शनिवार, 6 सितंबर 2008
भारतीय मन, निर्वाण और आई-फोन
गुरुवार-शुक्रवार की आधी रात को एयरटेल और वोडाफोन के स्टोर्स पर ज्यादा भीड़ नहीं थी। कम से कम वैसी नहीं, जैसी अमेरिका, यूरोप और जापान में कुछ अरसा पहले देखी गई। वहां लोग मील भर लंबी कतार लगाए खड़े थे और जिसे भी एपल का आई-फोन खरीदने का सौभाग्य हासिल हो रहा था, वह टीवी कैमरों के सामने आई-फोन का चमचमाता इंटरफेस और अपनी बत्तीसी चमका रहा था। तो भारत जिस आधी रात का बेसब्री से इंतजार कर रहा था, उसमें ज्यादा भीड़ नहीं थी, और मैं भी वहां नहीं था। ऐसी गुंजाइश भी फिलहाल नहीं लगती कि मैं किसी स्टोर के आसपास देखा जाऊं। लेकिन मेरी नजर इस घटनाक्रम पर टिकी है और इस कोशिश में जो अनुभव मुझे हो रहा है, उसे आप चाहें तो भारतीय मन की एक झलक कह सकते हैं। भारतीय मन को आई-फोन का बेसब्री से इंतजार था। तभी से, जब वह करीब साल भर पहले अमेरिका में लॉन्च हुआ। यह मन उस देश का था, जो भयंकर रूप से गैजिट्स का दीवाना हो चला है। एसएमएस जिसके लिए अध्यात्म का मंत्र और मोबाइल जिसके लिए निर्वाण की सीढ़ी है। निर्वाण की तलाश में यह भारतीय मन आई-फोन पर जा अटका। जिसने भी एपल का आई-पॉड छुआ है, वह जानता है कि यह ललक कितनी गहरी हो सकती है। उसकी मुराद अप्रत्याशित तेजी से पूरी होती लग रही थी। आई-फोन का थ्री जी वर्ज़न अमेरिकी लॉन्च के कुछ ही महीनों के भीतर हिंदुस्तान आ रहा था और उसे मिस करना स्वर्ग की सीढ़ी से महज़ इसलिए उतर जाने जैसा था कि नाश्ते का टाइम हो गया हो। लेकिन स्वर्ग के रास्ते में भूख लगने के अलावा भी अड़चनें हैं। जैसे यह कि जिस आई-फोन को अमीर अमेरिकनों को आठ हजार रुपये के सब्सिडाइज्ड़ रेट पर बेचा जा रहा था, उसकी कीमत तीसरी दुनिया के देश भारत में 31 हजार रुपये तय हुई। भारतीय मन आपको जितना भी उतावला लगे, वह भयंकर तरीके से किफायत पसंद है, जिसे मार्किटिंग के लोग एक सचेत सौदागर मानते हैं। इसके बाद आधी रात को किसी स्टोर पर लाइन लगाने का कोई मतलब नहीं था। उसकी बजाय यह आत्मचिंतन का क्षण था। यह सोचने का कि बेहतरीन डिजाइन, शानदार फील, फ्लो, फीचर और स्टाइल के बावजूद आई-फोन आखिर है क्या? यहां तक कि आप उससे एसएमएस फॉरवर्ड भी नहीं कर सकते, रेडियो नहीं सुन सकते, जीपीएस आपके लिए बेकार है, क्योंकि आप को अपने रास्ते बखूबी मालूम हैं और उस थ्रीजी का आप क्या करेंगे, जो महीनों बाद एक्टिवेट होगा और विडियो स्ट्रीमिंग के लिए किसके पास वक्त है? फोन कुल मिलाकर बात करने की मशीन है, वैसे ही जैसे कपड़े शरीर ढकने के लिए हाते हैं और शरीर उम्र बिताने के लिए। भारतीय मन तर्कशील हुए बिना नहीं रह सकता था, जो कि उसे अपनी महान विरासत से हासिल हुआ है। यह मीमांसा ज्ञान के उस मोड़ तक पहुंच सकती थी, जहां मोह को आत्मा के छह सबसे बड़े शत्रुओं में गिना गया है। माया और मोह के इस जाल को तोड़ने का सबसे आसान तरीका था कि दस हजार रुपये खर्च किए जाएं और उस चीनी मोबाइल का सम्मानित स्वामी बना जाए, जो दिखने में आई-फोन का चचेरा भाई है। लेकिन जैसा कि शास्त्रों में साफ-साफ चेता दिया गया है, मोह का बंधन तोड़ना इतना आसान नहीं होता! तर्क का रास्ता आपको भूलभुलैया में ले जाता है और इसीलिए ज्ञान मार्ग पर प्रेम मार्ग को श्रेष्ठ बताया गया है। तर्कशील प्राणी सोचता है कि हर मोबाइल आई-फोन नहीं होता, जैसे हर म्यूज़िक प्लेयर आई-पॉड नहीं होता। मार्किटिंग के गुरु इसे प्राइस सेंसेटिव होते हुए भी भारतीय उपभोक्ता का क्वॉलिटी सेंसेटिव होना कहते हैं। वे आज के ज्ञानी हैं और जानते हैं कि आपकी आत्मा के ट्रिगर पॉइंट क्या हैं। तो ज्ञानियों द्वारा प्रकाशित कर दिए गए इस सत्य के मुताबिक भारतीय मन अपनी अंतर्यात्रा के नए मुकाम पर पहुंचता है- धैर्य। धैर्यशील को ही लक्ष्मी मिलती है। वह तय करता है कि उसे इंतजार करना चाहिए, क्योंकि जो ऊपर जाता है, वह नीचे भी आता है, जैसे रिलायंस पावर का शेयर! वह अपने मोबाइल को देखता है, जो उसके खरीदे जाने के एक महीने बाद दो से घटकर डेढ़ हजार पर आ गया था। इससे उसे ताकत मिलती है और वह स्टीव जॉब्स और एपल के दूसरे लोगों को पटखनी देने का सपना देखने लगता है। वह अचानक भाग्य, नियति, कर्म और प्रारब्ध जैसे शब्दों पर यकीन करने लगता है। इससे उसे सुकून मिलता है, क्योंकि किस्मत से ज्यादा और वक्त से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता। लेकिन कुछ है, जो उसकी आत्मा पर ठक-ठक करता रहता है। जिस शास्त्र में यह लिखा है कि सब कुछ कर्मफल के अधीन है, उसी में कहीं यह भी है कि प्रारब्ध और पुरुषार्थ दो पंख हैं। कहीं वह धैर्यशील की जगह पुरुषार्थी तो नहीं था, जिसे लक्ष्मी मिलने की बात कही गई थी? उसे नश्वरता का अहसास सताने लगता है, क्योंकि कहते हैं कि सिकंदर की शवयात्रा में उसके हाथ कफन से बाहर फैले थे, ताकि लोग जान सकें कि इस दुनिया से कोई कुछ लेकर नहीं जाता। क्या इच्छा का दमन होना चाहिए? लेकिन 31 हजार? उससे 31 जोड़ी जूते, छह महीने का राशन, दस हजार सिगरेटें और यहां तक कि एक सस्ता लैपटॉप आ सकता है! लेकिन जूते, राशन, सिगरेट और लैपटॉप से आप फोन नहीं कर सकते। भारतीय मन को बात करनी है, स्टाइल से बात करनी है, दिखाते हुए बात करनी और बात करते हुए दिखाना है। उसे निर्वाण प्राप्त करना है। उसे ईश्वर के दर्शन करने हैं। क्या वह दूसरी कंपनियों के उन मॉडलों पर हाथ रखे, जिन्हें आई-फोन किलर कहा जा रहा है? उम्मीद करे कि किलर उस पर रहम करेगा और उसे भवबाधा से बाहर निकाल देगा? फिलहाल भारतीय मन का दिमाग तेजी से काम कर रहा है। उसे एक महान रहस्य खोलना है- क्या निर्वाण पाने का एक ही रास्ता होता है?
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