रविवार, 29 नवंबर 2009

निगरानी की नजर बचा चल रहे 'नजराने'



-कोड़ा पर कार्रवाई का दिख रहा असर -कोल्हान में नामांकन के दौरान किसी ने नहीं किया शक्ति प्रदर्शन-शहर से गांव तक न बाजे का शोर और न दिख रहे पोस्टर-दहशत में खो सा गया 'जीतेगा भई जीतेगा' का नारा------------------कामन इंट्रो : यह वही चुनाव क्षेत्र है जहां पिछली बार हुए चुनावों के दौरान धूम-धड़ाके, नारेबाजी व शोरगुल का माहौल सिर चढ़कर बोलता था। इस बार न तो वो चुनावी हलचल दिख रही है और न ही वो रौनक। पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा व उनके कथित सहयोगियों के घोटाले के आरोपों में फंसने के बाद निगरानी महकमे द्वारा शिकंजा कसना और लगातार नजर रखना इसका कारण बताया जा रहा है। कोल्हान के इस चुनावी माहौल पर जमीनी हकीकत बयां करती चक्रधरपुर से लौटकर अशोक कुमार सिंह की रिपोर्ट-------------------स्टोरी : चौथे चरण के मतदान में मात्र 14 दिन शेष है, पर मंझगांव, मनोहरपुर व चक्रधरपुर में कहीं भी किसी पार्टी का न झंडा दिख रहा है, न ही बैनर व होर्डिंग। इसका कारण पूर्व मुख्यमंत्री व उनके कथित साथियों पर निगरानी महकमे की टेढ़ी नजर का होना बताया जा रहा है।कोल्हान में सभी चरणों के लिए नामांकन की प्रक्रिया करीब-करीब पूरी होने वाली है। लेकिन किसी पार्टी ने शक्ति प्रदर्शन नहीं किया। इसके पूर्व हुए चुनावों में प्रत्याशियों के नोमिनेशन के दौरान ढोल-नगाड़े, वाहनों के काफिले व हजारों लोग होते थे। पहले आयकर विभाग की दबिश, तो अब चुनाव आयोग का डंडा। दोनों ही महकमे की तिरछी नजर ने यहां के चुनावी स्वयंबर की फिजा ही बदल दी है। न बाजा, न शोर। न पोस्टर, न बैनर। हालात यह हैं कि पम्पलेट व बिल्लों के लिए गांवों में गाडि़यों के पीछे भागने वाले बच्चे भी निराश है। दिन भर प्रचार वाहनों में बैठ जीतेगा भाई जीतेगा.. नारे लगाने वालों के गले भी साफ नहीं हो पा रहे हैं। शाम होते ही गांवों में लड़के अपने मन से ही किसी का झंडा ले जुलूस निकाल चुनाव-चुनाव खेलने लगते थे। इस बार ऐसा पहली बार दिखाई पड़ रहा है कि चुनावी माहौल कहीं नहीं है। न शहर में, न गांव में। एक तरह से पूरी तरह उदासीन माहौल है। आयकर विभाग की दहशत चुनाव में भाग लिये लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। साथ ही चुनाव आयोग के पर्यवेक्षकों की पैनी नजर प्रत्याशियों की हर गतिविधियों पर है। जरा भी लीक छोड़ी नहीं कि मुकदमा कायम। दहशत इतनी कि आदेश के बावजूद भी घरों पर झंडे नहीं लगाये जा रहे हैं। कहीं से भी नहीं लग रहा है कि विधानसभा का चुनाव 12 व 18 दिसंबर को होने वाला है। न लाउडस्पीकरों का शोर है, न कहीं कैसेट बज रहे हैं। बैनर भी शहर में कहीं नहीं दिखाई पड़ रहे हैं। दीवार लेखन पर तो जैसे पूर्णत: प्रतिबंध ही लगा है। दहशत इतनी है कि झारखंड की राजनीति में पकड़ रखने वाले राजनेता नामांकन कर चले आ रहे हैं और किसी को पता भी नहीं चल रहा है। स्थानीय लोग भी पिछले चुनावों को याद कर कह रहे हैं कि इस बार चुनाव का रंग काफी बदला-बदला सा है। कोल्हान में ठंड बढ़ी है लेकिन सियासत की लड़ाई अंदर ही अंदर गर्मी का अहसास दिला रही है। कमोबेश सभी पार्टी के नेता हाईटेक चुनाव प्रचार का दावा कर रहे हैं। मगर अभी तक इसका अक्स कम ही देखने को मिल रहा है। जो कुछ जनसंपर्क या प्रचार किया जा रहा है उसमें इस बात का खास खयाल रखा जा रहा है कि कहीं निगरानी की टेढ़ी नजर न पड़ जाय। मतदाताओं का कहना है कि पार्टी के लोग वोटरों के डायरेक्ट 'टच' में हैं। चुनावी सरगर्मी सड़क से उतर कर गांवों की ओर रुख कर गयी है। हां, पार्टियों के कार्यालय जरूर सभी जगह खुल गये हैं। चौथे चरण के लिए मंझगांव, मनोहरपुर व चक्रधरपुर में 12 दिसंबर को वोट डाले जाने हैं। उसके बाद चाईबासा, जगन्नाथपुर, सरायकेला व खरसांवा में 18 दिसंबर को पोलिंग होगी।