दिल्ली इन दिनों तप रही है। हालांकि पिछले दो हफ्ते में दो बार बारिश ने दिल्ली को भिगोकर राह
त दी है लेकिन भीगने के बाद फिर से दिल्ली वालों के पसीने छूटने लगे हैं - गर्मी की वजह से नहीं बल्कि यह सोचकर कि जब एक महीने बाद मॉनसून का आगमन होगा तो फिर दिल्ली को डूबने से कौन बचाएगा। यह गनीमत है कि पिछले कई बरसों से दिल्ली में बहुत ज्यादा पानी नहीं बरस रहा। मौसम विभाग आंकड़ों के बल पर दिल्ली को भीगा हुआ मान लेता है लेकिन दिल्ली वाले जानते हैं कि अब बारिश चौमासा नहीं बल्कि चंद दिनों के लिए ही आती है - वह भी इतनी कम कि एक-दो घंटे में ही बंद हो जाती है। इस पर भी दिल्ली आशंकित है कि क्या इस बार भी डूबना होगा? एक पखवाड़े में दो बार दस-दस मिनट की ही बारिश आई और जगह-जगह जलभराव कर गई। यह स्थिति तो तब है जब एमसीडी की ओर से दावा किया जा रहा है कि नालों की सफाई का 95 फीसदी काम पूरा हो चुका है। राजधानी में लगभग 1400 नाले एमसीडी के तहत आते हैं, 75 नाले दिल्ली सरकार के सिंचाई विभाग के हैं, 73 पीडब्ल्यूडी के और 92 डीडीए के। हर साल इन नालों की सफाई पर करोड़ों रुपये खर्च करने का दावा किया जाता है। एमसीडी ही इस साल 20 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है। लेकिन जब बारिश आती है तो हर जगह यही हेडिंग नजर आती है 'सरकार के दावों की पोल खुल गई'। इसके बाद आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू होता है। एमसीडी कहती है कि दिल्ली सरकार ने नालों की सफाई नहीं कराई तो दिल्ली सरकार एमसीडी को डांटते हुए उस पर सारा दोष डाल देती है। नतीजा वही ढाक के तीन पात। नालों की सफाई में करोड़ों के घपले का भेद भी खुलता है। अक्सर गाद कागजों में ही निकाल दी जाती है। अगर असल में निकाली जाती है तो फिर उठाई ही नहीं जाती और वह बारिश से वापस नालों में चली जाती है। गाद निकालने और उठाने के ठेके में भी लाखों के वारे-न्यारे होते हैं। पिछली बार यह भेद भी खुला कि जितनी गाद निकाली नहीं गई, उससे ज्यादा उठाने के बिल पेश हो गए। एमसीडी ठेकेदारों के घपले से तंग आकर कभी खुद यह काम संभालती है और कभी एनजीओ को देती है लेकिन दलदल से दिल्ली को कभी नहीं बचा पाई। मुंबई में छह साल पहले हुए एक सर्वे में कहा गया था कि मॉनसून से 50 करोड़ का नुकसान होता है। अब यह राशि 100 करोड़ हो गई होगी और दिल्ली भी इस मामले में पीछे नहीं है जबकि सभी जानते हैं कि दिल्ली में मुंबई जैसी बारिश नहीं आती। कभी आ गई तो फिर पूरी दिल्ली डूब सकती है। मॉनसून में दिल्ली न डूबे, इसके लिए जिम्मेदारी तय करने की जरूरत है। दरअसल हर साल मॉनसून की तरह घपलों की भी बारिश होती है और फिर किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती। अगर हर नाले के लिए एक वरिष्ठ अधिकारी को जिम्मेदारी दे दी जाए और यह भी तय कर दिया जाए कि अगर उस इलाके में जलभराव हुआ तो उस अधिकारी को नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा तो शायद कुछ काम ईमानदारी से हो सके। फिलहाल तो हर अधिकारी यही बहाना बनाता नजर आता है - जब इतनी बारिश होगी तो फिर पानी तो भरेगा ही।