--धार्मिक भावनाओं के साथ हो रहा खिलवाड़--
जमशेदपुर : छठ व्रत के पावन अवसर पर उगते व डूबते सूरज को अर्घ्य देना महज परंपरा नहीं है, बल्कि इसमें जीवन का महत्वपूर्ण सार छिपा होता है। इस लिए पूरब के इस व्रत को मनाने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसा कहा जाता है कि मनोकामना पूरी करने के लिए भीख मांगकर छठ करने की परंपरा है। यद्यपि कुछ लोग अति निर्धन होने के कारण भीख मांगकर छठ व्रत के पुण्य की प्राप्ति करते हैं। मगर उसका दूसरा पहलू यह भी है कि हाल के वर्षो में छठ आते ही सड़कों, बाजारों व मुहल्लों में छठ व्रत करने के लिए भीख मांगने वालों की भीड़ बढ़ती जा रही है। पेश है आस्था से जुड़े इस मुद्दे की सच्चाई उजागर करती रिपोर्ट-
भीख मांगकर छठ करने वालों की तादाद खास कर साकची बाजार में काफी देखा जा सकती है। मंगलवार को दोपहर साढ़े बारह बजे गाड़ी रोकते ही हाथ में लाल कपड़े से ढका सूप लिए एक महिला सामने आती है और छठ के नाम पर कुछ पैसे मांगती है। पैसे लेकर वह आगे बढ़ जाती है। तभी अनयास ही मेरे मुंह एक सवाल निकल जाता है, तुम इस पैसे को क्या करोगी, बताने से बचते हुये वह तेजी से आगे बढ़ जाती है। उसकी बच्ची ने बताया कि शाम को इस पैसे से चावल खरीदेंगे। इस तरह से मेरे मन में उत्सुकता हुई, और इसको लेकर और खोजबीन की। एक अधेड़ महिला मिलती है। उसे छठ व्रत के बारे में कुछ भी पता नहीं है। कब से शुरू हो रहा है छठ, किस दिन प्रथम अर्घ्य है। इसका मतलब उसे मालूम नहीं है। लेकिन वह छठ के नाम पर लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रही है। उससे बातचीत करने पर कहीं से नहीं लगा कि वह छठ करने वाली है या कभी की है।
भीख से मिलता है निवाला
पिछले एक माह से भालुबासा के आसपास के क्षेत्रों में छठ के नाम पर भीख मांग रही कामली को छठ की महत्ता को बताने के बाद बताती है कि इसी के सहारे उसके परिवार को निवाला मिलता है। हालांकि कमला का भरापूरा परिवार है पर पति के शराबी होने के चलते परिवार की गाड़ी उसी को खींचनी पड़ती है। अनपढ़ होने के चलते उसे जीविकोपार्जन के लिये भिक्षाटन का सहारा लेना पड़ा है। वैसे तो छठ व्रत से उसका कोई लेना-देना नहीं है पर उसे यह पता है कि छठ व्रत के नाम पर भीख देने से जल्दी कोई इनकार नहीं करता है। यही कारण है कि पिछले एक माह से वह छठ के नाम पर भीख मांग रही है। उसने बताया कि जब वह छठ के नाम पर भीख मांगती है तो उसे अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है और उसके परिवार को दो जून की रोटी मयस्सर हो जाती है।
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छठ के नाम पर चल रही इनकी जीविका
जमशेदपुर : छठ व्रत के पावन अवसर पर उगते व डूबते सूरज को अर्घ्य देना महज परंपरा नहीं है वरन इसमें जीवन का महत्वपूर्ण सार छिपा है। शायद इस कारण ही पूरब के इस व्रत को मनाने वाले लोगों की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। सामान्यत: मनोकामना पूरी करने के लिए भीख मांगकर छठ करने की परंपरा रही है। वहीं कुछ लोग अति निर्धन होने के कारण भी भीक्षाटन कर छठ व्रत करते हैं। तो दूसरा पहलू यह भी है कि हाल के वर्षो में छठ आते ही बाजारों व मुहल्लों में छठ व्रत करने के लिए भीख मांगने वालों की तादाद बढ़ जाती है लेकिन अधिकांश मामलों में छठ के नाम पर दो जून की रोटी का जुगाड़ करने की कोशिश होती है। साकची बाजार में मंगलवार दोपहर साढ़े बारह बजे गाड़ी रोकते ही हाथ में लाल कपड़े से ढका सूप लिए एक महिला सामने आती है और छठ के नाम पर कुछ पैसे मांगती है। पैसा मिलते ही आगे बढ़ जाती है। यह पूछने पर कि क्या वास्तव में वह छठ करेगी, वह बिना बोले आगे बढ़ जाती है। तब तक साथ चल रही उसकी बच्ची बताती है कि शाम को पैसे से चावल खरीदेंगे। थोड़ी ही देर में एक अधेड़ महिला मिलती है। उसे छठ व्रत के बारे में कुछ भी पता नहीं है। कब से शुरू हो रहा है छठ, किस दिन प्रथम अर्घ्य है लेकिन वह भी छठ के नाम पर लोगों से पैसे मांग रही है। भीख से मिलता है निवाला
पिछले एक महीने से भालूबासा के आसपास के क्षेत्रों में छठ के नाम पर भीख मांग रही कामली बताती है कि इसी के सहारे उसके परिवार को निवाला मिलता है। हालांकि कमला का भरापूरा परिवार है पर पति के शराबी होने के चलते परिवार की गाड़ी उसी को खींचनी पड़ती है। अनपढ़ होने के चलते उसे जीविकोपार्जन के लिये भिक्षाटन का सहारा लेना पड़ता है। वैसे तो छठ व्रत से उसका कोई लेना-देना नहीं है पर उसे यह पता है कि छठ व्रत के नाम पर भीख देने से जल्दी कोई इनकार नहीं करता। यही कारण है कि पिछले एक महीने से वह छठ के नाम पर भीख मांग रही है। उसने बताया कि जब वह छठ के नाम पर भीख मांगती है तो उसे अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है और उसके परिवार को दो जून की रोटी मयस्सर हो जाती है।
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