शनिवार, 9 अगस्त 2008

अवसर और खुशी

ज्ञानी लोग कहते हैं कि जीवन में असली आनंद पाने का उद्यम करो, क्योंकि बाकी सुख दुनियावी हैं, नकली हैं, क्षणभंगुर हैं। लेकिन वास्तविक जीवन में कई बार वैसी खुशी आती ही नहीं। तब हम खुशी के अवसर ढूढ़ते हैं। किसी के बर्थडे पर जाकर, किसी की शादी पर रिश्तेदारों से मिलकर हम थोड़ा बदलाव महसूस करते हैं और खुश हो जाते हैं। कई बार ऐसे अवसर भी नजर नहीं आते। तब हम ऐसे अवसर बनाते हैं। कहीं लॉन्ग ड्राइव पर निकल गए, बहुत दिनों बाद कोई नाटक या फिल्म देखी। या खाया-पीया, ठहाके और ठुमके लगाए। ऐसे अवसरों का बहुत महत्व होता है। इसलिए समाज स्वयं ऐसे कई अवसर बनाता है। क्रिसमस, नया साल, ईद या होली- ये सब समाज द्वारा दिए जाने वाले अवसर हैं। सावन-भादों में जब धार्मिक ग्रंथ आवागमन और तीर्थ यात्रा पर विराम लगा देते हैं, हम कांवड़ यात्राएं करते हैं। खुशी बनावटी या नकली हो तो भी अच्छी लगती है। इसी तरह दुख भी बनावटी हो, तो भी बुरा ही लगता है। सुख और दुख के मामले में एक सीमा के बाद असली और नकली का फर्क मिट जाता है। लेकिन वे सुख-दुख ही, जिन्हें हम नकली दुनियावी सुख-दुख कहते हैं, हमें जिंदगी को जीने का जज़्बा देते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें