मांगती है। पैसे लेकर वह आगे बढ़ जाती है। तभी अनयास ही मेरे मुंह एक सवाल निकल जाता है, तुम इस पैसे को क्या करोगी, बताने से बचते हुये वह तेजी से आगे बढ़ जाती है। उसकी बच्ची ने बताया कि शाम को इस पैसे से चावल खरीदेंगे। इस तरह से मेरे मन में उत्सुकता हुई, और इसको लेकर और खोजबीन की। एक अधेड़ महिला मिलती है। उसे छठ व्रत के बारे में कुछ भी पता नहीं है। कब से शुरू हो रहा है छठ, किस दिन प्रथम अर्घ्य है। इसका मतलब उसे मालूम नहीं है। लेकिन वह छठ के नाम पर लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रही है। उससे बातचीत करने पर कहीं से नहीं लगा कि वह छठ करने वाली है या कभी की है।
भीख से मिलता है निवाला
पिछले एक माह से भालुबासा के आसपास के क्षेत्रों में छठ के नाम पर भीख मांग रही कामली को छठ की महत्ता को बताने के बाद बताती है कि इसी के सहारे उसके परिवार को निवाला मिलता है। हालांकि कमला का भरापूरा परिवार है पर पति के शराबी होने के चलते परिवार की गाड़ी उसी को खींचनी पड़ती है। अनपढ़ होने के चलते उसे जीविकोपार्जन के लिये भिक्षाटन का सहारा लेना पड़ा है। वैसे तो छठ व्रत से उसका कोई लेना-देना नहीं है पर उसे यह पता है कि छठ व्रत के नाम पर भीख देने से जल्दी कोई इनकार नहीं करता है। यही कारण है कि पिछले एक माह से वह छठ के नाम पर भीख मांग रही है। उसने बताया कि जब वह छठ के नाम पर भीख मांगती है तो उसे अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है और उसके परिवार को दो जून की रोटी मयस्सर हो जाती है।
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छठ के नाम पर चल रही इनकी जीविका
जमशेदपुर : छठ व्रत के पावन अवसर पर उगते व डूबते सूरज को अर्घ्य देना महज परंपरा नहीं है वरन इसमें जीवन का महत्वपूर्ण सार छिपा है। शायद इस कारण ही पूरब के इस व्रत को मनाने वाले लोगों की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। सामान्यत: मनोकामना पूरी करने के लिए भीख मांगकर छठ करने की परंपरा रही है। वहीं कुछ लोग अति निर्धन होने के कारण भी भीक्षाटन कर छठ व्रत करते हैं। तो दूसरा पहलू यह भी है कि हाल के वर्षो में छठ आते ही बाजारों व मुहल्लों में छठ व्रत करने के लिए भीख मांगने वालों की तादाद बढ़ जाती है लेकिन अधिकांश मामलों में छठ के नाम पर दो जून की रोटी का जुगाड़ करने की कोशिश होती है। साकची बाजार में मंगलवार दोपहर साढ़े बारह बजे गाड़ी रोकते ही हाथ में लाल कपड़े से ढका सूप लिए एक महिला सामने आती है और छठ के नाम पर कुछ पैसे मांगती है। पैसा मिलते ही आगे बढ़ जाती है। यह पूछने पर कि क्या वास्तव में वह छठ करेगी, वह बिना बोले आगे बढ़ जाती है। तब तक साथ चल रही उसकी बच्ची बताती है कि शाम को पैसे से चावल खरीदेंगे। थोड़ी ही देर में एक अधेड़ महिला मिलती है। उसे छठ व्रत के बारे में कुछ भी पता नहीं है। कब से शुरू हो रहा है छठ, किस दिन प्रथम अर्घ्य है लेकिन वह भी छठ के नाम पर लोगों से पैसे मांग रही है। भीख से मिलता है निवाला
पिछले एक महीने से भालूबासा के आसपास के क्षेत्रों में छठ के नाम पर भीख मांग रही कामली बताती है कि इसी के सहारे उसके परिवार को निवाला मिलता है। हालांकि कमला का भरापूरा परिवार है पर पति के शराबी होने के चलते परिवार की गाड़ी उसी को खींचनी पड़ती है। अनपढ़ होने के चलते उसे जीविकोपार्जन के लिये भिक्षाटन का सहारा लेना पड़ता है। वैसे तो छठ व्रत से उसका कोई लेना-देना नहीं है पर उसे यह पता है कि छठ व्रत के नाम पर भीख देने से जल्दी कोई इनकार नहीं करता। यही कारण है कि पिछले एक महीने से वह छठ के नाम पर भीख मांग रही है। उसने बताया कि जब वह छठ के नाम पर भीख मांगती है तो उसे अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है और उसके परिवार को दो जून की रोटी मयस्सर हो जाती है।
गुरुवार, 12 नवंबर 2009
झारखंड में 45 अधिकारियों पर चला 'सूचना कानून' का डंडा
--जमशेदपुर के पूर्व एसडीओ व चक्रधरपुर नपा के विशेष पदाधिकारी भी लपेटे में--
अशोक सिंह, जमशेदपुर : आम जनता को सौंपा गया सशक्त हथियार आरटीआई यानी सूचना के अधिकार का डंडा झारखंड में चलना शुरू हो गया है। अभी तक राज्य के 45 अधिकारी सूचना कानून की चपेट में आ चुके हैं। समय से सूचना न देने या टालमटोल कर जवाब देने वालों पर राज्य सूचना आयोग का डंडा बड़ी तेजी से घूम रहा है। बीडीओ से एसपी तक, उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष से लेकर विवि के कुल सचिव तक और राज्य सरकार के सचिव से लेकर झारखंड पब्लिक सर्विस कमीशन (जेपीएससी) के अधिकारी तक इस कानून की चपेट में आये हैं। धनबाद डीसी आफिस के एक अधिकारी से लेकर जमशेदपुर के पूर्व एसडीओ तक को सूचना कानून के डंडे की चोट लगी है। एसपी कार्यालय बोकारो भी इसकी चपेट में आया है। चक्रधरपुर नपा के पूर्व विशेष पदाधिकारी को भी सूचना कानून के तहत जुर्माना देना पड़ा है। राज्य सूचना आयोग से मिली जानकारी के अनुसार जमशेदपुर के तत्कालीन एसडीओ गणेश प्रसाद पर सूचना समय से न देने व आवेदक को परेशान करने के आरोप में जुर्माना किया जा चुका है। हालांकि इस मामले में जमशेदपुर जिला प्रशासन ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उधर चक्रधरपुर में सूचना समय पर न देने व टालमटोल कर जबाब देने के आरोप में नगरपालिका के विशेष पदाधिकारी अनिल कुमार को राज्य सूचना आयोग की तरफ से 25 हजार रुपये जुर्माना किया जा चुका है। अपील में आये 3555 मामलेझारखंड में सूचना कानून अधिनियम 2005 के लागू होने से लेकर अब तक अपील के 3555 मामले निस्तारित किये गये हैं। इसके अलावा 776 मामले लंबित हैं। झारखंड राज्य के सूचना आयुक्त बीएन मिश्रा ने बताया कि अभी तक 355 मामले निस्तारित किये गये हैं, जबकि 94 मामले लंबित हैं। इसके अलावा आयोग में पुनर्याचिका के 92 मामले आये, जिसमें 15 मामले लंबित हैं। उन्होंने बताया कि राज्य में कुल 45 अधिकारियों पर अभी तक सूचना कानून के तहत जुर्माना किया जा चुका है।
अशोक सिंह, जमशेदपुर : आम जनता को सौंपा गया सशक्त हथियार आरटीआई यानी सूचना के अधिकार का डंडा झारखंड में चलना शुरू हो गया है। अभी तक राज्य के 45 अधिकारी सूचना कानून की चपेट में आ चुके हैं। समय से सूचना न देने या टालमटोल कर जवाब देने वालों पर राज्य सूचना आयोग का डंडा बड़ी तेजी से घूम रहा है। बीडीओ से एसपी तक, उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष से लेकर विवि के कुल सचिव तक और राज्य सरकार के सचिव से लेकर झारखंड पब्लिक सर्विस कमीशन (जेपीएससी) के अधिकारी तक इस कानून की चपेट में आये हैं। धनबाद डीसी आफिस के एक अधिकारी से लेकर जमशेदपुर के पूर्व एसडीओ तक को सूचना कानून के डंडे की चोट लगी है। एसपी कार्यालय बोकारो भी इसकी चपेट में आया है। चक्रधरपुर नपा के पूर्व विशेष पदाधिकारी को भी सूचना कानून के तहत जुर्माना देना पड़ा है। राज्य सूचना आयोग से मिली जानकारी के अनुसार जमशेदपुर के तत्कालीन एसडीओ गणेश प्रसाद पर सूचना समय से न देने व आवेदक को परेशान करने के आरोप में जुर्माना किया जा चुका है। हालांकि इस मामले में जमशेदपुर जिला प्रशासन ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उधर चक्रधरपुर में सूचना समय पर न देने व टालमटोल कर जबाब देने के आरोप में नगरपालिका के विशेष पदाधिकारी अनिल कुमार को राज्य सूचना आयोग की तरफ से 25 हजार रुपये जुर्माना किया जा चुका है। अपील में आये 3555 मामलेझारखंड में सूचना कानून अधिनियम 2005 के लागू होने से लेकर अब तक अपील के 3555 मामले निस्तारित किये गये हैं। इसके अलावा 776 मामले लंबित हैं। झारखंड राज्य के सूचना आयुक्त बीएन मिश्रा ने बताया कि अभी तक 355 मामले निस्तारित किये गये हैं, जबकि 94 मामले लंबित हैं। इसके अलावा आयोग में पुनर्याचिका के 92 मामले आये, जिसमें 15 मामले लंबित हैं। उन्होंने बताया कि राज्य में कुल 45 अधिकारियों पर अभी तक सूचना कानून के तहत जुर्माना किया जा चुका है।
सोमवार, 9 नवंबर 2009
छठ पूजा की बिखरी छटा, सजे घाट
अशोक सिंह, जमशेदपुर : सूर्य जगत के पालनकर्ता हैं। अस्ताचलगामी सूर्य को शनिवार शाम व उदय होते सूर्य को रविवार सुबह जल व गाय के दूध का अर्ध्य समर्पित किया जायेगा। इस शुभ मौके पर श्रद्धालुओं की श्रद्धा व खुशी का ठिकाना नहीं होगा। छठ घाट सजधज कर तैयार हैं।
महिलाएं करेंगी विशेष श्रृंगार
भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए छठ व्रती महिलाएं खास तरह से श्रृंगार करती है। इसमें पीले सुनहरे रंग के सिंदूर का काफी महत्व होता है। छठ व्रत करने वाली महिलाएं सिर से नाक तक पीला सुनहरा सिंदूर लगाती हैं। मान्यता है कि पीले सुनहरे रंग के सिंदूर लगाने से महिलाएं सदा सुहागन रहती हैं। साथ ही महिलाओं पर छठ मइया की कृपा बनी रहती है।
आज सजेगा दउरा व सूप
छठ घाट पर ले जाने के लिए दउरा व सूप को विशेष रुप से सजाया जाता है जिसमें केला कांदी, गन्ना, कच्ची हल्दी, मूली, बड़ा नींबू, सिंघाड़ा, सेव, संतरा, अन्नास, ठेकुआ, लाल कपड़ा व लौंग रखा जाता है। इसके अलावा पान, कसैली, इलायची आदि सामान रखे जाते हैं। दउरा व सूप के भरा- पूरा होने से छठ मइया समृद्धि का आशीर्वाद देती है।
ठेकुआ हुआ तैयार
दउरा में रखने के लिए ठेकुआ तैयार कर लिया गया है। इसे बनाने से पहले साफ-सुथरे गेहूं की चुनाई की जाती है। फिर गेहूं की धुलाई कर परवैतीन महिलाएं धूप में बैठकर स्वयं सुखाती है। इसके बाद गेहूं की 'जाता' में पिसाई की जाती है। बाद में सांचे में ढालकर शुद्ध देशी घी में प्रसाद तैयार किया जाता है। ठेकुआ के अलावा प्रसाद में कचवनिया को भी शामिल किया जाता है।
प्रसाद ग्रहण के दौरान परबइतिन को नहीं पुकारा जाता
पंचमी के दिन यानी खरना को व्रती नमक नहीं खातीं। इसी दिन से छठ मइया का आह्वान शुरू हो जाता है। पंडित हेमंत पाठक ने बताया कि पंचमी यानी खरना के दिन प्रसाद ग्रहण करने के दौरान व्रती महिलाओं को आवाज नहीं दी जाती। खरना के दिन से ही महिलाएं मनोकामना पूरन की कामना करती है।
सूर्य हैं देवताओं के देवता
मान्यता है कि वर्षा के देवता इंद्र हैं लेकिन सूर्य अपने किरणों से जल को खींचकर उसे बादल में परिवर्तित करते हैं। तभी दुनिया में बारिश होती है। इस प्रकार सूर्य देवताओं के देवता हैं। चूंकि अन्य देवता दिखते नहीं हैं, सो, उनके अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगते रहे हैं लेकिन सूर्य प्रत्यक्ष देव हैं।
कांच ही बांस के बहंगिया..
कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाये.., केरवा जे फरला घवध से ता ऊपर सुगा मड़राय, तीरवा जो मरबो धनुष से सुगा गिरे मुरछाय, पहले पहले व्रत कइली सुरज होई सहाय.. आदि गीत दीवाली बीतते ही सुनाई पड़ने लगते हैं। छठ पर्व के दौरान बड़े-बड़े सिंगरों के दूसरे गाने फीके पड़ जाते हैं।
साफ-सफाई की मची होड़
छठ के मौके पर विभिन्न राजनीतिक दलों में घाटों-सड़कों की सफाई की होड़ लगी रहती है लेकिन गली-मुहल्ले वाले भी पीछे नहीं रहते। कोई छठ पर्व करे या न करे लेकिन लोग इस मौके पर अपने घरों के आस-पास की नालियां, सड़कों आदि की साफ-सफाई व्यापक पैमाने पर करते हैं।
महिलाएं करेंगी विशेष श्रृंगार
भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए छठ व्रती महिलाएं खास तरह से श्रृंगार करती है। इसमें पीले सुनहरे रंग के सिंदूर का काफी महत्व होता है। छठ व्रत करने वाली महिलाएं सिर से नाक तक पीला सुनहरा सिंदूर लगाती हैं। मान्यता है कि पीले सुनहरे रंग के सिंदूर लगाने से महिलाएं सदा सुहागन रहती हैं। साथ ही महिलाओं पर छठ मइया की कृपा बनी रहती है।
आज सजेगा दउरा व सूप
छठ घाट पर ले जाने के लिए दउरा व सूप को विशेष रुप से सजाया जाता है जिसमें केला कांदी, गन्ना, कच्ची हल्दी, मूली, बड़ा नींबू, सिंघाड़ा, सेव, संतरा, अन्नास, ठेकुआ, लाल कपड़ा व लौंग रखा जाता है। इसके अलावा पान, कसैली, इलायची आदि सामान रखे जाते हैं। दउरा व सूप के भरा- पूरा होने से छठ मइया समृद्धि का आशीर्वाद देती है।
ठेकुआ हुआ तैयार
दउरा में रखने के लिए ठेकुआ तैयार कर लिया गया है। इसे बनाने से पहले साफ-सुथरे गेहूं की चुनाई की जाती है। फिर गेहूं की धुलाई कर परवैतीन महिलाएं धूप में बैठकर स्वयं सुखाती है। इसके बाद गेहूं की 'जाता' में पिसाई की जाती है। बाद में सांचे में ढालकर शुद्ध देशी घी में प्रसाद तैयार किया जाता है। ठेकुआ के अलावा प्रसाद में कचवनिया को भी शामिल किया जाता है।
प्रसाद ग्रहण के दौरान परबइतिन को नहीं पुकारा जाता
पंचमी के दिन यानी खरना को व्रती नमक नहीं खातीं। इसी दिन से छठ मइया का आह्वान शुरू हो जाता है। पंडित हेमंत पाठक ने बताया कि पंचमी यानी खरना के दिन प्रसाद ग्रहण करने के दौरान व्रती महिलाओं को आवाज नहीं दी जाती। खरना के दिन से ही महिलाएं मनोकामना पूरन की कामना करती है।
सूर्य हैं देवताओं के देवता
मान्यता है कि वर्षा के देवता इंद्र हैं लेकिन सूर्य अपने किरणों से जल को खींचकर उसे बादल में परिवर्तित करते हैं। तभी दुनिया में बारिश होती है। इस प्रकार सूर्य देवताओं के देवता हैं। चूंकि अन्य देवता दिखते नहीं हैं, सो, उनके अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगते रहे हैं लेकिन सूर्य प्रत्यक्ष देव हैं।
कांच ही बांस के बहंगिया..
कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाये.., केरवा जे फरला घवध से ता ऊपर सुगा मड़राय, तीरवा जो मरबो धनुष से सुगा गिरे मुरछाय, पहले पहले व्रत कइली सुरज होई सहाय.. आदि गीत दीवाली बीतते ही सुनाई पड़ने लगते हैं। छठ पर्व के दौरान बड़े-बड़े सिंगरों के दूसरे गाने फीके पड़ जाते हैं।
साफ-सफाई की मची होड़
छठ के मौके पर विभिन्न राजनीतिक दलों में घाटों-सड़कों की सफाई की होड़ लगी रहती है लेकिन गली-मुहल्ले वाले भी पीछे नहीं रहते। कोई छठ पर्व करे या न करे लेकिन लोग इस मौके पर अपने घरों के आस-पास की नालियां, सड़कों आदि की साफ-सफाई व्यापक पैमाने पर करते हैं।
नारी सशक्तीकरण की नई परिभाषा गढ़ रही साधना
-: जागरण स्पेशल :-
--पति समेत तीन बच्चे पूरी तरह विकलांग--
--खुद अनपढ़ होते हुए अपने विकलांग बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने की दृढ़ इच्छा शक्ति
अशोक सिंह, जमशेदपुर : भालुबासा की साधना दास के परिवार का पूरा कुनबा ही विकलांग है। बावजूद इसके वह नारी सशक्तीकरण की नई परिभाषा गढ़ रही है। उसके परिवार के अधिकांश सदस्यों के विकलांग होने के बावजूद वह जिन्दगी से हार मानने को तैयार नहीं है। उसका विकलांग पति भीमदास कहता है कि जो उसे विकलांग मानते हैं वे खुद विकलांग हैं, तभी तो शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए उसका परिवार प्रेरणाश्रोत बना हुआ है।
मानगो की रहने वाली साधना दास की शादी 23 वर्ष पूर्व बोकारो के सीदी गांव के भीम दास से हुई थी। हालांकि भीमदास के पूर्वज काफी पहले जमशेदपुर आ चुके थे। यहां पर शादी के बाद से ही भालुबासा के हरिजन स्कूल के सामने फुटपाथ पर उनकी सब्जी की दुकान है। उसी फुटपाथ पर उसके पूरे परिवार का रहना, खाना व सोना होता है। शादी के बाद उसके चार बच्चे हुए, जिसमें तीन पूरी तरह से विकलांग हैं। आज सभी बच्चे 16 से 21 वर्ष के बीच हैं। तीन विकलांग बच्चों में से दो संजय दास व रवि दास को-आपरेटिव कालेज के बी. काम के छात्र हैं जबकि तीसरा विपिन दास इंटर का छात्र है।
साधना दास खुद पढ़ी-लिखी नहीं है लेकिन अपने विकलांग बच्चों को उच्च शिक्षा की तालीम दिलाने की दृढ़ इच्छा शक्ति रखती है। सब्जी बेचकर बमुश्किल अपने परिवार के लिये दो जून की रोटी का जुगाड़ कर रही साधना पूछे जाने पर बताती है कि बाबू मेरा परिवार मुश्किल से चल रहा है। फुटपाथ पर सब्जी बेचकर कितनी आमदनी हो सकती है, आप भी अंदाजा लगा सकते हैं। उसका कहना है कि खायेंगे कम लेकिन बच्चों को जरूर पढ़ायेंगे। अपने परिवार के साथ फुटपाथ पर रहने वाली साधना की सबसे बड़ी पीड़ा आवास की है। घर में पति समेत तीन-तीन जवान बच्चे विकलांग हैं। शौच को लेकर परेशानी यह कि सभी को कंधों पर टांगकर कुछ दूर स्थित सार्वजनिक शौचालय में ले जाना पड़ता है। एसपी अजय कुमार के समय में फुटपाथ की दुकानों को तोड़ दिया गया था। तब उन्होंने उसे आवास मुहैया कराने का वादा किया था। आज भी सरकारी कार्यालयों में दर-दर भटकने के बावजूद उसे आवास मुहैया नहीं हो पाया है।
प्रकाशन तिथि-26 सितंबर, जमशेदपुर संस्करण पेज चार
--पति समेत तीन बच्चे पूरी तरह विकलांग--
--खुद अनपढ़ होते हुए अपने विकलांग बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने की दृढ़ इच्छा शक्ति
अशोक सिंह, जमशेदपुर : भालुबासा की साधना दास के परिवार का पूरा कुनबा ही विकलांग है। बावजूद इसके वह नारी सशक्तीकरण की नई परिभाषा गढ़ रही है। उसके परिवार के अधिकांश सदस्यों के विकलांग होने के बावजूद वह जिन्दगी से हार मानने को तैयार नहीं है। उसका विकलांग पति भीमदास कहता है कि जो उसे विकलांग मानते हैं वे खुद विकलांग हैं, तभी तो शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए उसका परिवार प्रेरणाश्रोत बना हुआ है।
मानगो की रहने वाली साधना दास की शादी 23 वर्ष पूर्व बोकारो के सीदी गांव के भीम दास से हुई थी। हालांकि भीमदास के पूर्वज काफी पहले जमशेदपुर आ चुके थे। यहां पर शादी के बाद से ही भालुबासा के हरिजन स्कूल के सामने फुटपाथ पर उनकी सब्जी की दुकान है। उसी फुटपाथ पर उसके पूरे परिवार का रहना, खाना व सोना होता है। शादी के बाद उसके चार बच्चे हुए, जिसमें तीन पूरी तरह से विकलांग हैं। आज सभी बच्चे 16 से 21 वर्ष के बीच हैं। तीन विकलांग बच्चों में से दो संजय दास व रवि दास को-आपरेटिव कालेज के बी. काम के छात्र हैं जबकि तीसरा विपिन दास इंटर का छात्र है।
साधना दास खुद पढ़ी-लिखी नहीं है लेकिन अपने विकलांग बच्चों को उच्च शिक्षा की तालीम दिलाने की दृढ़ इच्छा शक्ति रखती है। सब्जी बेचकर बमुश्किल अपने परिवार के लिये दो जून की रोटी का जुगाड़ कर रही साधना पूछे जाने पर बताती है कि बाबू मेरा परिवार मुश्किल से चल रहा है। फुटपाथ पर सब्जी बेचकर कितनी आमदनी हो सकती है, आप भी अंदाजा लगा सकते हैं। उसका कहना है कि खायेंगे कम लेकिन बच्चों को जरूर पढ़ायेंगे। अपने परिवार के साथ फुटपाथ पर रहने वाली साधना की सबसे बड़ी पीड़ा आवास की है। घर में पति समेत तीन-तीन जवान बच्चे विकलांग हैं। शौच को लेकर परेशानी यह कि सभी को कंधों पर टांगकर कुछ दूर स्थित सार्वजनिक शौचालय में ले जाना पड़ता है। एसपी अजय कुमार के समय में फुटपाथ की दुकानों को तोड़ दिया गया था। तब उन्होंने उसे आवास मुहैया कराने का वादा किया था। आज भी सरकारी कार्यालयों में दर-दर भटकने के बावजूद उसे आवास मुहैया नहीं हो पाया है।
प्रकाशन तिथि-26 सितंबर, जमशेदपुर संस्करण पेज चार
कीमतों में लगी आग पर कम नहीं छठ का उत्साह
--दो दिनों में चीनी में दो रुपये की तेजी, लौकी महंगी होने की उम्मीद--
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अशोक सिंह, जमशेदपुर : खाद्य पदार्थो की बढ़ती कीमतों ने लोगों के खाने का स्वाद खराब कर दिया है। लेकिन पेट की आग पर धर्म की आस्था भारी पड़ रही है। यही कारण है कि जहां बाजार में खाद्य पदार्थो की कीमतों में आग लगी हुई है, वहीं छठ व्रत का पालन करने वाले धर्मावलंबी पूजन की तैयारी में जुटे हुए हैं। महंगाई की मार झेल रहे लोगों का कहना है कि वे एक वक्त सब्जी भले ही न खायें पर छठ का पालन करने में कोई कोताही नहीं बरतेंगे। छठ के मद्देनजर ही बाजार में कीमतें आसमान छू रही हैं।
पिछले छठ से लेकर इस छठ तक प्रमुख खाद्य पदार्थो की कीमतों में लगातार तेजी बनी हुई है। चाहे वह चीनी हो, दाल हो या आलू-प्याज। यहां तक कि छठ पर्व में सबसे उपयोगी माना जाने वाला सुस्त गेहूं भी तेजी की चपेट में है।
चीनी में बढ़ी चमक
छठ पर्व में मिठास घोलने में चीनी व गुड़ का खास महत्व होता है। पिछले दो दिनों में चीनी में दो रुपये प्रति किलो दाम बढ़े हैं। साकची बाजार के खुदरा किराना दुकानदार मुरारी लाल के मुताबिक मंडी में चीनी की कमी का असर कीमतों पर पड़ा है। वहीं गुड़ काफी दिनों से चीनी को पीछे छोड़ चुका है। कुछ साल पहले तक गुड़ के समाने चीनी में ज्यादा चमक रहती था। लेकिन हाल के दिनों में गुड़ अपना रिकार्ड कायम किया है। बाजार में चीन दो रुपये बढ़कर 34 रुपये प्रतिकिलो चल रहा है तो गुड़ 36 से 40 रुपये तक मिल रहा है।
आलू-प्याज ने रुलाया
पर्व त्योहार के अवसर पर सब्जियों में सबसे जरूरी आलू-प्याज की कीमत अभी भी आसमान पर है। सबसे सस्ता माने जाने वाले आलू-प्याज की कीमत फिलहाल हरी सब्जियों को मात दे रही है। छठ पर सबसे महत्वपूर्ण माने जाने वाली लौकी तो सभी को पछाड़ चुकी है। इसकी कीमत फिलहाल खुदरा बाजार में 25 रुपये प्रति किलो तक है। नहाय-खाय तक तो यह और आसमान पर रहेगा।
गेहूं में बढ़ी गर्मी
छठ पर्व पर गेहूं की अहमियत बहुत ज्यादा होती है, क्योंकि गेहूं से प्रसाद आदि बनाया जाता है। समान दिनों के मुकाबले गेहूं की कीमतों में तेजी तो है ही लेकिन छठ के मौके पर इसकी गर्मी और बढ़ गयी है। पिछले साल मंडियों में सामान्य गेहूं की कीमत करीब 1000-1200 रुपये प्रति क्विंटल थे। इस साल सामान्य गेहूं की कीमत 1500 प्रति क्विंटल तक है। वहीं खुदरा बाजार में गेहूं 18 से 20 रुपये प्रति किलो बिक रहा है।
दहक रही दाल
दाल की कीमत ने इस छठ के दौरान रिकार्ड तोड़ दिया है। पिछले तीन महीने से दाल के भाव में 60 फीसदी तेजी चल रही है। अरहर दाल की थोक मंडी में कीमत 85 रुपये प्रतिकिलो है जबकि मूंग दाल भी 84 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रहा है। पिछले छठ की बात करते तो अरहर व मूंग दालों की कीमत 40-45 व 40-42 प्रति किलोग्राम थे। दालों के हर वैरायटी में तकरीबन 40 फीसदी की तेजी आई है। कारोबारी मुरारी लाल ने बतया कि दाल में एक-दो दिनों में और तेजी आने की संभावना है।
चावल की चाहत
जरूरी खाद पदार्थो में चावल एक ऐसा चीज है जिसके भाव में कोई ज्यादा फेरबदल नहीं हुआ है। लेकिन मौका छठ का हो नये चावल का दाम न बढ़े ऐसा हो नहीं सका। खुदरा बाजार में नये अरवा चावल बीस रुपये से 24 रुपये तक बिक रहा है। वहीं अच्छे क्वालिटी के गोल दाने का चावल 44 रुपये प्रति किलो है।
खुदरा बाजार में फलों के दाम प्रति किलो
सेब : 80
संतरा : 60
अनार : 100
मोसम्मी : 40
केला कांदी : 250 से 300
अंगूर : 80
शरीफा : 25
नासपाती : 120
बड़ा नींबू : 15
गन्ना : 75 बंडल
मूली : 15
अन्नास : 50 पीस
शकरकंद : 24
नारियल : 12 पीस
खाद पदार्थ प्रति किलो
चीनी : 34
गुड़ : 36
अरहर दाल : 85
मसूर दाल : 60
मूंग : 84
गेहूं : 18-20
नया अरवा
चावल : 20
नया अरवा
चावल(गोलदाना) : 44
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अशोक सिंह, जमशेदपुर : खाद्य पदार्थो की बढ़ती कीमतों ने लोगों के खाने का स्वाद खराब कर दिया है। लेकिन पेट की आग पर धर्म की आस्था भारी पड़ रही है। यही कारण है कि जहां बाजार में खाद्य पदार्थो की कीमतों में आग लगी हुई है, वहीं छठ व्रत का पालन करने वाले धर्मावलंबी पूजन की तैयारी में जुटे हुए हैं। महंगाई की मार झेल रहे लोगों का कहना है कि वे एक वक्त सब्जी भले ही न खायें पर छठ का पालन करने में कोई कोताही नहीं बरतेंगे। छठ के मद्देनजर ही बाजार में कीमतें आसमान छू रही हैं।
पिछले छठ से लेकर इस छठ तक प्रमुख खाद्य पदार्थो की कीमतों में लगातार तेजी बनी हुई है। चाहे वह चीनी हो, दाल हो या आलू-प्याज। यहां तक कि छठ पर्व में सबसे उपयोगी माना जाने वाला सुस्त गेहूं भी तेजी की चपेट में है।
चीनी में बढ़ी चमक
छठ पर्व में मिठास घोलने में चीनी व गुड़ का खास महत्व होता है। पिछले दो दिनों में चीनी में दो रुपये प्रति किलो दाम बढ़े हैं। साकची बाजार के खुदरा किराना दुकानदार मुरारी लाल के मुताबिक मंडी में चीनी की कमी का असर कीमतों पर पड़ा है। वहीं गुड़ काफी दिनों से चीनी को पीछे छोड़ चुका है। कुछ साल पहले तक गुड़ के समाने चीनी में ज्यादा चमक रहती था। लेकिन हाल के दिनों में गुड़ अपना रिकार्ड कायम किया है। बाजार में चीन दो रुपये बढ़कर 34 रुपये प्रतिकिलो चल रहा है तो गुड़ 36 से 40 रुपये तक मिल रहा है।
आलू-प्याज ने रुलाया
पर्व त्योहार के अवसर पर सब्जियों में सबसे जरूरी आलू-प्याज की कीमत अभी भी आसमान पर है। सबसे सस्ता माने जाने वाले आलू-प्याज की कीमत फिलहाल हरी सब्जियों को मात दे रही है। छठ पर सबसे महत्वपूर्ण माने जाने वाली लौकी तो सभी को पछाड़ चुकी है। इसकी कीमत फिलहाल खुदरा बाजार में 25 रुपये प्रति किलो तक है। नहाय-खाय तक तो यह और आसमान पर रहेगा।
गेहूं में बढ़ी गर्मी
छठ पर्व पर गेहूं की अहमियत बहुत ज्यादा होती है, क्योंकि गेहूं से प्रसाद आदि बनाया जाता है। समान दिनों के मुकाबले गेहूं की कीमतों में तेजी तो है ही लेकिन छठ के मौके पर इसकी गर्मी और बढ़ गयी है। पिछले साल मंडियों में सामान्य गेहूं की कीमत करीब 1000-1200 रुपये प्रति क्विंटल थे। इस साल सामान्य गेहूं की कीमत 1500 प्रति क्विंटल तक है। वहीं खुदरा बाजार में गेहूं 18 से 20 रुपये प्रति किलो बिक रहा है।
दहक रही दाल
दाल की कीमत ने इस छठ के दौरान रिकार्ड तोड़ दिया है। पिछले तीन महीने से दाल के भाव में 60 फीसदी तेजी चल रही है। अरहर दाल की थोक मंडी में कीमत 85 रुपये प्रतिकिलो है जबकि मूंग दाल भी 84 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रहा है। पिछले छठ की बात करते तो अरहर व मूंग दालों की कीमत 40-45 व 40-42 प्रति किलोग्राम थे। दालों के हर वैरायटी में तकरीबन 40 फीसदी की तेजी आई है। कारोबारी मुरारी लाल ने बतया कि दाल में एक-दो दिनों में और तेजी आने की संभावना है।
चावल की चाहत
जरूरी खाद पदार्थो में चावल एक ऐसा चीज है जिसके भाव में कोई ज्यादा फेरबदल नहीं हुआ है। लेकिन मौका छठ का हो नये चावल का दाम न बढ़े ऐसा हो नहीं सका। खुदरा बाजार में नये अरवा चावल बीस रुपये से 24 रुपये तक बिक रहा है। वहीं अच्छे क्वालिटी के गोल दाने का चावल 44 रुपये प्रति किलो है।
खुदरा बाजार में फलों के दाम प्रति किलो
सेब : 80
संतरा : 60
अनार : 100
मोसम्मी : 40
केला कांदी : 250 से 300
अंगूर : 80
शरीफा : 25
नासपाती : 120
बड़ा नींबू : 15
गन्ना : 75 बंडल
मूली : 15
अन्नास : 50 पीस
शकरकंद : 24
नारियल : 12 पीस
खाद पदार्थ प्रति किलो
चीनी : 34
गुड़ : 36
अरहर दाल : 85
मसूर दाल : 60
मूंग : 84
गेहूं : 18-20
नया अरवा
चावल : 20
नया अरवा
चावल(गोलदाना) : 44
मनोकामना या स्वार्थ
--धार्मिक भावनाओं के साथ हो रहा खिलवाड़--
जमशेदपुर : छठ व्रत के पावन अवसर पर उगते व डूबते सूरज को अर्घ्य देना महज परंपरा नहीं है, बल्कि इसमें जीवन का महत्वपूर्ण सार छिपा होता है। इस लिए पूरब के इस व्रत को मनाने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसा कहा जाता है कि मनोकामना पूरी करने के लिए भीख मांगकर छठ करने की परंपरा है। यद्यपि कुछ लोग अति निर्धन होने के कारण भीख मांगकर छठ व्रत के पुण्य की प्राप्ति करते हैं। मगर उसका दूसरा पहलू यह भी है कि हाल के वर्षो में छठ आते ही सड़कों, बाजारों व मुहल्लों में छठ व्रत करने के लिए भीख मांगने वालों की भीड़ बढ़ती जा रही है। पेश है आस्था से जुड़े इस मुद्दे की सच्चाई उजागर करती रिपोर्ट-
भीख मांगकर छठ करने वालों की तादाद खास कर साकची बाजार में काफी देखा जा सकती है। मंगलवार को दोपहर साढ़े बारह बजे गाड़ी रोकते ही हाथ में लाल कपड़े से ढका सूप लिए एक महिला सामने आती है और छठ के नाम पर कुछ पैसे मांगती है। पैसे लेकर वह आगे बढ़ जाती है। तभी अनयास ही मेरे मुंह एक सवाल निकल जाता है, तुम इस पैसे को क्या करोगी, बताने से बचते हुये वह तेजी से आगे बढ़ जाती है। उसकी बच्ची ने बताया कि शाम को इस पैसे से चावल खरीदेंगे। इस तरह से मेरे मन में उत्सुकता हुई, और इसको लेकर और खोजबीन की। एक अधेड़ महिला मिलती है। उसे छठ व्रत के बारे में कुछ भी पता नहीं है। कब से शुरू हो रहा है छठ, किस दिन प्रथम अर्घ्य है। इसका मतलब उसे मालूम नहीं है। लेकिन वह छठ के नाम पर लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रही है। उससे बातचीत करने पर कहीं से नहीं लगा कि वह छठ करने वाली है या कभी की है।
भीख से मिलता है निवाला
पिछले एक माह से भालुबासा के आसपास के क्षेत्रों में छठ के नाम पर भीख मांग रही कामली को छठ की महत्ता को बताने के बाद बताती है कि इसी के सहारे उसके परिवार को निवाला मिलता है। हालांकि कमला का भरापूरा परिवार है पर पति के शराबी होने के चलते परिवार की गाड़ी उसी को खींचनी पड़ती है। अनपढ़ होने के चलते उसे जीविकोपार्जन के लिये भिक्षाटन का सहारा लेना पड़ा है। वैसे तो छठ व्रत से उसका कोई लेना-देना नहीं है पर उसे यह पता है कि छठ व्रत के नाम पर भीख देने से जल्दी कोई इनकार नहीं करता है। यही कारण है कि पिछले एक माह से वह छठ के नाम पर भीख मांग रही है। उसने बताया कि जब वह छठ के नाम पर भीख मांगती है तो उसे अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है और उसके परिवार को दो जून की रोटी मयस्सर हो जाती है।
फोटो---
छठ के नाम पर चल रही इनकी जीविका
जमशेदपुर : छठ व्रत के पावन अवसर पर उगते व डूबते सूरज को अर्घ्य देना महज परंपरा नहीं है वरन इसमें जीवन का महत्वपूर्ण सार छिपा है। शायद इस कारण ही पूरब के इस व्रत को मनाने वाले लोगों की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। सामान्यत: मनोकामना पूरी करने के लिए भीख मांगकर छठ करने की परंपरा रही है। वहीं कुछ लोग अति निर्धन होने के कारण भी भीक्षाटन कर छठ व्रत करते हैं। तो दूसरा पहलू यह भी है कि हाल के वर्षो में छठ आते ही बाजारों व मुहल्लों में छठ व्रत करने के लिए भीख मांगने वालों की तादाद बढ़ जाती है लेकिन अधिकांश मामलों में छठ के नाम पर दो जून की रोटी का जुगाड़ करने की कोशिश होती है। साकची बाजार में मंगलवार दोपहर साढ़े बारह बजे गाड़ी रोकते ही हाथ में लाल कपड़े से ढका सूप लिए एक महिला सामने आती है और छठ के नाम पर कुछ पैसे मांगती है। पैसा मिलते ही आगे बढ़ जाती है। यह पूछने पर कि क्या वास्तव में वह छठ करेगी, वह बिना बोले आगे बढ़ जाती है। तब तक साथ चल रही उसकी बच्ची बताती है कि शाम को पैसे से चावल खरीदेंगे। थोड़ी ही देर में एक अधेड़ महिला मिलती है। उसे छठ व्रत के बारे में कुछ भी पता नहीं है। कब से शुरू हो रहा है छठ, किस दिन प्रथम अर्घ्य है लेकिन वह भी छठ के नाम पर लोगों से पैसे मांग रही है। भीख से मिलता है निवाला
पिछले एक महीने से भालूबासा के आसपास के क्षेत्रों में छठ के नाम पर भीख मांग रही कामली बताती है कि इसी के सहारे उसके परिवार को निवाला मिलता है। हालांकि कमला का भरापूरा परिवार है पर पति के शराबी होने के चलते परिवार की गाड़ी उसी को खींचनी पड़ती है। अनपढ़ होने के चलते उसे जीविकोपार्जन के लिये भिक्षाटन का सहारा लेना पड़ता है। वैसे तो छठ व्रत से उसका कोई लेना-देना नहीं है पर उसे यह पता है कि छठ व्रत के नाम पर भीख देने से जल्दी कोई इनकार नहीं करता। यही कारण है कि पिछले एक महीने से वह छठ के नाम पर भीख मांग रही है। उसने बताया कि जब वह छठ के नाम पर भीख मांगती है तो उसे अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है और उसके परिवार को दो जून की रोटी मयस्सर हो जाती है।
जमशेदपुर : छठ व्रत के पावन अवसर पर उगते व डूबते सूरज को अर्घ्य देना महज परंपरा नहीं है, बल्कि इसमें जीवन का महत्वपूर्ण सार छिपा होता है। इस लिए पूरब के इस व्रत को मनाने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसा कहा जाता है कि मनोकामना पूरी करने के लिए भीख मांगकर छठ करने की परंपरा है। यद्यपि कुछ लोग अति निर्धन होने के कारण भीख मांगकर छठ व्रत के पुण्य की प्राप्ति करते हैं। मगर उसका दूसरा पहलू यह भी है कि हाल के वर्षो में छठ आते ही सड़कों, बाजारों व मुहल्लों में छठ व्रत करने के लिए भीख मांगने वालों की भीड़ बढ़ती जा रही है। पेश है आस्था से जुड़े इस मुद्दे की सच्चाई उजागर करती रिपोर्ट-
भीख मांगकर छठ करने वालों की तादाद खास कर साकची बाजार में काफी देखा जा सकती है। मंगलवार को दोपहर साढ़े बारह बजे गाड़ी रोकते ही हाथ में लाल कपड़े से ढका सूप लिए एक महिला सामने आती है और छठ के नाम पर कुछ पैसे मांगती है। पैसे लेकर वह आगे बढ़ जाती है। तभी अनयास ही मेरे मुंह एक सवाल निकल जाता है, तुम इस पैसे को क्या करोगी, बताने से बचते हुये वह तेजी से आगे बढ़ जाती है। उसकी बच्ची ने बताया कि शाम को इस पैसे से चावल खरीदेंगे। इस तरह से मेरे मन में उत्सुकता हुई, और इसको लेकर और खोजबीन की। एक अधेड़ महिला मिलती है। उसे छठ व्रत के बारे में कुछ भी पता नहीं है। कब से शुरू हो रहा है छठ, किस दिन प्रथम अर्घ्य है। इसका मतलब उसे मालूम नहीं है। लेकिन वह छठ के नाम पर लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रही है। उससे बातचीत करने पर कहीं से नहीं लगा कि वह छठ करने वाली है या कभी की है।
भीख से मिलता है निवाला
पिछले एक माह से भालुबासा के आसपास के क्षेत्रों में छठ के नाम पर भीख मांग रही कामली को छठ की महत्ता को बताने के बाद बताती है कि इसी के सहारे उसके परिवार को निवाला मिलता है। हालांकि कमला का भरापूरा परिवार है पर पति के शराबी होने के चलते परिवार की गाड़ी उसी को खींचनी पड़ती है। अनपढ़ होने के चलते उसे जीविकोपार्जन के लिये भिक्षाटन का सहारा लेना पड़ा है। वैसे तो छठ व्रत से उसका कोई लेना-देना नहीं है पर उसे यह पता है कि छठ व्रत के नाम पर भीख देने से जल्दी कोई इनकार नहीं करता है। यही कारण है कि पिछले एक माह से वह छठ के नाम पर भीख मांग रही है। उसने बताया कि जब वह छठ के नाम पर भीख मांगती है तो उसे अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है और उसके परिवार को दो जून की रोटी मयस्सर हो जाती है।
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छठ के नाम पर चल रही इनकी जीविका
जमशेदपुर : छठ व्रत के पावन अवसर पर उगते व डूबते सूरज को अर्घ्य देना महज परंपरा नहीं है वरन इसमें जीवन का महत्वपूर्ण सार छिपा है। शायद इस कारण ही पूरब के इस व्रत को मनाने वाले लोगों की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। सामान्यत: मनोकामना पूरी करने के लिए भीख मांगकर छठ करने की परंपरा रही है। वहीं कुछ लोग अति निर्धन होने के कारण भी भीक्षाटन कर छठ व्रत करते हैं। तो दूसरा पहलू यह भी है कि हाल के वर्षो में छठ आते ही बाजारों व मुहल्लों में छठ व्रत करने के लिए भीख मांगने वालों की तादाद बढ़ जाती है लेकिन अधिकांश मामलों में छठ के नाम पर दो जून की रोटी का जुगाड़ करने की कोशिश होती है। साकची बाजार में मंगलवार दोपहर साढ़े बारह बजे गाड़ी रोकते ही हाथ में लाल कपड़े से ढका सूप लिए एक महिला सामने आती है और छठ के नाम पर कुछ पैसे मांगती है। पैसा मिलते ही आगे बढ़ जाती है। यह पूछने पर कि क्या वास्तव में वह छठ करेगी, वह बिना बोले आगे बढ़ जाती है। तब तक साथ चल रही उसकी बच्ची बताती है कि शाम को पैसे से चावल खरीदेंगे। थोड़ी ही देर में एक अधेड़ महिला मिलती है। उसे छठ व्रत के बारे में कुछ भी पता नहीं है। कब से शुरू हो रहा है छठ, किस दिन प्रथम अर्घ्य है लेकिन वह भी छठ के नाम पर लोगों से पैसे मांग रही है। भीख से मिलता है निवाला
पिछले एक महीने से भालूबासा के आसपास के क्षेत्रों में छठ के नाम पर भीख मांग रही कामली बताती है कि इसी के सहारे उसके परिवार को निवाला मिलता है। हालांकि कमला का भरापूरा परिवार है पर पति के शराबी होने के चलते परिवार की गाड़ी उसी को खींचनी पड़ती है। अनपढ़ होने के चलते उसे जीविकोपार्जन के लिये भिक्षाटन का सहारा लेना पड़ता है। वैसे तो छठ व्रत से उसका कोई लेना-देना नहीं है पर उसे यह पता है कि छठ व्रत के नाम पर भीख देने से जल्दी कोई इनकार नहीं करता। यही कारण है कि पिछले एक महीने से वह छठ के नाम पर भीख मांग रही है। उसने बताया कि जब वह छठ के नाम पर भीख मांगती है तो उसे अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है और उसके परिवार को दो जून की रोटी मयस्सर हो जाती है।
आरटीआई की मदद से अफसर बनी नेत्रहीन रंजू
नारी सशक्तीकरण को सूचना के अधिकार ने दिया नया जोश
अशोक सिंह, जमशेदपुर : सूचना का अधिकार यानी आरटीआई यानी राइट टू इनफारमेशन महज जानकारी प्राप्त करने का जरिया नहीं बल्कि यह किसी के जीवन में सौभाग्य का दरवाजा भी खोल सकता है। शर्त सिर्फ यह कि व्यक्ति में लक्ष्य हासिल करने का जज्बा हो। और, इसी जज्बे को दिखाया है जमशेदपुर में पली-बढ़ी रंजू कुमारी ने। आरटीआई का उपयोग कर रंजू झारखंड सरकार में वाणिज्य कर अधिकारी बनने में कामयाब हुई है और अपने जज्बा का झंडा गाड़ा। सोने पर सुहागा यह कि उसने यह कार्य नेत्रहीन होने के बावजूद किया। कामयाबी का कदम छूने में विकलांगता बाधक नहीं बन सकी। डालटेनगंज के मूल निवासी और झारखंड सरकार में इंजीनियर अपने पिता राजेन्द्र प्रसाद और घरेलू महिला माता से 'सुन-सुन कर' शिक्षा-दीक्षा हासिल करने वाली रंजू कभी स्कूल नहीं गयी। प्राइवेट छात्रा के रूप में पढ़ाई करती गयी और बीएड करने के बाद राजनीति विज्ञान में एमए की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की। इसके बाद ही आया उसके जीवन में नया मोड़। झारखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षा में वह बैठी, इस उम्मीद के साथ कि शारीरिक विकलांग लोगों के तीन प्रतिशत आरक्षण का लाभ शायद उसे भी मिल जाये। लिखित परीक्षा उसने निकाल ली। पर इंटरव्यू के लिए बुलावा नहीं आया। उसके जेहन में यह सवाल बना रहा कि आखिर कौन-कौन लोग इंटरव्यू के बुलाये गये, और कितने प्रतिशत अंक मिले थे। सवाल ठ्ठ शेष पृष्ठ 17 परका जवाब कहीं से नहीं मिल रहा था। घटना 2007 की है। इसी बीच सूचना का अधिकार कानून बन चुका था। इसी बीच झारखंड विकलांग मंच की मदद से उसने सूचना के अधिकार के तहत जेपीएससी से जानकारी मांगी कि उक्त परीक्षा में तीन प्रतिशत आरक्षण का लाभ किन-किन अभ्यर्थियों को मिला। पहले तो जानकारी देने में जेपीएससी ने काफी आनाकानी की। लेकिन रंजू ने हिम्मत नहीं हारी। राज्य सूचना आयोग तक वह गयी। सूचना आयुक्त बैजनाथ मिश्र का पूरा सहयोग मिला। बाध्य होकर जेपीएससी ने यह सूचना दी कि तीन प्रतिशत आरक्षण के तहत किसी अभ्यर्थी का चयन नहीं हुआ। रंजू ने फिर आरटीआई का सहारा लिया। पूछा कि संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन क्यों और कैसे हो गया? तब जेपीएससी को अपने चूक का अहसास हुआ। आनन-फानन में विकलांग कोटे से 15 अभ्यर्थियों को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। संयोग से इनमें रंजू भी एक थी। इसके भाग्य ने यहां फिर साथ दिया। उसका चयन हो गया। आज वह जमशेदपुर में वाणिज्य कर अधिकारी के रूप में कार्यरत है। आरटीआई के तहत एक साल की लड़ाई के बाद उसे सफलता मिली। रंजू के मुताबिक समाज से उसे कोई शिकायत नहीं, लोगों से कोई गिला नहीं। विकलांगता को वह अभिशाप नहीं मानती। उसका स्पष्ट मानना है कि यदि इरादा पक्का हो तो कोई काम मुश्किल नहीं। उसके मुताबिक आरटीआई ने नारी सशक्तीकरण को नया जोश दिया है। वह बताती है कि हर किसी को आरटीआई का उपयोग करना चाहिये। इस कानून में असीम शक्ति है। इसका दायरा इतना विस्तृत है कि उसे बयां नहीं किया जा सकता। रंजू के मुताबिक उसे जब और जहां मौका मिलता है आरटीआई को लेकर जागरूकता अभियान चलाती है। झारखंड आरटीआई फोरम और सिटीजन क्लब ने आरटीआई की चौथी वर्षगांठ पर रंजू के जज्बे को सलाम करते हुये उसे सम्मानित किया। रंजू राज्य उन चुनिंदा 50 लोगों में शामिल थी। जिन्हें आरटीआई अवार्ड प्रदान किया गया। रंजू के मामा और रांची मारवाड़ी कालेज में भौतिकी के प्रोफेसर डा. जेएल अग्रवाल रंजू को मिले सम्मान को बहुत बड़ी उपलब्धि मानते हैं। उनके मुताबिक समाज के लिए यह एक उदाहरण है। डा. अग्रवाल के अनुसार रंजू ने एक नई रहा दिखाई है। जिस पर चलकर कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में नया आयाम जोड़ सकता है।
अशोक सिंह, जमशेदपुर : सूचना का अधिकार यानी आरटीआई यानी राइट टू इनफारमेशन महज जानकारी प्राप्त करने का जरिया नहीं बल्कि यह किसी के जीवन में सौभाग्य का दरवाजा भी खोल सकता है। शर्त सिर्फ यह कि व्यक्ति में लक्ष्य हासिल करने का जज्बा हो। और, इसी जज्बे को दिखाया है जमशेदपुर में पली-बढ़ी रंजू कुमारी ने। आरटीआई का उपयोग कर रंजू झारखंड सरकार में वाणिज्य कर अधिकारी बनने में कामयाब हुई है और अपने जज्बा का झंडा गाड़ा। सोने पर सुहागा यह कि उसने यह कार्य नेत्रहीन होने के बावजूद किया। कामयाबी का कदम छूने में विकलांगता बाधक नहीं बन सकी। डालटेनगंज के मूल निवासी और झारखंड सरकार में इंजीनियर अपने पिता राजेन्द्र प्रसाद और घरेलू महिला माता से 'सुन-सुन कर' शिक्षा-दीक्षा हासिल करने वाली रंजू कभी स्कूल नहीं गयी। प्राइवेट छात्रा के रूप में पढ़ाई करती गयी और बीएड करने के बाद राजनीति विज्ञान में एमए की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की। इसके बाद ही आया उसके जीवन में नया मोड़। झारखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षा में वह बैठी, इस उम्मीद के साथ कि शारीरिक विकलांग लोगों के तीन प्रतिशत आरक्षण का लाभ शायद उसे भी मिल जाये। लिखित परीक्षा उसने निकाल ली। पर इंटरव्यू के लिए बुलावा नहीं आया। उसके जेहन में यह सवाल बना रहा कि आखिर कौन-कौन लोग इंटरव्यू के बुलाये गये, और कितने प्रतिशत अंक मिले थे। सवाल ठ्ठ शेष पृष्ठ 17 परका जवाब कहीं से नहीं मिल रहा था। घटना 2007 की है। इसी बीच सूचना का अधिकार कानून बन चुका था। इसी बीच झारखंड विकलांग मंच की मदद से उसने सूचना के अधिकार के तहत जेपीएससी से जानकारी मांगी कि उक्त परीक्षा में तीन प्रतिशत आरक्षण का लाभ किन-किन अभ्यर्थियों को मिला। पहले तो जानकारी देने में जेपीएससी ने काफी आनाकानी की। लेकिन रंजू ने हिम्मत नहीं हारी। राज्य सूचना आयोग तक वह गयी। सूचना आयुक्त बैजनाथ मिश्र का पूरा सहयोग मिला। बाध्य होकर जेपीएससी ने यह सूचना दी कि तीन प्रतिशत आरक्षण के तहत किसी अभ्यर्थी का चयन नहीं हुआ। रंजू ने फिर आरटीआई का सहारा लिया। पूछा कि संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन क्यों और कैसे हो गया? तब जेपीएससी को अपने चूक का अहसास हुआ। आनन-फानन में विकलांग कोटे से 15 अभ्यर्थियों को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। संयोग से इनमें रंजू भी एक थी। इसके भाग्य ने यहां फिर साथ दिया। उसका चयन हो गया। आज वह जमशेदपुर में वाणिज्य कर अधिकारी के रूप में कार्यरत है। आरटीआई के तहत एक साल की लड़ाई के बाद उसे सफलता मिली। रंजू के मुताबिक समाज से उसे कोई शिकायत नहीं, लोगों से कोई गिला नहीं। विकलांगता को वह अभिशाप नहीं मानती। उसका स्पष्ट मानना है कि यदि इरादा पक्का हो तो कोई काम मुश्किल नहीं। उसके मुताबिक आरटीआई ने नारी सशक्तीकरण को नया जोश दिया है। वह बताती है कि हर किसी को आरटीआई का उपयोग करना चाहिये। इस कानून में असीम शक्ति है। इसका दायरा इतना विस्तृत है कि उसे बयां नहीं किया जा सकता। रंजू के मुताबिक उसे जब और जहां मौका मिलता है आरटीआई को लेकर जागरूकता अभियान चलाती है। झारखंड आरटीआई फोरम और सिटीजन क्लब ने आरटीआई की चौथी वर्षगांठ पर रंजू के जज्बे को सलाम करते हुये उसे सम्मानित किया। रंजू राज्य उन चुनिंदा 50 लोगों में शामिल थी। जिन्हें आरटीआई अवार्ड प्रदान किया गया। रंजू के मामा और रांची मारवाड़ी कालेज में भौतिकी के प्रोफेसर डा. जेएल अग्रवाल रंजू को मिले सम्मान को बहुत बड़ी उपलब्धि मानते हैं। उनके मुताबिक समाज के लिए यह एक उदाहरण है। डा. अग्रवाल के अनुसार रंजू ने एक नई रहा दिखाई है। जिस पर चलकर कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में नया आयाम जोड़ सकता है।
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