--पटाखा से गोलमुरी व बिष्टुपुर में सर्वाधिक वायु प्रदूषण--
अशोक सिंह, जमशेदपुर : क्षिति जल पावक गगन समीरा वाले पंचतत्व से बने मानव शरीर में सबसे अहम तत्व है वायु। शरीर में वायु के न रहने पर मनुष्य निष्प्राण हो जाता है। शुद्ध वायु जहां हमारे शरीर के स्वस्थ रहने में सहायक होती है वहीं प्रदूषित वायु हमारी मौत का कारण भी बन जाती है। आज के भीड़भाड़ भरे जीवन में वैसे तो हमें लगभग रोज ही प्रदूषित वायु का सामना करना पड़ता है, पर दीपावली के अवसर पर होने वाली आतिशबाजी के कारण हमारे शरीर में प्रचुर मात्रा में प्रदूषित या यूं कह लें कि जहरीली वायु प्रवेश कर जाती है। इसके चलते हम मारक बीमारी का शिकार हो जाते हैं। बावजूद इसके पर्व के उल्लास में हम इस ओर कतई ध्यान नहीं देते हैं।
दीवाली पर होने वाली आतिशबाजी के कारण वायुमंडल में वायु प्रदूषण की मात्रा तय मानक से कहीं ज्यादा होती है। वायुमंडल में तैरते रासायनिक पदार्थो का आंकड़ा प्रति क्यूबिक मीटर 120 माईक्रोग्राम होना चाहिये। वहीं बिष्टूपुर में प्रति क्यूबिक मीटर में वायु प्रदूषण की मात्रा 261 माईक्रोग्राम मिलती है। प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से प्राप्त आंकड़े के मुताबिक बिष्टुपुर के वायुमंडल में एसओ टू की मात्रा 38, एनओटू की मात्रा 62 जिसका प्रदूषण औसत 52 मिलता है। वहीं इस क्षेत्र में सस्पेंडेड पार्टिकल्स आफ मैटर (एसपीएम) की मात्रा 191 मिलता है। गोलमुरी में प्रति क्यूबिक मीटर में वायु प्रदूषण की मात्रा 256 माईक्रोगाम मिलती है। एसओ टू की मात्रा 40, एनओटू की मात्रा 54 जिसका प्रदूषण औसत 52 मिलता है। वहीं इस क्षेत्र में सस्पेंडेड पार्टिकल्स आफ मैटर (एसपीएम) की मात्रा 203 मिलता है।
प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के रीजनल आफिसर आरएन चौधरी ने बताया कि दीवाली के दौरान शहर में दो जगह गोलमुरी व बिष्टुपुर में मानेटरिंग प्वाइंट लगाया जाता है। उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण की मात्रा का आंकलन तो हर रोज किया जाता है लेकिन खास कर दीवाली के दिन वायु प्रदूषण ज्यादा होती है। उन्होंने बताया कि हाई वॉल्यूम सस्पेंडेड मशीन गोलमुरी वाहन केंद्र व बिष्टुपुर वाहन केंन्द्र के पास स्थापित किया गया है।
जागरूकता के लिए चलाते हैं अभियान
आरएन चौधरी ने बताया कि लोगों को जागरूक करने के लिए समय समय पर प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड द्वारा अभियान चलाया जाता है। उन्होने बताया कि पौधारोपण कर लोगों को जागरूक किया जाता है। इसके अलावा लोगों में जागरूकता लाने के लिए पर्यावरण दिवस पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। उन्होंने इस दीवाली लोगों से न्यूनतम वायु व ध्वनि प्रदूषण वाले पटाखे छोड़ने का आह्वान किया।
शुक्रवार, 13 नवंबर 2009
जमशेदपुर में ध्वनि प्रदूषण का बढ़ता खतरा
-ध्वनि प्रदूषण के मामले में मानगो चौक अव्वल, दूसरे स्थान पर बिष्टुपुर व गोलमुरी
अशोक सिंह, जमशेदपुर : प्रकाश पर्व दीवाली पर सब कुछ प्रकाशमय नहीं रहता। खुशियों एवं उत्साह भरे इस प्रकाशोत्सव पर कुछ ऐसा भी होता है जो हमारे अपनों के जीवन के लिए सुखद नहीं होता है। दीवाली के अवसर पर होने वाले प्रदूषण का सर्वाधिक नुकसान लौहनगरी को होता है। दुखद पहलू यह है कि शहर का सबसे पाश इलाका माने जाने वाले बिष्टुपुर में ध्वनि प्रदूषण की मात्रा मानगो के बाद सर्वाधिक मापी गई है।
झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बीते दीवाली ध्वनि प्रदूषण को डेसिबल पैमाने पर मापने के बाद पाया कि शहर के कुछ विशेष क्षेत्र में ध्वनि प्रदूषण किसी स्वस्थ शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक स्तर तक पहुंच जाता है। पटाखों से होने वाले वायु प्रदूषण से पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुंचा है।
यहां-यहां होता है सर्वाधिक प्रदूषण
आदित्यपुर स्थित राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तय मानक के अनुरूप 6 बजे से 9 बजे तक औद्योगिक क्षेत्रों में ध्वनि प्रदूषण की मात्रा 75 डेसिबल अधिकतम व पूर्वाह्न 9 बजे से अपराह्न 6 बजे तक 70 डेसिबल अधिकतम होनी चाहिए जबकि व्यवसायिक क्षेत्रों में दिन में ध्वनि प्रदूषण की मात्रा 65 डेसिबल व रात में 55 डेसिबल तय की गई है। रिहायशी क्षेत्रों में दिन में अधिकतम ध्वनि प्रदूषण की मात्रा 55 व रात में 45 डेसिबल निर्धारित है। मनुष्य के लिए उपयुक्त ध्वनि क्षमता जहां सामान्य दिनों में 45 से 55 डेसिबल होती है, वहीं ध्वनि प्रदूषण के मामले में मानगो चौक पहले पायदान पर है। यहां सर्वाधिक ध्वनि प्रदूषण दीवाली के दिन 94 डेसिबल होता है। दूसरे पायदान पर बिष्टुपर व गोलमुरी है, जहां ध्वनि प्रदूषण की मात्रा 89 डेसिबल रहती है। तीसरे स्थान पर साकची गोलचक्कर (86 डेसिबल) व हावड़ा ब्रिज(86 डेसिबल) है। इसके अलावा आदित्यपुर शेरे पंजाब व एस टाइप में ध्वनि प्रदूषण का मात्रा 96 है जो इस क्षेत्र का सर्वाधिक ध्वनि प्रदूषण है। ये सभी आंकडे़ तय मानक से काफी ज्यादा हैं।
24 जगहों पर लगाये जायेंगे मापक यंत्र
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हर वर्ष आदित्यपुर समेत शहर के 18 जगहों पर दीवाली के एक दिन पूर्व व दीवाली के दिन प्रदूषण का आकलन करता है लेकिन इस वर्ष 24 जगहों पर प्रदूषण मापक यंत्र लगाए जायेंगे जिसमें बर्मामाइंस, सोनारी एयरोड्रम, रेलवे स्टेशन व एनआईटी को शामिल किया गया है।
अशोक सिंह, जमशेदपुर : प्रकाश पर्व दीवाली पर सब कुछ प्रकाशमय नहीं रहता। खुशियों एवं उत्साह भरे इस प्रकाशोत्सव पर कुछ ऐसा भी होता है जो हमारे अपनों के जीवन के लिए सुखद नहीं होता है। दीवाली के अवसर पर होने वाले प्रदूषण का सर्वाधिक नुकसान लौहनगरी को होता है। दुखद पहलू यह है कि शहर का सबसे पाश इलाका माने जाने वाले बिष्टुपुर में ध्वनि प्रदूषण की मात्रा मानगो के बाद सर्वाधिक मापी गई है।
झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बीते दीवाली ध्वनि प्रदूषण को डेसिबल पैमाने पर मापने के बाद पाया कि शहर के कुछ विशेष क्षेत्र में ध्वनि प्रदूषण किसी स्वस्थ शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक स्तर तक पहुंच जाता है। पटाखों से होने वाले वायु प्रदूषण से पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुंचा है।
यहां-यहां होता है सर्वाधिक प्रदूषण
आदित्यपुर स्थित राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तय मानक के अनुरूप 6 बजे से 9 बजे तक औद्योगिक क्षेत्रों में ध्वनि प्रदूषण की मात्रा 75 डेसिबल अधिकतम व पूर्वाह्न 9 बजे से अपराह्न 6 बजे तक 70 डेसिबल अधिकतम होनी चाहिए जबकि व्यवसायिक क्षेत्रों में दिन में ध्वनि प्रदूषण की मात्रा 65 डेसिबल व रात में 55 डेसिबल तय की गई है। रिहायशी क्षेत्रों में दिन में अधिकतम ध्वनि प्रदूषण की मात्रा 55 व रात में 45 डेसिबल निर्धारित है। मनुष्य के लिए उपयुक्त ध्वनि क्षमता जहां सामान्य दिनों में 45 से 55 डेसिबल होती है, वहीं ध्वनि प्रदूषण के मामले में मानगो चौक पहले पायदान पर है। यहां सर्वाधिक ध्वनि प्रदूषण दीवाली के दिन 94 डेसिबल होता है। दूसरे पायदान पर बिष्टुपर व गोलमुरी है, जहां ध्वनि प्रदूषण की मात्रा 89 डेसिबल रहती है। तीसरे स्थान पर साकची गोलचक्कर (86 डेसिबल) व हावड़ा ब्रिज(86 डेसिबल) है। इसके अलावा आदित्यपुर शेरे पंजाब व एस टाइप में ध्वनि प्रदूषण का मात्रा 96 है जो इस क्षेत्र का सर्वाधिक ध्वनि प्रदूषण है। ये सभी आंकडे़ तय मानक से काफी ज्यादा हैं।
24 जगहों पर लगाये जायेंगे मापक यंत्र
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हर वर्ष आदित्यपुर समेत शहर के 18 जगहों पर दीवाली के एक दिन पूर्व व दीवाली के दिन प्रदूषण का आकलन करता है लेकिन इस वर्ष 24 जगहों पर प्रदूषण मापक यंत्र लगाए जायेंगे जिसमें बर्मामाइंस, सोनारी एयरोड्रम, रेलवे स्टेशन व एनआईटी को शामिल किया गया है।
मनोकामना या स्वार्थ
--धार्मिक भावनाओं के साथ हो रहा खिलवाड़--
अशोक सिंह, जमशेदपुर : छठ व्रत के पावन अवसर पर उगते व डूबते सूरज को अर्घ्य देना महज परंपरा नहीं है, बल्कि इसमें जीवन का महत्वपूर्ण सार छिपा होता है। इस लिए पूरब के इस व्रत को मनाने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसा कहा जाता है कि मनोकामना पूरी करने के लिए भीख मांगकर छठ करने की परंपरा है। यद्यपि कुछ लोग अति निर्धन होने के कारण भीख मांगकर छठ व्रत के पुण्य की प्राप्ति करते हैं। मगर उसका दूसरा पहलू यह भी है कि हाल के वर्षो में छठ आते ही सड़कों, बाजारों व मुहल्लों में छठ व्रत करने के लिए भीख मांगने वालों की भीड़ बढ़ती जा रही है। पेश है आस्था से जुड़े इस मुद्दे की सच्चाई उजागर करती रिपोर्ट-
भीख मांगकर छठ करने वालों की तादाद खास कर साकची बाजार में काफी देखा जा सकती है। मंगलवार को दोपहर साढ़े बारह बजे गाड़ी रोकते ही हाथ में लाल कपड़े से ढका सूप लिए एक महिला सामने आती है और छठ के नाम पर कुछ पैसे मांगती है। पैसे लेकर वह आगे बढ़ जाती है। तभी अनयास ही मेरे मुंह एक सवाल निकल जाता है, तुम इस पैसे को क्या करोगी, बताने से बचते हुये वह तेजी से आगे बढ़ जाती है। उसकी बच्ची ने बताया कि शाम को इस पैसे से चावल खरीदेंगे। इस तरह से मेरे मन में उत्सुकता हुई, और इसको लेकर और खोजबीन की। एक अधेड़ महिला मिलती है। उसे छठ व्रत के बारे में कुछ भी पता नहीं है। कब से शुरू हो रहा है छठ, किस दिन प्रथम अर्घ्य है। इसका मतलब उसे मालूम नहीं है। लेकिन वह छठ के नाम पर लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रही है। उससे बातचीत करने पर कहीं से नहीं लगा कि वह छठ करने वाली है या कभी की है।
भीख से मिलता है निवाला
पिछले एक माह से भालुबासा के आसपास के क्षेत्रों में छठ के नाम पर भीख मांग रही कामली को छठ की महत्ता को बताने के बाद बताती है कि इसी के सहारे उसके परिवार को निवाला मिलता है। हालांकि कमला का भरापूरा परिवार है पर पति के शराबी होने के चलते परिवार की गाड़ी उसी को खींचनी पड़ती है। अनपढ़ होने के चलते उसे जीविकोपार्जन के लिये भिक्षाटन का सहारा लेना पड़ा है। वैसे तो छठ व्रत से उसका कोई लेना-देना नहीं है पर उसे यह पता है कि छठ व्रत के नाम पर भीख देने से जल्दी कोई इनकार नहीं करता है। यही कारण है कि पिछले एक माह से वह छठ के नाम पर भीख मांग रही है। उसने बताया कि जब वह छठ के नाम पर भीख मांगती है तो उसे अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है और उसके परिवार को दो जून की रोटी मयस्सर हो जाती है।
फोटो---
छठ के नाम पर चल रही इनकी जीविका
जमशेदपुर : छठ व्रत के पावन अवसर पर उगते व डूबते सूरज को अर्घ्य देना महज परंपरा नहीं है वरन इसमें जीवन का महत्वपूर्ण सार छिपा है। शायद इस कारण ही पूरब के इस व्रत को मनाने वाले लोगों की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। सामान्यत: मनोकामना पूरी करने के लिए भीख मांगकर छठ करने की परंपरा रही है। वहीं कुछ लोग अति निर्धन होने के कारण भी भीक्षाटन कर छठ व्रत करते हैं। तो दूसरा पहलू यह भी है कि हाल के वर्षो में छठ आते ही बाजारों व मुहल्लों में छठ व्रत करने के लिए भीख मांगने वालों की तादाद बढ़ जाती है लेकिन अधिकांश मामलों में छठ के नाम पर दो जून की रोटी का जुगाड़ करने की कोशिश होती है। साकची बाजार में मंगलवार दोपहर साढ़े बारह बजे गाड़ी रोकते ही हाथ में लाल कपड़े से ढका सूप लिए एक महिला सामने आती है और छठ के नाम पर कुछ पैसे मांगती है। पैसा मिलते ही आगे बढ़ जाती है। यह पूछने पर कि क्या वास्तव में वह छठ करेगी, वह बिना बोले आगे बढ़ जाती है। तब तक साथ चल रही उसकी बच्ची बताती है कि शाम को पैसे से चावल खरीदेंगे। थोड़ी ही देर में एक अधेड़ महिला मिलती है। उसे छठ व्रत के बारे में कुछ भी पता नहीं है। कब से शुरू हो रहा है छठ, किस दिन प्रथम अर्घ्य है लेकिन वह भी छठ के नाम पर लोगों से पैसे मांग रही है। भीख से मिलता है निवाला
पिछले एक महीने से भालूबासा के आसपास के क्षेत्रों में छठ के नाम पर भीख मांग रही कामली बताती है कि इसी के सहारे उसके परिवार को निवाला मिलता है। हालांकि कमला का भरापूरा परिवार है पर पति के शराबी होने के चलते परिवार की गाड़ी उसी को खींचनी पड़ती है। अनपढ़ होने के चलते उसे जीविकोपार्जन के लिये भिक्षाटन का सहारा लेना पड़ता है। वैसे तो छठ व्रत से उसका कोई लेना-देना नहीं है पर उसे यह पता है कि छठ व्रत के नाम पर भीख देने से जल्दी कोई इनकार नहीं करता। यही कारण है कि पिछले एक महीने से वह छठ के नाम पर भीख मांग रही है। उसने बताया कि जब वह छठ के नाम पर भीख मांगती है तो उसे अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है और उसके परिवार को दो जून की रोटी मयस्सर हो जाती है।
अशोक सिंह, जमशेदपुर : छठ व्रत के पावन अवसर पर उगते व डूबते सूरज को अर्घ्य देना महज परंपरा नहीं है, बल्कि इसमें जीवन का महत्वपूर्ण सार छिपा होता है। इस लिए पूरब के इस व्रत को मनाने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसा कहा जाता है कि मनोकामना पूरी करने के लिए भीख मांगकर छठ करने की परंपरा है। यद्यपि कुछ लोग अति निर्धन होने के कारण भीख मांगकर छठ व्रत के पुण्य की प्राप्ति करते हैं। मगर उसका दूसरा पहलू यह भी है कि हाल के वर्षो में छठ आते ही सड़कों, बाजारों व मुहल्लों में छठ व्रत करने के लिए भीख मांगने वालों की भीड़ बढ़ती जा रही है। पेश है आस्था से जुड़े इस मुद्दे की सच्चाई उजागर करती रिपोर्ट-
भीख मांगकर छठ करने वालों की तादाद खास कर साकची बाजार में काफी देखा जा सकती है। मंगलवार को दोपहर साढ़े बारह बजे गाड़ी रोकते ही हाथ में लाल कपड़े से ढका सूप लिए एक महिला सामने आती है और छठ के नाम पर कुछ पैसे मांगती है। पैसे लेकर वह आगे बढ़ जाती है। तभी अनयास ही मेरे मुंह एक सवाल निकल जाता है, तुम इस पैसे को क्या करोगी, बताने से बचते हुये वह तेजी से आगे बढ़ जाती है। उसकी बच्ची ने बताया कि शाम को इस पैसे से चावल खरीदेंगे। इस तरह से मेरे मन में उत्सुकता हुई, और इसको लेकर और खोजबीन की। एक अधेड़ महिला मिलती है। उसे छठ व्रत के बारे में कुछ भी पता नहीं है। कब से शुरू हो रहा है छठ, किस दिन प्रथम अर्घ्य है। इसका मतलब उसे मालूम नहीं है। लेकिन वह छठ के नाम पर लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रही है। उससे बातचीत करने पर कहीं से नहीं लगा कि वह छठ करने वाली है या कभी की है।
भीख से मिलता है निवाला
पिछले एक माह से भालुबासा के आसपास के क्षेत्रों में छठ के नाम पर भीख मांग रही कामली को छठ की महत्ता को बताने के बाद बताती है कि इसी के सहारे उसके परिवार को निवाला मिलता है। हालांकि कमला का भरापूरा परिवार है पर पति के शराबी होने के चलते परिवार की गाड़ी उसी को खींचनी पड़ती है। अनपढ़ होने के चलते उसे जीविकोपार्जन के लिये भिक्षाटन का सहारा लेना पड़ा है। वैसे तो छठ व्रत से उसका कोई लेना-देना नहीं है पर उसे यह पता है कि छठ व्रत के नाम पर भीख देने से जल्दी कोई इनकार नहीं करता है। यही कारण है कि पिछले एक माह से वह छठ के नाम पर भीख मांग रही है। उसने बताया कि जब वह छठ के नाम पर भीख मांगती है तो उसे अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है और उसके परिवार को दो जून की रोटी मयस्सर हो जाती है।
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छठ के नाम पर चल रही इनकी जीविका
जमशेदपुर : छठ व्रत के पावन अवसर पर उगते व डूबते सूरज को अर्घ्य देना महज परंपरा नहीं है वरन इसमें जीवन का महत्वपूर्ण सार छिपा है। शायद इस कारण ही पूरब के इस व्रत को मनाने वाले लोगों की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। सामान्यत: मनोकामना पूरी करने के लिए भीख मांगकर छठ करने की परंपरा रही है। वहीं कुछ लोग अति निर्धन होने के कारण भी भीक्षाटन कर छठ व्रत करते हैं। तो दूसरा पहलू यह भी है कि हाल के वर्षो में छठ आते ही बाजारों व मुहल्लों में छठ व्रत करने के लिए भीख मांगने वालों की तादाद बढ़ जाती है लेकिन अधिकांश मामलों में छठ के नाम पर दो जून की रोटी का जुगाड़ करने की कोशिश होती है। साकची बाजार में मंगलवार दोपहर साढ़े बारह बजे गाड़ी रोकते ही हाथ में लाल कपड़े से ढका सूप लिए एक महिला सामने आती है और छठ के नाम पर कुछ पैसे मांगती है। पैसा मिलते ही आगे बढ़ जाती है। यह पूछने पर कि क्या वास्तव में वह छठ करेगी, वह बिना बोले आगे बढ़ जाती है। तब तक साथ चल रही उसकी बच्ची बताती है कि शाम को पैसे से चावल खरीदेंगे। थोड़ी ही देर में एक अधेड़ महिला मिलती है। उसे छठ व्रत के बारे में कुछ भी पता नहीं है। कब से शुरू हो रहा है छठ, किस दिन प्रथम अर्घ्य है लेकिन वह भी छठ के नाम पर लोगों से पैसे मांग रही है। भीख से मिलता है निवाला
पिछले एक महीने से भालूबासा के आसपास के क्षेत्रों में छठ के नाम पर भीख मांग रही कामली बताती है कि इसी के सहारे उसके परिवार को निवाला मिलता है। हालांकि कमला का भरापूरा परिवार है पर पति के शराबी होने के चलते परिवार की गाड़ी उसी को खींचनी पड़ती है। अनपढ़ होने के चलते उसे जीविकोपार्जन के लिये भिक्षाटन का सहारा लेना पड़ता है। वैसे तो छठ व्रत से उसका कोई लेना-देना नहीं है पर उसे यह पता है कि छठ व्रत के नाम पर भीख देने से जल्दी कोई इनकार नहीं करता। यही कारण है कि पिछले एक महीने से वह छठ के नाम पर भीख मांग रही है। उसने बताया कि जब वह छठ के नाम पर भीख मांगती है तो उसे अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है और उसके परिवार को दो जून की रोटी मयस्सर हो जाती है।
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