सोमवार, 1 सितंबर 2008
ट्विंकल ट्विंकल बिग स्टार, हाउ आइ वंडर...
सियासत के आकाश पर एक नया सितारा उगा है। अब तेलुगू फिल्मों के सुपर स्टार चिरंजीवी दक्कन में वही जादू जगाना चाहते हैं, जो 1982 में एन.टी. रामराव ने दिखाया था, या फिर उससे भी दस साल पहले तमिलनाडु में एम.जी. रामचंद्रन ने। चिरंजीवी के पास वह सब कुछ है, जो इन स्टार लीडर्स के पास था- जोरदार इमेज और जबर्दस्त पॉप्यलरिटी, जिसका अंदाजा इस हफ्ते शुरू में तिरुपति में हुई उनकी रैली से मिल जाता है। पॉलिटिक्स के सूरमा परेशानी महसूस कर रहे हैं और एक्सपर्ट एक नई सनसनी। चिरंजीवी बम साबित होंगे या पटाखा? वह हिस्ट्री को दोहराएंगे या उसी तरह चित्त हो जाएंगे, जैसे उनकी फिल्मों में विलेन होता है? बॉक्स ऑफिस के खुलने का इंतजार है। वक्त, चिरंजीवी और वोटर को अपना काम करने दे और फिलहाल हम उस बहुत पुरानी बहस पर लौटें कि विंध्याचल के उस पार की जमीन में यह कैसा जादू है, जो फिल्मी अदाकारों को सियासत का कामयाब खिलाड़ी बना देता है और इस पार की धरती इस मामले में बंजर क्यों साबित होती रही है? बिला शक अमिताभ बच्चन इंडियन सिनेमा के सबसे बड़े महानायक हैं, लेकिन वह इलाहाबाद में एक इलेक्शन जीतने से आगे नहीं बढ़ पाए। जिन आधा दर्जन दूसरे स्टार्स ने इस रास्ते पर चलने का हौसला दिखाया, वे ज्यादा से ज्यादा ऐसे एमपी बनकर रह गए, जिन्हें उनकी पार्टियां कैम्पेन के वक्त भीड़ खींचने से ज्यादा के काबिल नहीं समझतीं। माजरा क्या है?
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