सोमवार, 9 नवंबर 2009

छठ पूजा की बिखरी छटा, सजे घाट

अशोक सिंह, जमशेदपुर : सूर्य जगत के पालनकर्ता हैं। अस्ताचलगामी सूर्य को शनिवार शाम व उदय होते सूर्य को रविवार सुबह जल व गाय के दूध का अ‌र्ध्य समर्पित किया जायेगा। इस शुभ मौके पर श्रद्धालुओं की श्रद्धा व खुशी का ठिकाना नहीं होगा। छठ घाट सजधज कर तैयार हैं।
महिलाएं करेंगी विशेष श्रृंगार
भगवान सूर्य को अ‌र्घ्य देने के लिए छठ व्रती महिलाएं खास तरह से श्रृंगार करती है। इसमें पीले सुनहरे रंग के सिंदूर का काफी महत्व होता है। छठ व्रत करने वाली महिलाएं सिर से नाक तक पीला सुनहरा सिंदूर लगाती हैं। मान्यता है कि पीले सुनहरे रंग के सिंदूर लगाने से महिलाएं सदा सुहागन रहती हैं। साथ ही महिलाओं पर छठ मइया की कृपा बनी रहती है।
आज सजेगा दउरा व सूप
छठ घाट पर ले जाने के लिए दउरा व सूप को विशेष रुप से सजाया जाता है जिसमें केला कांदी, गन्ना, कच्ची हल्दी, मूली, बड़ा नींबू, सिंघाड़ा, सेव, संतरा, अन्नास, ठेकुआ, लाल कपड़ा व लौंग रखा जाता है। इसके अलावा पान, कसैली, इलायची आदि सामान रखे जाते हैं। दउरा व सूप के भरा- पूरा होने से छठ मइया समृद्धि का आशीर्वाद देती है।
ठेकुआ हुआ तैयार
दउरा में रखने के लिए ठेकुआ तैयार कर लिया गया है। इसे बनाने से पहले साफ-सुथरे गेहूं की चुनाई की जाती है। फिर गेहूं की धुलाई कर परवैतीन महिलाएं धूप में बैठकर स्वयं सुखाती है। इसके बाद गेहूं की 'जाता' में पिसाई की जाती है। बाद में सांचे में ढालकर शुद्ध देशी घी में प्रसाद तैयार किया जाता है। ठेकुआ के अलावा प्रसाद में कचवनिया को भी शामिल किया जाता है।
प्रसाद ग्रहण के दौरान परबइतिन को नहीं पुकारा जाता
पंचमी के दिन यानी खरना को व्रती नमक नहीं खातीं। इसी दिन से छठ मइया का आह्वान शुरू हो जाता है। पंडित हेमंत पाठक ने बताया कि पंचमी यानी खरना के दिन प्रसाद ग्रहण करने के दौरान व्रती महिलाओं को आवाज नहीं दी जाती। खरना के दिन से ही महिलाएं मनोकामना पूरन की कामना करती है।
सूर्य हैं देवताओं के देवता
मान्यता है कि वर्षा के देवता इंद्र हैं लेकिन सूर्य अपने किरणों से जल को खींचकर उसे बादल में परिवर्तित करते हैं। तभी दुनिया में बारिश होती है। इस प्रकार सूर्य देवताओं के देवता हैं। चूंकि अन्य देवता दिखते नहीं हैं, सो, उनके अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगते रहे हैं लेकिन सूर्य प्रत्यक्ष देव हैं।
कांच ही बांस के बहंगिया..
कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाये.., केरवा जे फरला घवध से ता ऊपर सुगा मड़राय, तीरवा जो मरबो धनुष से सुगा गिरे मुरछाय, पहले पहले व्रत कइली सुरज होई सहाय.. आदि गीत दीवाली बीतते ही सुनाई पड़ने लगते हैं। छठ पर्व के दौरान बड़े-बड़े सिंगरों के दूसरे गाने फीके पड़ जाते हैं।
साफ-सफाई की मची होड़
छठ के मौके पर विभिन्न राजनीतिक दलों में घाटों-सड़कों की सफाई की होड़ लगी रहती है लेकिन गली-मुहल्ले वाले भी पीछे नहीं रहते। कोई छठ पर्व करे या न करे लेकिन लोग इस मौके पर अपने घरों के आस-पास की नालियां, सड़कों आदि की साफ-सफाई व्यापक पैमाने पर करते हैं।

नारी सशक्तीकरण की नई परिभाषा गढ़ रही साधना

-: जागरण स्पेशल :-
--पति समेत तीन बच्चे पूरी तरह विकलांग--
--खुद अनपढ़ होते हुए अपने विकलांग बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने की दृढ़ इच्छा शक्ति
अशोक सिंह, जमशेदपुर : भालुबासा की साधना दास के परिवार का पूरा कुनबा ही विकलांग है। बावजूद इसके वह नारी सशक्तीकरण की नई परिभाषा गढ़ रही है। उसके परिवार के अधिकांश सदस्यों के विकलांग होने के बावजूद वह जिन्दगी से हार मानने को तैयार नहीं है। उसका विकलांग पति भीमदास कहता है कि जो उसे विकलांग मानते हैं वे खुद विकलांग हैं, तभी तो शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए उसका परिवार प्रेरणाश्रोत बना हुआ है।
मानगो की रहने वाली साधना दास की शादी 23 वर्ष पूर्व बोकारो के सीदी गांव के भीम दास से हुई थी। हालांकि भीमदास के पूर्वज काफी पहले जमशेदपुर आ चुके थे। यहां पर शादी के बाद से ही भालुबासा के हरिजन स्कूल के सामने फुटपाथ पर उनकी सब्जी की दुकान है। उसी फुटपाथ पर उसके पूरे परिवार का रहना, खाना व सोना होता है। शादी के बाद उसके चार बच्चे हुए, जिसमें तीन पूरी तरह से विकलांग हैं। आज सभी बच्चे 16 से 21 वर्ष के बीच हैं। तीन विकलांग बच्चों में से दो संजय दास व रवि दास को-आपरेटिव कालेज के बी. काम के छात्र हैं जबकि तीसरा विपिन दास इंटर का छात्र है।
साधना दास खुद पढ़ी-लिखी नहीं है लेकिन अपने विकलांग बच्चों को उच्च शिक्षा की तालीम दिलाने की दृढ़ इच्छा शक्ति रखती है। सब्जी बेचकर बमुश्किल अपने परिवार के लिये दो जून की रोटी का जुगाड़ कर रही साधना पूछे जाने पर बताती है कि बाबू मेरा परिवार मुश्किल से चल रहा है। फुटपाथ पर सब्जी बेचकर कितनी आमदनी हो सकती है, आप भी अंदाजा लगा सकते हैं। उसका कहना है कि खायेंगे कम लेकिन बच्चों को जरूर पढ़ायेंगे। अपने परिवार के साथ फुटपाथ पर रहने वाली साधना की सबसे बड़ी पीड़ा आवास की है। घर में पति समेत तीन-तीन जवान बच्चे विकलांग हैं। शौच को लेकर परेशानी यह कि सभी को कंधों पर टांगकर कुछ दूर स्थित सार्वजनिक शौचालय में ले जाना पड़ता है। एसपी अजय कुमार के समय में फुटपाथ की दुकानों को तोड़ दिया गया था। तब उन्होंने उसे आवास मुहैया कराने का वादा किया था। आज भी सरकारी कार्यालयों में दर-दर भटकने के बावजूद उसे आवास मुहैया नहीं हो पाया है।

प्रकाशन तिथि-26 सितंबर, जमशेदपुर संस्करण पेज चार

कीमतों में लगी आग पर कम नहीं छठ का उत्साह

--दो दिनों में चीनी में दो रुपये की तेजी, लौकी महंगी होने की उम्मीद--
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अशोक सिंह, जमशेदपुर : खाद्य पदार्थो की बढ़ती कीमतों ने लोगों के खाने का स्वाद खराब कर दिया है। लेकिन पेट की आग पर धर्म की आस्था भारी पड़ रही है। यही कारण है कि जहां बाजार में खाद्य पदार्थो की कीमतों में आग लगी हुई है, वहीं छठ व्रत का पालन करने वाले धर्मावलंबी पूजन की तैयारी में जुटे हुए हैं। महंगाई की मार झेल रहे लोगों का कहना है कि वे एक वक्त सब्जी भले ही न खायें पर छठ का पालन करने में कोई कोताही नहीं बरतेंगे। छठ के मद्देनजर ही बाजार में कीमतें आसमान छू रही हैं।
पिछले छठ से लेकर इस छठ तक प्रमुख खाद्य पदार्थो की कीमतों में लगातार तेजी बनी हुई है। चाहे वह चीनी हो, दाल हो या आलू-प्याज। यहां तक कि छठ पर्व में सबसे उपयोगी माना जाने वाला सुस्त गेहूं भी तेजी की चपेट में है।
चीनी में बढ़ी चमक
छठ पर्व में मिठास घोलने में चीनी व गुड़ का खास महत्व होता है। पिछले दो दिनों में चीनी में दो रुपये प्रति किलो दाम बढ़े हैं। साकची बाजार के खुदरा किराना दुकानदार मुरारी लाल के मुताबिक मंडी में चीनी की कमी का असर कीमतों पर पड़ा है। वहीं गुड़ काफी दिनों से चीनी को पीछे छोड़ चुका है। कुछ साल पहले तक गुड़ के समाने चीनी में ज्यादा चमक रहती था। लेकिन हाल के दिनों में गुड़ अपना रिकार्ड कायम किया है। बाजार में चीन दो रुपये बढ़कर 34 रुपये प्रतिकिलो चल रहा है तो गुड़ 36 से 40 रुपये तक मिल रहा है।
आलू-प्याज ने रुलाया
पर्व त्योहार के अवसर पर सब्जियों में सबसे जरूरी आलू-प्याज की कीमत अभी भी आसमान पर है। सबसे सस्ता माने जाने वाले आलू-प्याज की कीमत फिलहाल हरी सब्जियों को मात दे रही है। छठ पर सबसे महत्वपूर्ण माने जाने वाली लौकी तो सभी को पछाड़ चुकी है। इसकी कीमत फिलहाल खुदरा बाजार में 25 रुपये प्रति किलो तक है। नहाय-खाय तक तो यह और आसमान पर रहेगा।
गेहूं में बढ़ी गर्मी
छठ पर्व पर गेहूं की अहमियत बहुत ज्यादा होती है, क्योंकि गेहूं से प्रसाद आदि बनाया जाता है। समान दिनों के मुकाबले गेहूं की कीमतों में तेजी तो है ही लेकिन छठ के मौके पर इसकी गर्मी और बढ़ गयी है। पिछले साल मंडियों में सामान्य गेहूं की कीमत करीब 1000-1200 रुपये प्रति क्विंटल थे। इस साल सामान्य गेहूं की कीमत 1500 प्रति क्विंटल तक है। वहीं खुदरा बाजार में गेहूं 18 से 20 रुपये प्रति किलो बिक रहा है।
दहक रही दाल
दाल की कीमत ने इस छठ के दौरान रिकार्ड तोड़ दिया है। पिछले तीन महीने से दाल के भाव में 60 फीसदी तेजी चल रही है। अरहर दाल की थोक मंडी में कीमत 85 रुपये प्रतिकिलो है जबकि मूंग दाल भी 84 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रहा है। पिछले छठ की बात करते तो अरहर व मूंग दालों की कीमत 40-45 व 40-42 प्रति किलोग्राम थे। दालों के हर वैरायटी में तकरीबन 40 फीसदी की तेजी आई है। कारोबारी मुरारी लाल ने बतया कि दाल में एक-दो दिनों में और तेजी आने की संभावना है।
चावल की चाहत
जरूरी खाद पदार्थो में चावल एक ऐसा चीज है जिसके भाव में कोई ज्यादा फेरबदल नहीं हुआ है। लेकिन मौका छठ का हो नये चावल का दाम न बढ़े ऐसा हो नहीं सका। खुदरा बाजार में नये अरवा चावल बीस रुपये से 24 रुपये तक बिक रहा है। वहीं अच्छे क्वालिटी के गोल दाने का चावल 44 रुपये प्रति किलो है।
खुदरा बाजार में फलों के दाम प्रति किलो
सेब : 80
संतरा : 60
अनार : 100
मोसम्मी : 40
केला कांदी : 250 से 300
अंगूर : 80
शरीफा : 25
नासपाती : 120
बड़ा नींबू : 15
गन्ना : 75 बंडल
मूली : 15
अन्नास : 50 पीस
शकरकंद : 24
नारियल : 12 पीस

खाद पदार्थ प्रति किलो
चीनी : 34
गुड़ : 36
अरहर दाल : 85
मसूर दाल : 60
मूंग : 84
गेहूं : 18-20
नया अरवा
चावल : 20
नया अरवा
चावल(गोलदाना) : 44

मनोकामना या स्वार्थ

--धार्मिक भावनाओं के साथ हो रहा खिलवाड़--
जमशेदपुर : छठ व्रत के पावन अवसर पर उगते व डूबते सूरज को अ‌र्घ्य देना महज परंपरा नहीं है, बल्कि इसमें जीवन का महत्वपूर्ण सार छिपा होता है। इस लिए पूरब के इस व्रत को मनाने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसा कहा जाता है कि मनोकामना पूरी करने के लिए भीख मांगकर छठ करने की परंपरा है। यद्यपि कुछ लोग अति निर्धन होने के कारण भीख मांगकर छठ व्रत के पुण्य की प्राप्ति करते हैं। मगर उसका दूसरा पहलू यह भी है कि हाल के वर्षो में छठ आते ही सड़कों, बाजारों व मुहल्लों में छठ व्रत करने के लिए भीख मांगने वालों की भीड़ बढ़ती जा रही है। पेश है आस्था से जुड़े इस मुद्दे की सच्चाई उजागर करती रिपोर्ट-
भीख मांगकर छठ करने वालों की तादाद खास कर साकची बाजार में काफी देखा जा सकती है। मंगलवार को दोपहर साढ़े बारह बजे गाड़ी रोकते ही हाथ में लाल कपड़े से ढका सूप लिए एक महिला सामने आती है और छठ के नाम पर कुछ पैसे मांगती है। पैसे लेकर वह आगे बढ़ जाती है। तभी अनयास ही मेरे मुंह एक सवाल निकल जाता है, तुम इस पैसे को क्या करोगी, बताने से बचते हुये वह तेजी से आगे बढ़ जाती है। उसकी बच्ची ने बताया कि शाम को इस पैसे से चावल खरीदेंगे। इस तरह से मेरे मन में उत्सुकता हुई, और इसको लेकर और खोजबीन की। एक अधेड़ महिला मिलती है। उसे छठ व्रत के बारे में कुछ भी पता नहीं है। कब से शुरू हो रहा है छठ, किस दिन प्रथम अ‌र्घ्य है। इसका मतलब उसे मालूम नहीं है। लेकिन वह छठ के नाम पर लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रही है। उससे बातचीत करने पर कहीं से नहीं लगा कि वह छठ करने वाली है या कभी की है।
भीख से मिलता है निवाला
पिछले एक माह से भालुबासा के आसपास के क्षेत्रों में छठ के नाम पर भीख मांग रही कामली को छठ की महत्ता को बताने के बाद बताती है कि इसी के सहारे उसके परिवार को निवाला मिलता है। हालांकि कमला का भरापूरा परिवार है पर पति के शराबी होने के चलते परिवार की गाड़ी उसी को खींचनी पड़ती है। अनपढ़ होने के चलते उसे जीविकोपार्जन के लिये भिक्षाटन का सहारा लेना पड़ा है। वैसे तो छठ व्रत से उसका कोई लेना-देना नहीं है पर उसे यह पता है कि छठ व्रत के नाम पर भीख देने से जल्दी कोई इनकार नहीं करता है। यही कारण है कि पिछले एक माह से वह छठ के नाम पर भीख मांग रही है। उसने बताया कि जब वह छठ के नाम पर भीख मांगती है तो उसे अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है और उसके परिवार को दो जून की रोटी मयस्सर हो जाती है।
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छठ के नाम पर चल रही इनकी जीविका
जमशेदपुर : छठ व्रत के पावन अवसर पर उगते व डूबते सूरज को अ‌र्घ्य देना महज परंपरा नहीं है वरन इसमें जीवन का महत्वपूर्ण सार छिपा है। शायद इस कारण ही पूरब के इस व्रत को मनाने वाले लोगों की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। सामान्यत: मनोकामना पूरी करने के लिए भीख मांगकर छठ करने की परंपरा रही है। वहीं कुछ लोग अति निर्धन होने के कारण भी भीक्षाटन कर छठ व्रत करते हैं। तो दूसरा पहलू यह भी है कि हाल के वर्षो में छठ आते ही बाजारों व मुहल्लों में छठ व्रत करने के लिए भीख मांगने वालों की तादाद बढ़ जाती है लेकिन अधिकांश मामलों में छठ के नाम पर दो जून की रोटी का जुगाड़ करने की कोशिश होती है। साकची बाजार में मंगलवार दोपहर साढ़े बारह बजे गाड़ी रोकते ही हाथ में लाल कपड़े से ढका सूप लिए एक महिला सामने आती है और छठ के नाम पर कुछ पैसे मांगती है। पैसा मिलते ही आगे बढ़ जाती है। यह पूछने पर कि क्या वास्तव में वह छठ करेगी, वह बिना बोले आगे बढ़ जाती है। तब तक साथ चल रही उसकी बच्ची बताती है कि शाम को पैसे से चावल खरीदेंगे। थोड़ी ही देर में एक अधेड़ महिला मिलती है। उसे छठ व्रत के बारे में कुछ भी पता नहीं है। कब से शुरू हो रहा है छठ, किस दिन प्रथम अ‌र्घ्य है लेकिन वह भी छठ के नाम पर लोगों से पैसे मांग रही है। भीख से मिलता है निवाला
पिछले एक महीने से भालूबासा के आसपास के क्षेत्रों में छठ के नाम पर भीख मांग रही कामली बताती है कि इसी के सहारे उसके परिवार को निवाला मिलता है। हालांकि कमला का भरापूरा परिवार है पर पति के शराबी होने के चलते परिवार की गाड़ी उसी को खींचनी पड़ती है। अनपढ़ होने के चलते उसे जीविकोपार्जन के लिये भिक्षाटन का सहारा लेना पड़ता है। वैसे तो छठ व्रत से उसका कोई लेना-देना नहीं है पर उसे यह पता है कि छठ व्रत के नाम पर भीख देने से जल्दी कोई इनकार नहीं करता। यही कारण है कि पिछले एक महीने से वह छठ के नाम पर भीख मांग रही है। उसने बताया कि जब वह छठ के नाम पर भीख मांगती है तो उसे अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है और उसके परिवार को दो जून की रोटी मयस्सर हो जाती है।

आरटीआई की मदद से अफसर बनी नेत्रहीन रंजू

नारी सशक्तीकरण को सूचना के अधिकार ने दिया नया जोश
अशोक सिंह, जमशेदपुर : सूचना का अधिकार यानी आरटीआई यानी राइट टू इनफारमेशन महज जानकारी प्राप्त करने का जरिया नहीं बल्कि यह किसी के जीवन में सौभाग्य का दरवाजा भी खोल सकता है। शर्त सिर्फ यह कि व्यक्ति में लक्ष्य हासिल करने का जज्बा हो। और, इसी जज्बे को दिखाया है जमशेदपुर में पली-बढ़ी रंजू कुमारी ने। आरटीआई का उपयोग कर रंजू झारखंड सरकार में वाणिज्य कर अधिकारी बनने में कामयाब हुई है और अपने जज्बा का झंडा गाड़ा। सोने पर सुहागा यह कि उसने यह कार्य नेत्रहीन होने के बावजूद किया। कामयाबी का कदम छूने में विकलांगता बाधक नहीं बन सकी। डालटेनगंज के मूल निवासी और झारखंड सरकार में इंजीनियर अपने पिता राजेन्द्र प्रसाद और घरेलू महिला माता से 'सुन-सुन कर' शिक्षा-दीक्षा हासिल करने वाली रंजू कभी स्कूल नहीं गयी। प्राइवेट छात्रा के रूप में पढ़ाई करती गयी और बीएड करने के बाद राजनीति विज्ञान में एमए की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की। इसके बाद ही आया उसके जीवन में नया मोड़। झारखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षा में वह बैठी, इस उम्मीद के साथ कि शारीरिक विकलांग लोगों के तीन प्रतिशत आरक्षण का लाभ शायद उसे भी मिल जाये। लिखित परीक्षा उसने निकाल ली। पर इंटरव्यू के लिए बुलावा नहीं आया। उसके जेहन में यह सवाल बना रहा कि आखिर कौन-कौन लोग इंटरव्यू के बुलाये गये, और कितने प्रतिशत अंक मिले थे। सवाल ठ्ठ शेष पृष्ठ 17 परका जवाब कहीं से नहीं मिल रहा था। घटना 2007 की है। इसी बीच सूचना का अधिकार कानून बन चुका था। इसी बीच झारखंड विकलांग मंच की मदद से उसने सूचना के अधिकार के तहत जेपीएससी से जानकारी मांगी कि उक्त परीक्षा में तीन प्रतिशत आरक्षण का लाभ किन-किन अभ्यर्थियों को मिला। पहले तो जानकारी देने में जेपीएससी ने काफी आनाकानी की। लेकिन रंजू ने हिम्मत नहीं हारी। राज्य सूचना आयोग तक वह गयी। सूचना आयुक्त बैजनाथ मिश्र का पूरा सहयोग मिला। बाध्य होकर जेपीएससी ने यह सूचना दी कि तीन प्रतिशत आरक्षण के तहत किसी अभ्यर्थी का चयन नहीं हुआ। रंजू ने फिर आरटीआई का सहारा लिया। पूछा कि संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन क्यों और कैसे हो गया? तब जेपीएससी को अपने चूक का अहसास हुआ। आनन-फानन में विकलांग कोटे से 15 अभ्यर्थियों को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। संयोग से इनमें रंजू भी एक थी। इसके भाग्य ने यहां फिर साथ दिया। उसका चयन हो गया। आज वह जमशेदपुर में वाणिज्य कर अधिकारी के रूप में कार्यरत है। आरटीआई के तहत एक साल की लड़ाई के बाद उसे सफलता मिली। रंजू के मुताबिक समाज से उसे कोई शिकायत नहीं, लोगों से कोई गिला नहीं। विकलांगता को वह अभिशाप नहीं मानती। उसका स्पष्ट मानना है कि यदि इरादा पक्का हो तो कोई काम मुश्किल नहीं। उसके मुताबिक आरटीआई ने नारी सशक्तीकरण को नया जोश दिया है। वह बताती है कि हर किसी को आरटीआई का उपयोग करना चाहिये। इस कानून में असीम शक्ति है। इसका दायरा इतना विस्तृत है कि उसे बयां नहीं किया जा सकता। रंजू के मुताबिक उसे जब और जहां मौका मिलता है आरटीआई को लेकर जागरूकता अभियान चलाती है। झारखंड आरटीआई फोरम और सिटीजन क्लब ने आरटीआई की चौथी वर्षगांठ पर रंजू के जज्बे को सलाम करते हुये उसे सम्मानित किया। रंजू राज्य उन चुनिंदा 50 लोगों में शामिल थी। जिन्हें आरटीआई अवार्ड प्रदान किया गया। रंजू के मामा और रांची मारवाड़ी कालेज में भौतिकी के प्रोफेसर डा. जेएल अग्रवाल रंजू को मिले सम्मान को बहुत बड़ी उपलब्धि मानते हैं। उनके मुताबिक समाज के लिए यह एक उदाहरण है। डा. अग्रवाल के अनुसार रंजू ने एक नई रहा दिखाई है। जिस पर चलकर कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में नया आयाम जोड़ सकता है।