शनिवार, 9 अगस्त 2008

छोटे-छोटे लक्ष्य

कुछ लोग अपने लिए एक बड़ा लक्ष्य तय करते हैं। वे अपना ध्यान हर समय उसी पर केंद्रित रखते हैं और उसे पाने के लिए अपनी हर सुख-सुविधा का त्याग तक कर देते हैं। इनमें से कई सफल भी हो जाते हैं। अपना लक्ष्य हासिल कर उन्हें सार्थकता का अहसास होता है। लेकिन यह जीने का एक तरीका है। ऐसे लोग ज्यादा हैं जिनका लक्ष्य बहुत दूरगामी नहीं होता। अगर होता भी है तो वे उसे लेकर ज्यादा गंभीर नहीं रहते। वे छोटे-मोटे उद्देश्य तय करते हैं और उसके लिए बहुत ज्यादा कष्ट भी नहीं उठाते। मिल गया तो मिल गया, नहीं भी मिला तो कोई गम नहीं। ऐसे लोगों के जीवन को हम निरर्थक नहीं कह सकते, क्योंकि प्रयास करने का भी अपना एक सुख है। हो सकता है छोटे-मोटे सुखों को तवज्जो देने वाले शख्स ने जीवन के विभिन्न आयामों को उस व्यक्ति से ज्यादा छुआ हो जो एक बड़े मकसद के लिए तात्कालिक अनुभवों को नजरअंदाज कर देता है। इसीलिए छोटे मकसद को लेकर चलने वाला आदमी अपने तयशुदा लक्ष्य से अक्सर ज्यादा ही हासिल करता है।

अवसर और खुशी

ज्ञानी लोग कहते हैं कि जीवन में असली आनंद पाने का उद्यम करो, क्योंकि बाकी सुख दुनियावी हैं, नकली हैं, क्षणभंगुर हैं। लेकिन वास्तविक जीवन में कई बार वैसी खुशी आती ही नहीं। तब हम खुशी के अवसर ढूढ़ते हैं। किसी के बर्थडे पर जाकर, किसी की शादी पर रिश्तेदारों से मिलकर हम थोड़ा बदलाव महसूस करते हैं और खुश हो जाते हैं। कई बार ऐसे अवसर भी नजर नहीं आते। तब हम ऐसे अवसर बनाते हैं। कहीं लॉन्ग ड्राइव पर निकल गए, बहुत दिनों बाद कोई नाटक या फिल्म देखी। या खाया-पीया, ठहाके और ठुमके लगाए। ऐसे अवसरों का बहुत महत्व होता है। इसलिए समाज स्वयं ऐसे कई अवसर बनाता है। क्रिसमस, नया साल, ईद या होली- ये सब समाज द्वारा दिए जाने वाले अवसर हैं। सावन-भादों में जब धार्मिक ग्रंथ आवागमन और तीर्थ यात्रा पर विराम लगा देते हैं, हम कांवड़ यात्राएं करते हैं। खुशी बनावटी या नकली हो तो भी अच्छी लगती है। इसी तरह दुख भी बनावटी हो, तो भी बुरा ही लगता है। सुख और दुख के मामले में एक सीमा के बाद असली और नकली का फर्क मिट जाता है। लेकिन वे सुख-दुख ही, जिन्हें हम नकली दुनियावी सुख-दुख कहते हैं, हमें जिंदगी को जीने का जज़्बा देते हैं।