शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009

वहां चांद की तैयारी यहां बैलगाड़ी की सवारी


--कोल्हान में पिछड़ेपन, अशिक्षा व गरीबी है नक्सलवाद का सबसे बड़ा कारण-----------------------
अशोक सिंह, जमशेदपुर : हम चांद पर कदम रख चुके हैं। हमारा चिकित्सा विज्ञान प्रकृति को चुनौती दे रहा है। आइटी के क्षेत्र में हमारे देश को अव्वल माना जाता है। हम रोज विकास के क्षेत्र में नई ऊंचाई भी छू रहे है। लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू भी है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण कोल्हान में देखने को मिलता है जहां के सैंकड़ों गांव आज भी विकास से कोसों दूर हैं। यदि यह कहा जाए कि इन गांवों को लोगों को विकास का अर्थ ही नहीं मालूम तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए। कोल्हान की आधी से ज्यादा आबादी बुनियादी सुविधाओं तक से महरूम है। आज भी कोल्हान में सैंकड़ों गांव ऐसे हैं जहां के किसान कृषि कार्य में ट्रैक्टर नहीं बल्कि बैलगाड़ी का इस्तेमाल करते हैं।इस इलाके में पिछड़पन इतना ज्यादा है कि इसे जानने के लिए आपको यह भी जानना पड़ेगा कि यहां के लोगों को असंवैधानिक कार्यो के लिए बहला-फुसला लिया जाता है। क्षेत्र में अशिक्षा की जकड़ इतनी मजबूत है कि लोग बदलाव के बारे में सोच भी नहीं सकते। रही सही कसर गरीबी पूरी कर दे रही। यहां के गरीब आदिवासी चाहकर भी आगे नहीं बढ़ पाते हैं। इलाके में महिलाओं की स्थिति तो और भी खराब है। इस क्षेत्र की महिलाओं को पुरुषों से भी ज्यादा काम करना पड़ता है। कई घरों में तो चूल्हा महिलाओं की कमाई से ही जलता है। गरीबी का आलम यह है कि बच्चों को भी हाथ बंटाना पड़ता है। गरीबी, अशिक्षा व पिछड़ेपन का दंश तब और जहरीला हो जाता है जब अधिकांश घरों के पुरुष हडि़या पीकर 'टून' रहते है। कोल्हान के गंवई इलाकों में प्रवेश करने पर साफ सुथरा पीने को पानी नहीं तो नहीं मिलेगा लेकिन हडि़या पीने को जरूर मिल जायेगी। कोल्हान के ग्रामीण इलाकों में हडि़या नामक शराब को खूब व खुले रूप में सेवन किया जाता है। इस समय धान की कटाई लगभग पूरी हो चुकी है। लोग धान की फसल को बैलगाड़ी पर लादकर ढ़ुलाई करने लगे हैं। जिनके पास बैलगाड़ी नहीं है है वे अपने सिर पर धान के बंडल को ढोते हैं। समाज विज्ञानियों का मानना है कि इसी तरह का पिछडपान, अशिक्षा, गरीबी व मजबूरी नक्सलवाद को पनपने व उसे बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाती है क्योंकि नक्सली गरीब लोगों को हसीन सपना दिखाकर, उनके पिछड़ेपन व गरीबी की कहानी को दर्दनाक तरीके के पेश करके ही उन्हें अपने पाले में करते हैं। कोल्हान में नक्सलवाद के विस्तार का असली कारण भी तो यही है।