सोमवार, 9 नवंबर 2009

नारी सशक्तीकरण की नई परिभाषा गढ़ रही साधना

-: जागरण स्पेशल :-
--पति समेत तीन बच्चे पूरी तरह विकलांग--
--खुद अनपढ़ होते हुए अपने विकलांग बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने की दृढ़ इच्छा शक्ति
अशोक सिंह, जमशेदपुर : भालुबासा की साधना दास के परिवार का पूरा कुनबा ही विकलांग है। बावजूद इसके वह नारी सशक्तीकरण की नई परिभाषा गढ़ रही है। उसके परिवार के अधिकांश सदस्यों के विकलांग होने के बावजूद वह जिन्दगी से हार मानने को तैयार नहीं है। उसका विकलांग पति भीमदास कहता है कि जो उसे विकलांग मानते हैं वे खुद विकलांग हैं, तभी तो शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए उसका परिवार प्रेरणाश्रोत बना हुआ है।
मानगो की रहने वाली साधना दास की शादी 23 वर्ष पूर्व बोकारो के सीदी गांव के भीम दास से हुई थी। हालांकि भीमदास के पूर्वज काफी पहले जमशेदपुर आ चुके थे। यहां पर शादी के बाद से ही भालुबासा के हरिजन स्कूल के सामने फुटपाथ पर उनकी सब्जी की दुकान है। उसी फुटपाथ पर उसके पूरे परिवार का रहना, खाना व सोना होता है। शादी के बाद उसके चार बच्चे हुए, जिसमें तीन पूरी तरह से विकलांग हैं। आज सभी बच्चे 16 से 21 वर्ष के बीच हैं। तीन विकलांग बच्चों में से दो संजय दास व रवि दास को-आपरेटिव कालेज के बी. काम के छात्र हैं जबकि तीसरा विपिन दास इंटर का छात्र है।
साधना दास खुद पढ़ी-लिखी नहीं है लेकिन अपने विकलांग बच्चों को उच्च शिक्षा की तालीम दिलाने की दृढ़ इच्छा शक्ति रखती है। सब्जी बेचकर बमुश्किल अपने परिवार के लिये दो जून की रोटी का जुगाड़ कर रही साधना पूछे जाने पर बताती है कि बाबू मेरा परिवार मुश्किल से चल रहा है। फुटपाथ पर सब्जी बेचकर कितनी आमदनी हो सकती है, आप भी अंदाजा लगा सकते हैं। उसका कहना है कि खायेंगे कम लेकिन बच्चों को जरूर पढ़ायेंगे। अपने परिवार के साथ फुटपाथ पर रहने वाली साधना की सबसे बड़ी पीड़ा आवास की है। घर में पति समेत तीन-तीन जवान बच्चे विकलांग हैं। शौच को लेकर परेशानी यह कि सभी को कंधों पर टांगकर कुछ दूर स्थित सार्वजनिक शौचालय में ले जाना पड़ता है। एसपी अजय कुमार के समय में फुटपाथ की दुकानों को तोड़ दिया गया था। तब उन्होंने उसे आवास मुहैया कराने का वादा किया था। आज भी सरकारी कार्यालयों में दर-दर भटकने के बावजूद उसे आवास मुहैया नहीं हो पाया है।

प्रकाशन तिथि-26 सितंबर, जमशेदपुर संस्करण पेज चार

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