बुधवार, 6 अगस्त 2008

ऑफिस रोमांस की ठंडी और गर्म हवाएं

रवींदनाथ ठाकुर के इस कथन को कई जगहों पर कई तरह से उद्धृत किया गया है कि प्रेम तो खिड़की के रास्ते से आता है , पर उसके साथ यातना दरवाजे से आती है। हाल में रिलीज हुई फिल्म ' जन्नत ' में इस जटिल कथन को एक चालू संवाद में घटिया और सतही बना दिया गया है। खैर! प्रेम की इस तीखी सचाई का जिक्र उर्दू शायरी में भी हुआ है। आग के दरिया में डूबकर जाना पड़ता है। यह इश्क आसान नहीं है। एक मित्र ने अपना दिलचस्प फॉर्म्युला सुनाया। उन्होंने कहा कि मैं इश्क करता हूं पर मेरा नियम है कि पड़ोस और दफ्तर से दूर रहूं। इश्क के ये मैदान प्रेम कम और यातना अधिक लाते हैं। बहरहाल वह मित्र वुमेनाइजर के तमगे को फौजी के तमगों की तरह शान से टांगना पसंद करते हैं। इसलिए वह नियम बना सकते हैं। पर क्लासिकल लवर इश्क के लिए प्लानिंग नहीं कर सकता है। यह प्रेम की दुखद और सुखद सचाई है। पिछले दिनों टाइम्स ऑफ इंडिया ने ' न्यूजवीक ' में प्रकाशित दफ्तरों के ' लव कॉन्ट्रैक्ट ' के एक विश्लेषण को प्रकाशित किया है। इस सर्वेक्षण पर आधारित विश्लेषण में ऑफिस रोमांस से संबद्ध कई दिलचस्प तथ्य सामने आए हैं। यह विश्लेषण अमेरिकी कॉरपोरेट समाज का है। लेकिन इसे आधुनिक भारतीय शहरों के वर्क कल्चर से बहुत दूर नहीं माना जा सकता है। कॉल सेंटरों की दुनिया ऑफिस रोमांस के रास्ते आसान कर रही है। हाल में एक रिपोर्ट में यह पढ़ने को मिला कि रात को कॉल सेंटरों में जाने वाली लड़कियां सेक्सी और सीडक्टिव ड्रेस पहनना पसंद करती हैं। वे नहीं चाहती कि दफ्तर में दादी मां की तरह नजर आएं। शानेल की खुशबू , स्वैच घड़ी का टाइम और लीवाई की जींस- जाहिर है माहौल बदल जाता है। एक पुरुष कर्मचारी का कहना है कि मेरी सहकर्मी जब स्मार्ट ड्रेस पहन कर आती है तो एक गर्म सूखे दिन में राहत देने वाली पानी की बूंदों का एहसास होता है। ' इससे वर्क एडरीनल तेज होता है और जाहिर है कि दूसरे एडरीनल भी धड़कने लगते हैं... ' जाहिर है कि पहले प्रकार के एडरीनल की पंपिंग बढ़ने से कॉरपोरेट व्यवस्था खुश रहती है। लेकिन दूसरे एडरीनल धड़कने से समस्याएं पैदा हो जाती हैं। ' न्यूजवीक ' के सर्वेक्षण के अनुसार 46 फीसदी कर्मचारी अपने जीवन में ऑफिस रोमांस को स्वीकार करते हैं और रुकिए , 13 फीसदी ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि हमने ऑफिस रोमांस को कभी महसूस तो नहीं किया पर हम बहुत उत्सुक हैं इस रोमांस और रोमांच के लिए। काम के घंटे बढ़ गए हैं और दफ्तर का माहौल भी अधिक अनौपचारिक (और अधिक सेक्सी) हो गया है। लेकिन अमेरिकी कंपनियों को इस कंबख्त ऑफिस रोमांस ने तमाम कानूनी लड़ाइयों में उलझाया हुआ है। रोमांस तो बेचारा खिड़की से आता है (या शायद रोशनदान से) लेकिन सेक्सुअल हैरासमेंट का नोटिस दरवाजे से आता है। ऑफिस रोमांस में जब खटास और बदमजगी आती है , तो स्थितियां बदल जाती हैं। इसीलिए कंपनियां अब चाह रही हैं कि ' लव कॉन्ट्रैक्ट ' पहले ही साइन करा लिए जाएं ताकि कानूनी चक्करों से बचा जा सके। यह अलग बात है कि ' लव कॉन्ट्रैक्ट ' में भी कई छेद हैं। स्पष्ट है कि कोई लड़की ग्लैमरस पोशाक में दफ्तर में आती है , तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह प्रेम के लिए ' अवेलेबल ' है। पर केंद्रीय समस्या यह है कि तथाकथित वर्क एडरीनल बढ़ाने के लिए जो चीज ठंडी हवा की तरह है वही चीज जब दूसरे प्रकार के एडरीनल तेज कर देती है तो गर्म हवाएं झुलसा भी देती हैं। सुंदर और ग्लैमरस सहयोगी देख कर बॉस भी अच्छे कपड़े पहनने लगता है , चहकने लगता है , महंगे इत्र ढूंढने लगता है। आधुनिक जीवन का यह विचित्र विरोधाभास है।

तो, चॉकलेट शुड बी ऑनली फॉर अडल्ट!

खाने-पीने की चीजों से जुड़े सर्वे अक्सर मन में संदेह पैदा कर देते हैं। अक्सर इनके पीछे एक व्यापार बुद्धि काम कर रही होती है। खाने-पीने की चीजों ही नहीं, जीनियस समझे जाने वाले व्यक्तियों के बारे में भी तरह-तरह के मिथक एक खास तरह से प्रचारित किए जाते हैं। मिसाल के लिए पश्चिमी शास्त्रीय संगीत के एक महान नाम मोत्सार्ट के बारे में यह कहा जाता रहा है कि उनके संगीत को सुनने से व्यक्ति बुद्धिसंपन्न होने लगता है। वैसे तो किसी भी महान संगीतज्ञ के बारे में इस बात को लागू किया जा सकता है। इंटेलिजंट होने के लिए मोत्सार्ट ही क्यों, बाख या वागनर क्यों नहीं? जहां तक खाने-पीने वाली चीजों का सवाल है, उनके बारे में कई बार रिसर्च के नाम पर भी कुछ सच या झूठ प्रचारित किए जाते हैं। मिसाल के लिए रेड वाइन के बारे में अक्सर यह बात प्रचारित की गई है कि उससे दिल को फायदा होता है। अक्सर कॉकटेल पार्टियों में लोगों को रेड वाइन के प्रति सम्मान दिखाते देखा जाता है। कई बार तो वे यह भी भूल जाते हैं कि रिसर्च में रेड वाइन के सीमित सेवन की भी बात की जाती है। खैर! सबसे मजेदार बातें आइसक्रीम और चॉकलेट को लेकर प्रचारित हैं। इतालवी लोग आइसक्रीम के बहुत शौकीन होते हैं। वे उसे रोमांस का इन्वेंशन मानते हैं। यह अलग बात है कि चीनी भी अपने को आइसक्रीम का जन्मदाता मानते हैं, लेकिन इटली शायद दुनिया का एक अकेला देश है, जहां आइसक्रीम सिर्फ बच्चों और किशोरों में ही नहीं - बूढ़ों में भी लोकप्रिय है। वेनिस में बूढ़ी औरतों को खूब चाव से आइसक्रीम खाते हुए देखना एक दिलचस्प दृश्य होता है। लेकिन, चॉकलेट को लेकर पिछले दिनों जो एक सर्वे सामने आया है, वह सबसे दिलचस्प और चौंकाने वाला है। एक रिसर्च लैब के सर्वे में 13 देशों की 3,571 स्त्रियों से बातचीत की गई। इनमें से एक देश भारत भी था। सर्वे आधी स्त्रियों ने यह चौंकाने वाली बात कही कि चॉकलेट खाने से उन्हें जो सुख मिलता है, वह सेक्स सुख के बराबर है। जाहिर है कि इस सर्वे से सेक्स इंडस्ट्री को कोई खास फायदा नहीं होगा, पर चॉकलेट उद्योग खूब तेजी से आगे बढ़ जाएगा। फ्रांस की एक मशहूर फिल्म का नाम ही 'चॉकलेट' है, जिसकी नायिका एक कस्बे में चॉकलेट की दुकान खोल कर उसके एरोमा को जादुई ढंग से फैला देती है। इस सर्वे के बाद एक भारतीय अखबार ने कुछ ग्लैमरस महिलाओं से यह अनोखा सवाल किया- चॉकलेट या सेक्स ? ऐक्ट्रिस श्रेया शरण ने तो सीधा जवाब दे दिया- मैं सेक्स के मुकाबले में चॉकलेट पसंद करती हूं, लेकिन मुझसे यह न पूछा जाए कि क्यों? वैसे चॉकलेट खाने से और दूसरे लाभ जो भी हों, पर डेंटिस्ट जरूर फायदे में रहते हैं। उधर सेक्स का उद्योग भी चाहे तो चॉकलेट उद्योग से गठबंधन कर सकता है। मौज ही मौज! वैसे इस सर्वे की एक व्याख्या इस प्रकार से भी की जा सकती है कि बड़ी संख्या में अगर स्त्रियां चॉकलेट को सेक्स का लगभग विकल्प मानने को तैयार हैं तो इसका एक अर्थ यह है कि वे मर्दों के सेक्स के प्रति प्रिमिटिव कहे जा सकने वाले नजरिए से भी असंतुष्ट हैं। चॉकलेट के आनंद और उसके एरोमा के लिए किसी दूसरे पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है। अपनी जीभ ही काफी है। आज भी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों की ड्यूटी फ्री शॉप्स में सबसे अधिक मांग चॉकलेट की होती है। इतालवी अगर अपनी आइसक्रीम पर गर्व करते हैं तो स्विट्जरलैंड के लोग अपनी चॉकलेट पर गर्व कर सकते हैं। स्विस चॉकलेट तो सुख का खास द्वार खोल देती है।