मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

ठंड से ठिठुर रही जिंदगी


--'नहीं तो भूखे मरते'---अपने गांव को कौन नहीं चाहता, अगर वह वहीं रहती तो भूख से मर जाती, सो टाटा चली आयी : आशा-

अशोक सिंह, जमशेदपुर : जब सूरज डूबता है तो सारी दुनिया सो जाती है, सपनों में खो जाती है लेकिन एक दुनिया ऐसी भी है जो रात के अंधेरों में भी चलती है।शहरों की रात की जिन्दगी में किसकी रुचि नहीं होती। इसीलिए सुदूर गांव में रहने वाले लोगों में जिज्ञासा बनी रहती है कि जमशेदपुर में रात कैसे कटती होगी। लेकिन कटु सत्य यह है कि यहां कुछ ऐसे तबके के लोग हैं, जिनकी तमाम जिंदगी फुटपाथ पर ही गुजर जाती है। जेठ की दोपहर हो या फिर माघ-पूस का जाड़ा, उन्हें तो फुटपाथ पर ही रात गुजारनी होती है। गर्मी में तो कोई परेशानी नहीं होती पर सर्दियों में रात काटना उनके लिये दुष्कर हो जाता है। आज जब ठंड अपने चरम पर है तो इन दिनों चल रही पछुआ हवा उनकी जिंदगी को ठिठुरा रही है।स्टेशन सबसे बड़ा आशियानारोशनी से नहाये इस शहर में फुटपाथ पर रहने वाले सबसे ज्यादा रेलवे स्टेशन के आसपास के फुटपाथों पर मिलेंगे। इसके बाद मानगो बस स्टैंड, साकची गोलचक्कर व बिष्टुपुर में लोग रात में बंद दुकानों के सामने सोते मिल जायेंगे। यहां दूर-दराज गांवों से आ कर लोग फुटपाथ को आशियाना बना लेते हैं। क्योंकि स्टेशन व आसपास में भीख मांगकर इनकी रोजी-रोटी चल जाती है। ऐसी ही एक महिला आशा अपने नौ बच्चों के साथ स्टेशन के नजदीक फुटपाथ पर रहती है। इसके सभी बच्चे स्टेशन पर यात्रियों से भीख मांगते हैं। यह पूछे जाने पर कि वह उड़ीसा के बारीपदा से जमशेदपुर क्यों आयी, वह कहती है कि अपने गांव को कौन नहीं चाहता। अगर वह वहीं रहती तो भूख से मर जाती। इसीलिए जमशेदपुर चली आयी।असुरक्षित महिलाएंदूर-दराज के गांवों से आयी महिलाएं अपने आप को काफी असुरक्षित मानती हैं। अपनी बेटी के इलाज के लिए बहरोगाड़ा से आयी एक महिला ने एमजीएम अस्पताल के सामने फुटपाथ पर ही किसी तरह रात गुजार दी। एमजीएम में इलाज के लिए जिले के बाहर से भी लोग आते हैं। गरीबों के लिए यहां आखिरी विकल्प होता है। इस अस्पताल के सामने फुटपाथ पर मरीजों के रिश्तेदार ठंड में भी ठिठुरते मिल जायेंगे। दैनिक जागरण की 'पहल'शहर में दरियादिल लोगों की भी कमी नहीं है। इन दिनों जब शहर में पारा लुढ़का हुआ है तो दैनिक जागरण ने समाजिक सरोकार के तहत फुटपाथ पर ठंड से ठिठुरते गरीबों को कंबल व गर्म कपड़े बांटकर उन्हें राहत पहुंचाने का प्रयास किया है।

दूसरी पत्नी को मिल सकती है अनुकंपा नियुक्ति-

19nov2009 दैनिक जागरण पेज १७
दूसरी पत्नी को मिल सकती है अनुकंपा नियुक्ति-
सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की कर्नाटक सरकार की अपील
नई दिल्ली, प्रेट्र : सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि किसी व्यक्ति की मौत के बाद उसकी दूसरी पत्नी भी अनुकंपा के आधार पर सरकारी नौकरी पाने की हकदार है, बशर्ते पहली पत्नी इसके लिए राजी हो। न्यायाधीश मार्कडेय काटजू और आर.एम. लोढ़ा की पीठ ने सरकार से पूछा कि दोनों पत्‍ि‌नयों के बीच यदि आपसी सहमति है तो आप कौन होते हैं इसका विरोध करने वाले? आप इससे क्यों परेशान हैं जब पति की मौत के बाद एक पत्‍‌नी अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाना चाहती है और दूसरी मौत की वजह से मिलने वाला मुआवजा पाना चाहती है? यह कहते हुए पीठ ने कर्नाटक सरकार की अपील ठुकरा दी। पीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम के जुड़ी सरकार की उस दलील को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया कि प्रावधान के मुताबिक व्यक्ति दूसरी शादी नहीं कर सकता, इसलिए कथित दूसरी पत्‍‌नी सिर्फ पहली पत्‍‌नी के साथ समझौता कर अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति पाने का दावा नहीं कर सकती। अदालत ने आ‌र्म्ड रिजर्व पुलिस के हवलदार जी. हनुमंत गौड़ा की दूसरी पत्‍‌नी लक्ष्मी को नौकरी देने पर विचार करने का निर्देश दिया। गौड़ा की पहले अनुसुइया से शादी हुई थी। बाद में गौड़ा ने लक्ष्मी से भी शादी कर ली। 12 अक्टूबर 1988 को गौड़ा की मौत के बाद दोनों के बीच संपत्ति को लेकर कानूनी लड़ाई शुरू हो गई। मामला जब कर्नाटक हाई कोर्ट तक पहुंचा तो दोनों के बीच नौकरी और अन्य लाभ पाने पर सहमति बन गई।

गुरुवार, 17 दिसंबर 2009


मनमौजी मजनुओं की मौज
-पिकनिक का मौसम बन रहा बहाना-
अशोक सिंह, जमशेदपुर : लौहनगरी में इन दिनों मनमौजी मजनुओं की मौज है। झारखंड के सर्वाधिक फैशनेबल माने जाने वाले शहर में कॉस्मोपोलिटन कल्चर पसरता जा रहा है। मेट्रो की तर्ज पर डेटिंग व फ्रेंडशिप के नाम पर बढ़ता खुलापन। दिसंबर माह के अंत में पिकनिक का समय होता है तो इनकी बहार ही बहार है। जमशेदपुर में टाटा स्टील प्रबंधन की कृपा से पार्क व मनोरम स्थलों की कमी नहीं है। अक्सर लोग साप्ताहिक छुट्यिों में सपरिवार इसका लुत्फ उठाते हैं लेकिन इन दिनों पार्क लव ब‌र्ड्स से भरे मिलते हैं। जुबली पार्क के हर झुरमुट व पेड़ की ओट दिन शुरू होते ही भरने लगते हैं। जूलाजिकल पार्क का नजारा तो और खुलापन लिये होता है। मनमौजी मजनुओं के लिए तो यह काफी सुरक्षित स्थन है। पैसे देकर टिकट खरीदा और जबतक चाहे, 'जिस तरह' चाहा, पार्क के कोनों का भरपूर उपयोग कर लिया।पर्यटन स्थल डिमना भी इन दिनों खूब रंगत लिये हुये है। टूरिस्टों की संख्या कम नवोदित मजनुओं की संख्या काफी देखने को मिल रही है। गर्म पाकेट वाले रईसजादों के लिए जमशेदपुर के हाईवे लांग-ड्राइव के लिए खूब पसंदीदा स्थल हैं, ऊपर से सड़क के किनारे होटल-मोटल-ढाबा सोने पर सुहागा। जिस किसी होटल-मोटल में चले जाएं, दर्जनों की संख्या में प्रेमी जोड़े चोंच लड़ाते मिल जाएंगे। यहां तक कि स्कूलों के बच्चे भी। इन सब हरकतों को स्थानीय प्रशासन बिल्कुल नजरअंदाज किये हुये है। शायद किसी बड़ी घटना का इंतजार है।

मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

अपना गम छिपा औरों को हंसा रहा छऊ


--वैश्विक पहचान वाले लोकनृत्य का राजनीति भी कर रही इस्तेमाल---- संरक्षण व विकास के लिए नहीं हो रहा सरकार से कोई काम ------
अशोक सिंह, जमशेदपुर : खरकइ नदी के तट पर बसा है सरायकेला। भले ही यह छोटा शहर हो, मगर इसकी ख्याति विश्व के कोने कोने तक है। आखिर क्यों? यह सवाल यदि आपके भी जेहन में आये तो इसका सरल जवाब है छऊ नृत्य। जी, हां। इसी छऊ नृत्य ने सरायकेला को दी है वैश्विक पहचान। और, आजकल का समय तो चुनाव का है। इस बार चुनाव प्रचार में भी छऊ नृत्य का सहारा लिया जा रहा है। मगर इस नृत्य कला का और विकास कैसे होगा? कलाकारों की दशा कैसे सुधरेगी? इसकी चिंता किसे व कितनी है? यदि आपकी संवेदना को भी ये या इन जैसे दूसरे सवाल झकझोर रहे हों तो हम आपको ले चलते हैं सरायकेला की सड़कों पर। आपको मिलाते हैं एक रिक्शाचालक से। जब वह छऊ नृत्य पेश करता है तो लक्जरी वाहनों में जिन्दगी के सफर का मजा लेने वाले तालियां बजाते हैं, परन्तु जब वही कलाकार सड़क पर रिक्शा खींचता है तो सम्मान के बदले मिलता अपमान, बाह्य के साथ आंतरिक भी। सरायकेला छऊ का इतिहास बहुत पुराना रहा है। यहां की जीवन पद्धति से लेकर संस्कृति एवं आस्था से यह इस कदर जुड़ा हुआ है कि ब्रिटिश राज में हरेक साल छऊ नृत्य महोत्सव के आयोजन के लिए शासन सहयोग करता था। देश आजाद होने के बाद भारत में भाषा के आधार पर राज्यों के विलय की प्रक्रिया शुरू हुई थी तो तत्कालीन सरायकेला राजघराने ने महोत्सव आयोजन के लिए भारत सरकार से हरेक साल आर्थिक सहयोग का करार किया था। राजपाट के एवज में छऊ। लेकिन कितनी बड़ी विडंबना है कि झारखंड में 'अपना राज' कायम होने के बाद व्यावहारिक अर्थो में शासन ने छऊ को बेगाना कर दिया। हालांकि सरायकेला जिला प्रशासन द्वारा हरेक साल छऊ महोत्सव का आयोजन जरूर किया जा रहा मगर यह तपती दोपहरी में बूंद के समान है। सरायकेला रियासत के तत्कालीन राजा कुवंर विजय प्रताप सिंहदेव ने वर्ष 1920 में छऊ नृत्य को गांवों से निकालकर शहर में लाये थे। छऊ नृत्य कला के संरक्षण के लिए राज्य सरकार ने वर्ष 1960-61 में एक केन्द्र की स्थापना की। यहां के प्रशिक्षण केन्द्र से निकले कलाकारों ने राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय कला के क्षेत्र में छऊ नृत्य को लोकप्रिय बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस केन्द्र से निकले कलाकारों ने सोवियत संघ, जापान, दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया, मलेशिया में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किये।आज से सौ साल पहले तक छऊ नृत्य के पारंपरिक नियम कायदे थे। जिनका आज भी पालन किया जाता है। पेड़ों की टहनियों को शरीर में बांधकर छऊ नृत्य करते हैं। इससे पहले तक सरायकेला में छह अखाड़ों में छऊ नृत्य हुआ करता था। कुवंर विजय प्रताप सिंहदेव ने छऊ नृत्य को मार्शल आर्ट व क्लासिक डांस के साथ सामंजस्य कराया था। हालांकि जो छऊ नृत्य राजपरिवार के लोग करते थे उस नृत्य को प्रजा नहीं करती थी। छऊ नृत्य को आगे बढ़ाने में सुधीरेन्द्र नारायण सिंहदेव ने काफी अहम भूमिका निभाई। इसके लिए उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया था। इसके अलावा स्वर्गीय केदार नाथ साहू को भी पद्मश्री पुरस्कार मिला था। कला केन्द्र में दस से बारह की संख्या में छात्र-छात्राएं छऊ नृत्य की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। छऊ नृत्य की तीन शैली1। सरायकेला शैली : इस शैली में मुखौटा लगाया जाता है जो नृत्य की भाव-भंगिमा को प्रदर्शित करने वाला होता है।2. खरसांवा शैली : इस शैली में मुखौटा नहीं होता है। इसमें सिर्फ कला का प्रदर्शन किया जाता है।3. मानभूम शैली : इस शैली में मुखौटा बहुत बड़ा होता है। इस शैली के कलाकार बहुत कलाबाजी करते हैं।

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009

वहां चांद की तैयारी यहां बैलगाड़ी की सवारी


--कोल्हान में पिछड़ेपन, अशिक्षा व गरीबी है नक्सलवाद का सबसे बड़ा कारण-----------------------
अशोक सिंह, जमशेदपुर : हम चांद पर कदम रख चुके हैं। हमारा चिकित्सा विज्ञान प्रकृति को चुनौती दे रहा है। आइटी के क्षेत्र में हमारे देश को अव्वल माना जाता है। हम रोज विकास के क्षेत्र में नई ऊंचाई भी छू रहे है। लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू भी है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण कोल्हान में देखने को मिलता है जहां के सैंकड़ों गांव आज भी विकास से कोसों दूर हैं। यदि यह कहा जाए कि इन गांवों को लोगों को विकास का अर्थ ही नहीं मालूम तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए। कोल्हान की आधी से ज्यादा आबादी बुनियादी सुविधाओं तक से महरूम है। आज भी कोल्हान में सैंकड़ों गांव ऐसे हैं जहां के किसान कृषि कार्य में ट्रैक्टर नहीं बल्कि बैलगाड़ी का इस्तेमाल करते हैं।इस इलाके में पिछड़पन इतना ज्यादा है कि इसे जानने के लिए आपको यह भी जानना पड़ेगा कि यहां के लोगों को असंवैधानिक कार्यो के लिए बहला-फुसला लिया जाता है। क्षेत्र में अशिक्षा की जकड़ इतनी मजबूत है कि लोग बदलाव के बारे में सोच भी नहीं सकते। रही सही कसर गरीबी पूरी कर दे रही। यहां के गरीब आदिवासी चाहकर भी आगे नहीं बढ़ पाते हैं। इलाके में महिलाओं की स्थिति तो और भी खराब है। इस क्षेत्र की महिलाओं को पुरुषों से भी ज्यादा काम करना पड़ता है। कई घरों में तो चूल्हा महिलाओं की कमाई से ही जलता है। गरीबी का आलम यह है कि बच्चों को भी हाथ बंटाना पड़ता है। गरीबी, अशिक्षा व पिछड़ेपन का दंश तब और जहरीला हो जाता है जब अधिकांश घरों के पुरुष हडि़या पीकर 'टून' रहते है। कोल्हान के गंवई इलाकों में प्रवेश करने पर साफ सुथरा पीने को पानी नहीं तो नहीं मिलेगा लेकिन हडि़या पीने को जरूर मिल जायेगी। कोल्हान के ग्रामीण इलाकों में हडि़या नामक शराब को खूब व खुले रूप में सेवन किया जाता है। इस समय धान की कटाई लगभग पूरी हो चुकी है। लोग धान की फसल को बैलगाड़ी पर लादकर ढ़ुलाई करने लगे हैं। जिनके पास बैलगाड़ी नहीं है है वे अपने सिर पर धान के बंडल को ढोते हैं। समाज विज्ञानियों का मानना है कि इसी तरह का पिछडपान, अशिक्षा, गरीबी व मजबूरी नक्सलवाद को पनपने व उसे बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाती है क्योंकि नक्सली गरीब लोगों को हसीन सपना दिखाकर, उनके पिछड़ेपन व गरीबी की कहानी को दर्दनाक तरीके के पेश करके ही उन्हें अपने पाले में करते हैं। कोल्हान में नक्सलवाद के विस्तार का असली कारण भी तो यही है।

मंगलवार, 1 दिसंबर 2009

नक्सली बंदी के दिन सुरक्षाकर्मियों से बातचीत करते अशोक







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36 घंटे बाद भी नहीं हटा पेड़




-पुलिस के जवान भी नक्सली खौफ के साये मेंआमझोर से लौटकर


अशोक सिंह : पूरे पटमदा में नक्सली खौफ सिर चढ़कर बोल रहा है। पुलिस चाहे जो दावे करे, फील्ड में वह अपनी मांद में ही घुसे रहने में खैरियत समझती है। हालात को इससे भी समझा जा सकता है कि आमझरा में बम विस्फोट के 36 घंटे बाद भी सड़क पर पेड़ ज्यों का त्यों पड़ा हुआ है। पुलिस के जवान पेड़ को हाथ लगाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे। पुलिस वाले अपने कैंप में ही जमे हैं। सीआरपीएफ ने मोर्चा संभाला भी है तो घटनास्थल से दूरी बनाकर।क्षेत्र का दौरा करने के बाद जानकारी मिली कि पुलिस को नक्सलियों की बंदी के समाप्त होने का इंतजार है। इसके बाद ही पेड़ हटाने का काम शुरू होगा। क्षेत्र के लोगों की दिनचर्या रुक गयी है। सड़कों पर सिर्फ साइकिलें मोटरसाइकिलें ही नजर रही हैं। चार पहिया वाहनों का परिचालन पूरी तरह ठप है। वैसे जमशेदपुर से पटमदा की ओर जाने वाली सड़क पर 11 किलोमीटर तक स्थिति सामान्य है लेकिन भादुडीह वन चेकनाका से आगे बढते ही नक्सलियों की बादशाहत साफ दिखती है। सुनसान सड़कें और सड़कों पर गश्त करते इक्का-दुक्का सीआरपीएफ जवान। जिस पुल को नक्सलियों द्वारा उड़ाए जाने का सर्वाधिक खतरा है, वहां सिर्फ एक सीआरपीएफ जवान बैठा मिला। बामनी चौक पर पुलिस वाले रोकते हैं। आगे जाने से मना करते हैं। बावजूद इसके आगे बढ़ने पर ग्राम पंचायत कुईयानी में सीआरपीएफ कैंप है। कुछ ही दूरी पर बोड़ाम थाना है। थाने की छत पर से दो पुलिस वालों ने मोर्चा संभाल रखा है तो घटनास्थल से आधा किलोमीटर पहले चामटा पुलिस कैंप में जवानों की चहलकदमी है। खास बात यह कि यह चहलकदमी कैंप के बाहर नहीं है। आगे बढ़ने पर आमझोर प्राथमिक विद्यालय के सामने करीब 500 सौ की संख्या में स्थानीय लोगों की बैठक चल रही थी। थोड़ी ही दूर पर कल की घटना का जीवंत गवाह पेड़ गिरा पड़ा है। यहां आसपास पुलिस की परछाई भी नहीं है।

दलमा क्षेत्र को लालगढ़ बनाने की तैयारी
-छत्रधर महतो बनने की फिराक में जालन मार्डीजमशेदपुर : पश्चिम मेदिनीपुर के लालगढ़ में जिस तरीके से माओवादियों ने पुलिस संत्रास प्रतिरोध समिति को आगे कर अपनी योजना को मूर्त रूप दिया, ठीक उसी तर्ज पर दलमा जोन में नक्सलियों ने तैयारी करनी शुरू कर दी है। पहले चरण में उग्रवादियों में गांव-गांव घूमकर ग्रामीणों को एकजुट करना शुरू कर दिया है। पुलिस-प्रशासन के खिलाफ गांव वालों का 'ब्रेनवाश' किया जा रहा है। परिणाम, पूरे क्षेत्र में पुलिस के खिलाफ हल्की ही सही आवाज बुलंद होने लगी है। बोड़ाम थाना क्षेत्र के आमझोर में हुई नक्सली वारदात के बाद स्थानीय लोगों की पुलिस के खिलाफ एकजुटता इस बात का प्रमाण है कि आने वाले दिनों में पुलिस को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। आज आमझोर बम विस्फोट घटनास्थल से मात्र पांच सौ मीटर की दूरी पर लगभग पांच सौ की संख्या में महिला-पुरुष एकजुट हुए और पुलिस के प्रति जबरदस्त आक्रोश का प्रदर्शन किया। ऐसी बात भी नहीं कि आमझोर में जुटे ग्रामीणों में वे शोकसंतप्त थे जिन्होंने कल की घटना में अपने परिजनों को खो दिया है। साफ है कि ग्रामीणों में पुलिस के खिलाफ उभरी नाराजगी 'स्पांटेनियस' है। ग्रामीणों का प्रतिनिधित्व गांव गणराज्य परिषद के जालन मार्डी कर रहे हैं। वैसे तो परिषद सामाजिक संगठन है लेकिन इसने गांवों में अच्छी-खासी पैठ बना रखी है। अचरज की बात यह कि ग्रामीणों की इस जुटान से पांच सौ मीटर की दूरी पर स्थित पुलिस कैंप अनजान-अनभिज्ञ है। पूर्वी सिंहभूम जिले से सटी बंगाल की सीमा पर नक्सलियों की मजबूत पकड़ है। दलमा क्षेत्र में खोखरो, गुमानडीह, कोयरा, सोमाडीह, चामटा, सासांगडीह, पहाड़पुर, कुईयानी, बोड़ाम, डांगरडीह, पाथरडीह, आमझोर, झिंझिरगोड़ा, पोड़ाखुंटा, बड़दह, धबनी, सुतरीउली, डांगार, डांगाडुंग, मुचीडीह, आंधरझोर, केंदाडीह, राधमागोड़ा, बेलगोड़ा, चिमटी, बोंटा भादुडीह आदि ऐसे गांव हैं, जहां नक्सलियों ने अपना साम्राज्य स्थापित कर रखा है। नक्सली गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए जिला प्रशासन ने चुनाव में 41 पोलिंग बूथ को स्थानांतरित कर दिया था। दलमा दस्ता दलमा के तराई में स्थित घुसित झरना गुड़ाबांधा दस्ता अपने क्षेत्र में मूवमेंट करता रहता है जबकि बेलपहाड़ी दस्ता वर्तमान में अपना क्षेत्र छोड़ कर लालगढ़ में कैंप कर रहा है।

रविवार, 29 नवंबर 2009

निगरानी की नजर बचा चल रहे 'नजराने'



-कोड़ा पर कार्रवाई का दिख रहा असर -कोल्हान में नामांकन के दौरान किसी ने नहीं किया शक्ति प्रदर्शन-शहर से गांव तक न बाजे का शोर और न दिख रहे पोस्टर-दहशत में खो सा गया 'जीतेगा भई जीतेगा' का नारा------------------कामन इंट्रो : यह वही चुनाव क्षेत्र है जहां पिछली बार हुए चुनावों के दौरान धूम-धड़ाके, नारेबाजी व शोरगुल का माहौल सिर चढ़कर बोलता था। इस बार न तो वो चुनावी हलचल दिख रही है और न ही वो रौनक। पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा व उनके कथित सहयोगियों के घोटाले के आरोपों में फंसने के बाद निगरानी महकमे द्वारा शिकंजा कसना और लगातार नजर रखना इसका कारण बताया जा रहा है। कोल्हान के इस चुनावी माहौल पर जमीनी हकीकत बयां करती चक्रधरपुर से लौटकर अशोक कुमार सिंह की रिपोर्ट-------------------स्टोरी : चौथे चरण के मतदान में मात्र 14 दिन शेष है, पर मंझगांव, मनोहरपुर व चक्रधरपुर में कहीं भी किसी पार्टी का न झंडा दिख रहा है, न ही बैनर व होर्डिंग। इसका कारण पूर्व मुख्यमंत्री व उनके कथित साथियों पर निगरानी महकमे की टेढ़ी नजर का होना बताया जा रहा है।कोल्हान में सभी चरणों के लिए नामांकन की प्रक्रिया करीब-करीब पूरी होने वाली है। लेकिन किसी पार्टी ने शक्ति प्रदर्शन नहीं किया। इसके पूर्व हुए चुनावों में प्रत्याशियों के नोमिनेशन के दौरान ढोल-नगाड़े, वाहनों के काफिले व हजारों लोग होते थे। पहले आयकर विभाग की दबिश, तो अब चुनाव आयोग का डंडा। दोनों ही महकमे की तिरछी नजर ने यहां के चुनावी स्वयंबर की फिजा ही बदल दी है। न बाजा, न शोर। न पोस्टर, न बैनर। हालात यह हैं कि पम्पलेट व बिल्लों के लिए गांवों में गाडि़यों के पीछे भागने वाले बच्चे भी निराश है। दिन भर प्रचार वाहनों में बैठ जीतेगा भाई जीतेगा.. नारे लगाने वालों के गले भी साफ नहीं हो पा रहे हैं। शाम होते ही गांवों में लड़के अपने मन से ही किसी का झंडा ले जुलूस निकाल चुनाव-चुनाव खेलने लगते थे। इस बार ऐसा पहली बार दिखाई पड़ रहा है कि चुनावी माहौल कहीं नहीं है। न शहर में, न गांव में। एक तरह से पूरी तरह उदासीन माहौल है। आयकर विभाग की दहशत चुनाव में भाग लिये लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। साथ ही चुनाव आयोग के पर्यवेक्षकों की पैनी नजर प्रत्याशियों की हर गतिविधियों पर है। जरा भी लीक छोड़ी नहीं कि मुकदमा कायम। दहशत इतनी कि आदेश के बावजूद भी घरों पर झंडे नहीं लगाये जा रहे हैं। कहीं से भी नहीं लग रहा है कि विधानसभा का चुनाव 12 व 18 दिसंबर को होने वाला है। न लाउडस्पीकरों का शोर है, न कहीं कैसेट बज रहे हैं। बैनर भी शहर में कहीं नहीं दिखाई पड़ रहे हैं। दीवार लेखन पर तो जैसे पूर्णत: प्रतिबंध ही लगा है। दहशत इतनी है कि झारखंड की राजनीति में पकड़ रखने वाले राजनेता नामांकन कर चले आ रहे हैं और किसी को पता भी नहीं चल रहा है। स्थानीय लोग भी पिछले चुनावों को याद कर कह रहे हैं कि इस बार चुनाव का रंग काफी बदला-बदला सा है। कोल्हान में ठंड बढ़ी है लेकिन सियासत की लड़ाई अंदर ही अंदर गर्मी का अहसास दिला रही है। कमोबेश सभी पार्टी के नेता हाईटेक चुनाव प्रचार का दावा कर रहे हैं। मगर अभी तक इसका अक्स कम ही देखने को मिल रहा है। जो कुछ जनसंपर्क या प्रचार किया जा रहा है उसमें इस बात का खास खयाल रखा जा रहा है कि कहीं निगरानी की टेढ़ी नजर न पड़ जाय। मतदाताओं का कहना है कि पार्टी के लोग वोटरों के डायरेक्ट 'टच' में हैं। चुनावी सरगर्मी सड़क से उतर कर गांवों की ओर रुख कर गयी है। हां, पार्टियों के कार्यालय जरूर सभी जगह खुल गये हैं। चौथे चरण के लिए मंझगांव, मनोहरपुर व चक्रधरपुर में 12 दिसंबर को वोट डाले जाने हैं। उसके बाद चाईबासा, जगन्नाथपुर, सरायकेला व खरसांवा में 18 दिसंबर को पोलिंग होगी।

शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

हैलो चुनाव आयोग : नहीं मिल रहा सूची में नाम

-परिचय पत्र नहीं होने से लौटाये गये वोटर
अशोक सिंह जमशेदपुर : लोकतंत्र के महापर्व में कुछ लोग भाग लेने से वंचित रह गये। जमशेदपुर पश्चिम विधान सभा अन्तर्गत मिसेज केएमपीएम इंटर कालेज स्थित 136 नंबर बूथ पर मतदान करने आये बबन सिंह व विनीता सिंह उस समय आश्चर्य में पड़ गये जब उनके नाम मतदाता सूची से गायब मिले। आनन-फानन में बबन सिंह ने अखबारों में छपे चुनाव आयोग के नंबर को डायल कर दिया। बताया कि वे पिछले कई चुनावों से मतदान करते आये हैं लेकिन इसबार उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया है। पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि आयोग ने कार्रवाई का आश्वासन दिया है। हालांकि काफी खोजबीन के बाद विनीता सिंह का नाम मिल गया। उधर वोटिंग के दौरान कई मतदान कर्मियों को माकूल परिचय पत्र नहीं होने के कारण वापस लौटना पड़ा। न्यू रानीकुदर निवासी संजीत कुमार, काली पूजा क्लब स्थित मतदान केन्द्र पर वोट डालने पहुंचे थे मगर उनके पास चुनाव आयोग द्वारा जारी पहचान पत्र नहीं था। वहीं ग्वालपाड़ा निवासी त्रिभुवन चक्रवर्ती के पास सिर्फ करीम सिटी कालेज का पहचान पत्र था। इस वजह से वे मतदान करने से वंचित रह गये। गौरतलब हो कि चुनाव आयोग ने नरेगा कार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, पैन कार्ड आदि को पहचान पत्र का विकल्प दिया था। इसके बावजूद कई मतदाताओं के पास उपयुक्त पहचान पत्र नहीं थे।
'तू-तू, मैं-मैं' में छूट गया पहचानापत्रजमाशेदापुर
: मतदान करने जाने के लिए सजने-संवरने में तू-तू, मैं-मैं क्या हुई, एक दंपति का पहचान पत्र ही घर में छूट गया। बिष्टुपुर जुस्को स्कूल स्थित बूथ पर पहुंचने के बाद जब मतदाता पहचान पत्र की खोज हुई तो वहां भी गुपचुप तरीके से फिर तू तू मैं मैं हुई। अंत में दंपति पहचान पत्र लाने के लिए घर लौट गये।

मंगलवार, 24 नवंबर 2009

दैनिक जागरण के जनजागरण अभियान लाया रंग, बही बदलाव की बयार


-'परिवर्तन लाने को निष्पक्ष मतदान जरूरी'-

अशोक सिंह, जमशेदपुर : दैनिक जागरण का जनजागरण अभियान सराहनीय प्रयास है परंतु जब राजनैतिक पार्टियां, व्यक्ति विशेष, पार्टी विशेष व समूह विशेष की जागीर बन गयी हो तो समाज में किसी तरह की आशा करना व्यर्थ है। यदि समाज में परिवर्तन लाना है तो निष्पक्ष मतदान जरूरी है। ये बातें शहर में मतदान के लिए अलख जगाने निकले दैनिक जागरण के जनजागरण अभियान के दौरान प्रबुद्ध लोगों ने कहीं। हमारा चुनाव लायेगा बदलाव, अब नहीं तो कब, हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा, जैसे नारों के साथ जनजागरण रथ ने चुनाव के प्रति लोगों में जागरूकता लाई। डिमना रोड स्थित कार्यालय से निकला दैनिक जागरण अभियान रथ शहर के विभिन्न इलाकों में घूमता रहा। इस दौरान शहरवासियों के बीच यह संदेश देने का प्रयास किया गया कि चुनाव में सुधार जरूरी है ..लोकतंत्र का परिमार्जन जरूरी है और यह काम एक-एक मतदाता के जागरूक हुये बिना नहीं हो सकता है। सोमवार को जनजागरण अभियान रथ सुबह 11 बजे डीसी आवास के समक्ष पहुंचा तो लोगों ने इस अभियान को हाथों-हाथ लिया। लोगों ने नुक्कड़ नाटक देखने बाद दांतों तले अंगुली दबा ली। स्कूल से अपने बच्चों को लेकर लौट रही महिलाओं के समूह ने भी नाटक को बड़े ही गौर से देखा। कौतूहल का विषय यह था कि बच्चे बीच-बीच में अपने मम्मियों से सीधे सवाल दाग रहे थे। मां यह क्या हो रहा है। मां झिझक रही है और बच्चे के सवालों के जबाव शार्ट-कट में देकर फिर कार्यक्रम के तरफ मुखातिब हो रही थी। शत प्रतिशत महिलाओं ने माना कि मतदाताओं के लिए उनसे सीधे संवाद के लिए दैनिक जागरण का पहल जरूरी था। शहर के पॉश इलाके के लोगों को जगाने के बाद जनजागरण अभियान रथ अति व्यस्त माने जाने वाले जगह हावड़ा ब्रिज पहुंचा। यहां दैनिक जागरण का अभियान रथ ठीक चौराहे पर लगा और रंग कर्मियों की आवाज सुन लोग रुकने-ठहरने लगे थे। इस प्रस्तुति के साथ ही जुटे लोगों से बातचीत भी जारी रही और लोगों ने खुल कर अपनी बातें रखीं। सड़क के बीच बने सुंदर डिवाइडर पर खड़े होकर देख रहे लोगों ने कहा कि इस बार बदलाव की बयार बहेगी। विनोद पोद्दार व नयन प्रमाणिक तो काफी गुस्से में दिखे। इनका गुस्सा लाजिमी था। कारण कि वोट के बदले नोट जैसी समाज की बुराइयां लोगों के समक्ष पेश हो रही थी। अमरेन्द्र सिंह ने दैनिक जागरण के प्रयास की सराहना की। उन्होंने कहा कि वह वोट जरूर देंगे और अपनी समझ का इस्तेमाल भी करेंगे। चुनाव प्रचार का शोर थमने से कुछ देर पहले तक जानजागरण अभियान रथ गोलमुरी पहुंचा तो लोगों और राजनीतिक पार्टियों में धीरे-धीरे खामोशी आ रही थी। अंत में लोगों का कहना था कि दैनिक जागरण इतनी बड़ी जनसहभागिता के बाद लोगों के वजूद से जुड़ी एक जरूरी व एक जिंदा बहस छेड़ गया है। यदि इस पर अमल हुआ तो इसका सुखद परिणाम आने वाले दिनों में होगा।

गुरुवार, 19 नवंबर 2009

मुद्दे नहीं, व्यक्तित्व पर होगी बात


-पक्ष व विपक्ष के नेता होंगे कटघरे में-जनप्रतिनिधियों से सवाल पूछने के मूड में हैं छात्राएं
अशोक सिंह, जमशेदपुर : जमशेदपुर पूर्व में मुद्दे तो बहुत हैं पर जीत या हार को गढ़ने की ताकत किसी में नहीं है। यहां व्यक्ति विशेष की अहमियत ही चुनाव में जीत या हार का कारण बनेगा। यानी जिसका जितना संपर्क उसे उतने ही समर्थन की गुंजाइश। जमशेदपुर पूर्वी विधान सभा क्षेत्र की छात्राओं के मन में सबसे बड़ा सवाल इस क्षेत्र में उच्च शिक्षा के लिए एक भी कालेज का नहीं होना है। इस क्षेत्र में उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य व पेयजल की सुविधा काफी बदतर स्थिति में है। इस क्षेत्र में इंटर स्तर के कालेज तो हैं लेकिन कई विषयों के शिक्षक नहीं हैं। पुस्तकालय कंगाल है और प्रयोगशाला बदहाल। अंतिम छोर के इलाकों में प्राइमरी शिक्षा का हाल भी बेहाल है।आपका जनप्रतिनिधि कैसा हो-इस सवाल के जवाब में गीता सिंह मुंडा कहतीं है जनप्रतिनिधि जनता के प्रति समर्पित व दूरदर्शी होना चाहिए। जिससे लोगों का जीवन सुगम व सुखमय हो। शिक्षिका रंजना भारती कहती हैं कि आने वाला कल चुनौतियों भरा होगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्र के विकास में परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। परिवार ठीक रहेगा तो समाज ठीक रहेगा। समाज ठीक रहेगा तो हम सही जनप्रतिनिधि भी चुन सकते हैं। मुद्दे हर चुनाव में आते-जाते हैं। मगर जनप्रतिनिधि का व्यक्तित्व काफी मायने रखता है।इंटर की छात्रा इंदू कुमारी कहतीं हैं कि हम मुद्दे नहीं व्यक्तित्व के आधार पर अपना जनप्रतिनिधि चुनेंगे। यदि हमारे जनप्रतिनिधि साफ सुथरी छवि वाले हों तो अपनी बात उनके सामने रख सकते हैं। नीता कुमारी का कहना है कि समाज में अराजकता फैलाने वाला जनप्रतिनिधि नहीं चाहिये। वे जिस क्षेत्र में रहती हैं वहां सभी बुनियादी सुविधाएं हैं। मगर वक्त-बेवक्त अराजक स्थितियां परेशान करतीं हैं। जनप्रतिनिधि को इस पर ध्यान देना चाहिये। छात्रा कौशल्या कर्मकार कहती हैं विधान सभा क्षेत्र में विश्वविद्यालय तो दूर महाविद्यालय नहीं है। छात्रा ज्याली मार्डी ने कहा कि महिलाओं को भी मौके मिलें तो बात बनेगी। छात्रा प्रिया कुमारी का कहना है कि जनप्रतिनिधियों को उच्च शिक्षा व्यवस्था की बात करनी चाहिये। कोमली कुमारी का कहना है कि जनप्रतिनिधि जनता व समाज की भलाई की बात करें। इस क्षेत्र में प्रयोगशाला व लाईबे्ररी नहीं है। आश्चर्यजनक यह है कि आजतक इस सुविधा के लिए किसी ने आवाज नहीं उठायी। इन सहित तमाम मुद्दों पर ये युवतियां जनप्रतिनिधयों से सवाल पूछने के मूड में हैं।


बुधवार, 18 नवंबर 2009

जनजागरण-'बस अब और नहीं'


-बारिश में भी रही जनजागरण रथ की धूम-'बिहार के बाद अब झारखंड को ठीक करने की बारी'-'विधायकों को कार्यकाल के बीच में वापस बुलाने की व्यवस्था लागू हो'---------


अशोक सिंह, जमशेदपुर : झारखंड राज्य का गठन हुए नौ साल हो गये हैं। इस दौरान छह मुख्यमंत्री व छह राज्यपाल बने, मगर पता भी नहीं चला। वाकई इस मामले में भी झारखंड ने रिकार्ड बनाया है मगर विकास के मामले में हर मोर्चे पर राज्य शून्य साबित हुआ है। लोगों के बीच पहुंचने के बाद जागरण अभियान रथ जब यह याद दिलाता है तो लोगों में आक्रोश उमड़ पड़ता है। दैनिक जागरण के जनजागरण अभियान के दौरान नुक्कड़ नाटक व लघु फिल्म देखने के बाद लोग खुद कहते हैं 'बस अब और नहीं'।मंगलवार को जनजागरण रथ की रफ्तार और तेज हो गयी। शहर में जब रथ सोनारी वेस्ट ले आउट पहुंचा तो उसे देखने व सुनने के लिए हुजूम उमड़ पड़ा। नुक्कड़ नाटक 'नोट के बदले वोट' का मंचन होने पर खूब तालियां बजीं। सोनारी निवासी व मल्टीनेशनल कंपनी से रिटायर्ड 70 वर्षीय एके चौधरी कहते हैं वेरी इंटरेस्टिंग! उन्होंने कहा कि मतदान को लेकर हम सब में उदासीनता आयी है, तभी तो हमें नुक्कड़ नाटक के माध्यम से जागरूक किया जा रहा है। रविशंकर मिश्र कहते हैं विधायकों को कार्यकाल के बीच में वापस बुलाने की व्यवस्था लागू होनी चाहिये। थोड़ी देर बाद जनजागरण का कारवां कदमा बाजार पहुंचता है। नुक्कड़ नाटक शुरू होने में देर होने पर लोगों की बेचैनी बढ़ जाती है। नाटक का मंचन शुरू होता है तो लोगों में खामोशी छा जाती है। लेकिन जबरदस्ती वोट मांगने वाले सीन ने लोगों को ठहाके लगाने पर मजबूर कर दिया। ऐसे में कदमा निवासी कृत्या नंद ठाकुर कहते है नेता राष्ट्र भक्त हो, न की बोतल भक्त।शाम पांच बजे जनजागरण रथ ज्योंही शास्त्री नगर पहुंचा तो वहां स्वागत बारिश ने किया। लोग लघु फिल्म देखने के बाद प्रतिक्रिया देते हैं। दैनिक जागरण का यह प्रयास काफी सराहनीय है। रामजी शर्मा कहते हैं राज्य का गठन जिस उद्देश्य से किया गया था, उसे भ्रष्ट नेताओं ने मिट्टी में मिला दिया। नाटक देखने के बाद शिवराम कृष्ण शर्मा कहते हैं कि झारखंड दुनिया का सबसे भ्रष्ट राज्य बनने में शुमार हो गया है। बिहार तो ठीक हो गया है अब झारखंड को ठीक करने की बारी आ गयी है।

'सबसे खतरनाक है सपनों का मर जाना'


--दैनिक जागरण के जनजागरण अभियान का जमशेदपुर पश्चिम में आगाज--निगेटिव वोटिंग व्यवस्था लागू करने की मांग
अशोक सिंह, जमशेदपुर : जनता, जनप्रतिनिधि व जनतांत्रिक प्रणाली कठिनाइयों से घिर गयी है। इन कठिनाइयों से बाहर निकले के लिए यही सही समय है। दैनिक जागरण के जनजागरण अभियान की हवा पश्चिम से जब पूर्व की ओर बही तो लोगों ने इसे हाथों हाथ लिया। इस दौरान मंचित नाटक को देख कर लोगों ने कह डाला कि घर में बैठ जाना खतरनाक नहीं है और न ही शरीर स्थिर कर लेना खतरनाक है, सबसे खतरनाक है सपनों का मर जाना। दैनिक जागरण के जनजागरण अभियान के पांचवे दिन जमशेदपुर पश्चिम विधान सभा क्षेत्रों में ठंड बढ़ने के साथ-साथ जनजागरण रथ की भी रफ्तार बढ़ी। बुधवार को भालूबासा से शुरुआत हुई तो टिनप्लेट यूनियन महिला कालेज में जनजागरण अभियान का जबदस्त क्रेज रहा। इस विस चुनाव में पहली बार मतदान करने वाली छात्राओं ने नुक्कड़ नाटक को देखकर खुलकर निगेटिव वोटिंग व्यवस्था लागू करने की मांग की। मानदंड पर खरे न उतरने के बाद जनप्रतिनिधि को बीच में वापस बुलाने के सवाल पर सभी छात्रों ने एक स्वर में कहा-हां, हां ऐसी व्यवस्था अवश्य बननी चाहिये। टिनप्लेट यूनियन महिला कालेज की प्राचार्य ने कहा कि जनता को निर्भीक होकर मतदान करना चाहिये। पढ़े लिखे लोगों में ही मतदान का प्रतिशत कम होता है। चुनाव को हम पर्व के तरह मनाये तो जनतांत्रिक व्यवस्था चमकदार हो जायेगी। इस दौरान पॉलिटिकल साइंस की टीचर रंजना भगत ने दैनिक जागरण की सरहाना करते हुये कहा कि जनजागरण अभियान में हो रहे नाटक के मंचन देखने से लोगों में उत्साह आयेगा। उन्होंने कहा कि सदी की शुरुआत में तीन राज्यों का गठन हुआ था, जिसमें उतराखंड व छत्तीसगढ़ का विकास सराहनीय है। लेकिन अपार संभावनाएं होने के बावजूद झारखंड का विकास नहीं हो सका। उन्होंने कहा कि सही समय है स्वच्छ व साथ-सुथरे जनप्रतिनिधि चुनने का। शाम को जनजागरण रथ के बारीडीह पहुंचने पर लोगों में जबरदस्त उत्सुकता देखी गयी। नुक्कड़ नाटक को देखकर व्यवसायी गोपाल दास और प्रभु भुइंया ने दैनिक जागरण की प्रशंसा करते हुये कहा कि पिछड़े क्षेत्रों में साक्षरता कम होने के कारण गलत लोग पैसे का लालच देकर वोट प्राप्त कर विधानसभा पहुंच जाते हैं।

मंगलवार, 17 नवंबर 2009

वाह! दैनिक जागरण, माइंड ब्लोइंग


--जनजागरण चुनाव रथ का शहर में भरपूर समर्थन--
अशोक सिंह, जमशेदपुर : चुनाव में जीत कर जाने के बाद नेताओं ने झारखंड को सिर्फ और सिर्फ लूटा है। झारखंड गठन के नौ साल हो गये हैं। पर यहां पर कोई विकास कार्य नहीं हुआ है। क्रिकेटर रनों के मामले में रिकार्ड बनाते हैं, यहां के नेता घोटाले में रिकार्ड बना रहे हैं। हर रोज नये- नये रूप में इनके कारनामे सामने आ रहे हैं। इन विधान सभा चुनाव में ऐसे नेताओं को सबक सिखाना ही होगा। यह शब्द दैनिक जागरण के जनजागरण चुनाव रथ पर प्रस्तुत नुक्कड़ नाटक को देख कर अनायास ही दो युवतियों के मुंह से निकले। सोमवार को साकची गोलचक्कर के पास जनजागरण चुनाव रथ से मंचित किये जा रहे नुक्कड़ नाटक का सामने से फोटो खींच रहीं रितिका और सौम्या ने कहा वाह! दैनिक जागरण 'माइंड ब्लोइंग'। लोगों को झारखंड के जमीनी हालात व नेताओं की भूमिका से जुड़ी बातें समझ में आ जानी चाहिये। पहले तो नेताओं के बारे में सिर्फ सुनने को मिलता था। आज हर दिन अखबारों में इनके द्वारा किये गये घोटालों के नित्य नये रिकार्ड सामने आ रहे हैं। इसके बाद रथ पहुंचा बिष्टुपुर। वहां जनजागरण कार्यक्रम के दौरान पहली बार मतदान करने जा रहे छात्र-छात्राओं ने कहा कि निगेटिव वोटिंग की व्यवस्था होनी चाहिये। छात्रों से यह पूछे जाने पर कि क्या विधायक को कार्यकाल के बीच में बुलाने का कानून बनना चाहिये? शतप्रतिशत छात्रों ने कहा- हां, हां, ऐसा कानून निश्चित रूप से तुरंत बनाकर उसे प्रभावी भी कर देना चाहिए। नुक्कड नाटक व लघु फिल्म को देखने के बाद 70 बसंत पर कर चुके रिटायर्ड टाटा स्टीलकर्मी एमएन यादव ने दैनिक जागरण को बधाई देते हुये कहा कि फिल्म को देखने के बाद लोगों की आंखें खुल जाती हैं। उन्होंनें कहा कि जैसे नौकरी पेशा में न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता जरूरी होती है, वैसे ही जनप्रतिनिधियों के लिए भी शैक्षणिक योग्यता को अनिवार्य बनाना चाहिये। इसके बाद जुगसलाई में जनजागरण रथ के पहुंचते ही लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। नुक्कड नाटक में वोट के लिए पैसे की बारिश होते देख लोगों ने खूब तालियां बजाईं। लगे हाथ नेताओं पर आक्रोश भी दिखाया। इस दौरान मेघा सामड ने कहा कि इस चुनाव में भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा होगा। अविनाश दवागार का कहना था कि स्थायी सरकार हो, प्रत्याशियों को नकारने के लिए निगेटिव वोटिंग की व्यवस्था हो।झारखंड के दूसरे विधानसभा चुनाव में मतदाताओं में जनजागरण लाने के लिए निकला दैनिक जागरण के चुनाव रथ की स्पीड सोमवार को काफी तेज रही। कई इलाकों में भ्रमण के दौरान जनता का उसे भारी समर्थन मिला।

रविवार, 15 नवंबर 2009

वोट डालो, झारखंड बचाओ

---लोगों को जगाने निकला दैनिक जागरण का जनजागरण रथ -- जमशेदपुर पश्चिम में घूमा, लोगों में बहाई बदलाव की बयार
अशोक सिंह, जमशेदपुर : झारखंड विधान सभा चुनाव में लोगों को मतदान करने के प्रति सजग करने के लिए दैनिक जागरण द्वारा शुरू किये गये जनजागरण अभियान के तहत शनिवार को एक नये अध्याय की शुरुआत हुई। मानगो डिमना रोड स्थित कार्यालय से दैनिक जागरण का चुनाव रथ निकला जिसे शहर में प्रमुख महिला व्यवसायियों में शुमार विनीता शाह, सरला गनेड़ीवाल, प्रीति अग्रवाल, वंदना पाण्डेय, सुमिता पाण्डेय व अर्चना गौतम ने संयुक्त रूप से रवाना किया। पहले दिन मानगो के बाम्बे चौक व शंकुसाई इलाके में रथ घूमा। इसमें नुक्कड़ नाटक व गीत संगीत के जरिए लोगों को संदेश दिया गया कि झारखंड को बचाना है तो हर मतदाता को अपने मताधिकार का प्रयोग करना ही होगा। दैनिक जागरण के संदेश में लोगों ने काफी दिलचस्पी दिखाई। बदलाव की बयार बहती नजर आई। नुक्कड नाटक के जरिए बताया कि झारखंड गठन के नौ साल में छह सरकार बनीं, छह राज्यपाल भी रहे पर जनता बदहाल ही रह गई तो इसका कारण यही रहा कि सत्ता से जुड़े लोग स्वार्थसिद्धि में ही लगे रहे। सूबे को लूटते रहे। लेकिन यह चुनाव झारखंड को बचाने का बड़ा अवसर है। इसे हमें यूं ही जाने नहीं देना है। हालांकि इस दौरान हमें नाना प्रकार के प्रलोभन दिये जाएंगे। नोट से लेकर कई कई दूसरे प्रकार के लालच दिखाये जाएंगे पर हमें किसी में फंसना नहीं है। हमें स्थायी सरकार के लिए योग्य प्रत्याशी को चुनना है। नुक्कड़ नाटक के माध्यम से कलाकारों ने लोगों को बताया कि झारखंड को लूटने वाले फिर थैली खोल कर मैदान में आ गए हैं। वे चंद पैसों और शराब के बल पर फिर हमारे वोटों का सौदा करेंगे लेकिन हमें इस बार इनके बहकावे में नहीं आना है। हमें चंद सिक्कों की खातिर अपने भविष्य को गिरवी नहीं रखना है। हम स्वच्छ छवि वाले दलीय प्रत्याशियों को ही वोट देंगे ताकि राज्य में स्थिर सरकार बन सके। नुक्कड़ नाटक लोगों को काफी प्रभावित कर रहा था। दैनिक जागरण का चुनाव जनजागरण रथ रविवार को पटमदा इलाके में जाएगा।

शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

दीवाली में शहरवासी कैसे लेंगे सांस

--पटाखा से गोलमुरी व बिष्टुपुर में सर्वाधिक वायु प्रदूषण--

अशोक सिंह, जमशेदपुर : क्षिति जल पावक गगन समीरा वाले पंचतत्व से बने मानव शरीर में सबसे अहम तत्व है वायु। शरीर में वायु के न रहने पर मनुष्य निष्प्राण हो जाता है। शुद्ध वायु जहां हमारे शरीर के स्वस्थ रहने में सहायक होती है वहीं प्रदूषित वायु हमारी मौत का कारण भी बन जाती है। आज के भीड़भाड़ भरे जीवन में वैसे तो हमें लगभग रोज ही प्रदूषित वायु का सामना करना पड़ता है, पर दीपावली के अवसर पर होने वाली आतिशबाजी के कारण हमारे शरीर में प्रचुर मात्रा में प्रदूषित या यूं कह लें कि जहरीली वायु प्रवेश कर जाती है। इसके चलते हम मारक बीमारी का शिकार हो जाते हैं। बावजूद इसके पर्व के उल्लास में हम इस ओर कतई ध्यान नहीं देते हैं।
दीवाली पर होने वाली आतिशबाजी के कारण वायुमंडल में वायु प्रदूषण की मात्रा तय मानक से कहीं ज्यादा होती है। वायुमंडल में तैरते रासायनिक पदार्थो का आंकड़ा प्रति क्यूबिक मीटर 120 माईक्रोग्राम होना चाहिये। वहीं बिष्टूपुर में प्रति क्यूबिक मीटर में वायु प्रदूषण की मात्रा 261 माईक्रोग्राम मिलती है। प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से प्राप्त आंकड़े के मुताबिक बिष्टुपुर के वायुमंडल में एसओ टू की मात्रा 38, एनओटू की मात्रा 62 जिसका प्रदूषण औसत 52 मिलता है। वहीं इस क्षेत्र में सस्पेंडेड पार्टिकल्स आफ मैटर (एसपीएम) की मात्रा 191 मिलता है। गोलमुरी में प्रति क्यूबिक मीटर में वायु प्रदूषण की मात्रा 256 माईक्रोगाम मिलती है। एसओ टू की मात्रा 40, एनओटू की मात्रा 54 जिसका प्रदूषण औसत 52 मिलता है। वहीं इस क्षेत्र में सस्पेंडेड पार्टिकल्स आफ मैटर (एसपीएम) की मात्रा 203 मिलता है।
प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के रीजनल आफिसर आरएन चौधरी ने बताया कि दीवाली के दौरान शहर में दो जगह गोलमुरी व बिष्टुपुर में मानेटरिंग प्वाइंट लगाया जाता है। उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण की मात्रा का आंकलन तो हर रोज किया जाता है लेकिन खास कर दीवाली के दिन वायु प्रदूषण ज्यादा होती है। उन्होंने बताया कि हाई वॉल्यूम सस्पेंडेड मशीन गोलमुरी वाहन केंद्र व बिष्टुपुर वाहन केंन्द्र के पास स्थापित किया गया है।
जागरूकता के लिए चलाते हैं अभियान
आरएन चौधरी ने बताया कि लोगों को जागरूक करने के लिए समय समय पर प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड द्वारा अभियान चलाया जाता है। उन्होने बताया कि पौधारोपण कर लोगों को जागरूक किया जाता है। इसके अलावा लोगों में जागरूकता लाने के लिए पर्यावरण दिवस पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। उन्होंने इस दीवाली लोगों से न्यूनतम वायु व ध्वनि प्रदूषण वाले पटाखे छोड़ने का आह्वान किया।

जमशेदपुर में ध्वनि प्रदूषण का बढ़ता खतरा

-ध्वनि प्रदूषण के मामले में मानगो चौक अव्वल, दूसरे स्थान पर बिष्टुपुर व गोलमुरी
अशोक सिंह, जमशेदपुर : प्रकाश पर्व दीवाली पर सब कुछ प्रकाशमय नहीं रहता। खुशियों एवं उत्साह भरे इस प्रकाशोत्सव पर कुछ ऐसा भी होता है जो हमारे अपनों के जीवन के लिए सुखद नहीं होता है। दीवाली के अवसर पर होने वाले प्रदूषण का सर्वाधिक नुकसान लौहनगरी को होता है। दुखद पहलू यह है कि शहर का सबसे पाश इलाका माने जाने वाले बिष्टुपुर में ध्वनि प्रदूषण की मात्रा मानगो के बाद सर्वाधिक मापी गई है।
झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बीते दीवाली ध्वनि प्रदूषण को डेसिबल पैमाने पर मापने के बाद पाया कि शहर के कुछ विशेष क्षेत्र में ध्वनि प्रदूषण किसी स्वस्थ शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक स्तर तक पहुंच जाता है। पटाखों से होने वाले वायु प्रदूषण से पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुंचा है।
यहां-यहां होता है सर्वाधिक प्रदूषण
आदित्यपुर स्थित राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तय मानक के अनुरूप 6 बजे से 9 बजे तक औद्योगिक क्षेत्रों में ध्वनि प्रदूषण की मात्रा 75 डेसिबल अधिकतम व पूर्वाह्न 9 बजे से अपराह्न 6 बजे तक 70 डेसिबल अधिकतम होनी चाहिए जबकि व्यवसायिक क्षेत्रों में दिन में ध्वनि प्रदूषण की मात्रा 65 डेसिबल व रात में 55 डेसिबल तय की गई है। रिहायशी क्षेत्रों में दिन में अधिकतम ध्वनि प्रदूषण की मात्रा 55 व रात में 45 डेसिबल निर्धारित है। मनुष्य के लिए उपयुक्त ध्वनि क्षमता जहां सामान्य दिनों में 45 से 55 डेसिबल होती है, वहीं ध्वनि प्रदूषण के मामले में मानगो चौक पहले पायदान पर है। यहां सर्वाधिक ध्वनि प्रदूषण दीवाली के दिन 94 डेसिबल होता है। दूसरे पायदान पर बिष्टुपर व गोलमुरी है, जहां ध्वनि प्रदूषण की मात्रा 89 डेसिबल रहती है। तीसरे स्थान पर साकची गोलचक्कर (86 डेसिबल) व हावड़ा ब्रिज(86 डेसिबल) है। इसके अलावा आदित्यपुर शेरे पंजाब व एस टाइप में ध्वनि प्रदूषण का मात्रा 96 है जो इस क्षेत्र का सर्वाधिक ध्वनि प्रदूषण है। ये सभी आंकडे़ तय मानक से काफी ज्यादा हैं।
24 जगहों पर लगाये जायेंगे मापक यंत्र
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हर वर्ष आदित्यपुर समेत शहर के 18 जगहों पर दीवाली के एक दिन पूर्व व दीवाली के दिन प्रदूषण का आकलन करता है लेकिन इस वर्ष 24 जगहों पर प्रदूषण मापक यंत्र लगाए जायेंगे जिसमें बर्मामाइंस, सोनारी एयरोड्रम, रेलवे स्टेशन व एनआईटी को शामिल किया गया है।

मनोकामना या स्वार्थ

--धार्मिक भावनाओं के साथ हो रहा खिलवाड़--
अशोक सिंह, जमशेदपुर : छठ व्रत के पावन अवसर पर उगते व डूबते सूरज को अ‌र्घ्य देना महज परंपरा नहीं है, बल्कि इसमें जीवन का महत्वपूर्ण सार छिपा होता है। इस लिए पूरब के इस व्रत को मनाने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसा कहा जाता है कि मनोकामना पूरी करने के लिए भीख मांगकर छठ करने की परंपरा है। यद्यपि कुछ लोग अति निर्धन होने के कारण भीख मांगकर छठ व्रत के पुण्य की प्राप्ति करते हैं। मगर उसका दूसरा पहलू यह भी है कि हाल के वर्षो में छठ आते ही सड़कों, बाजारों व मुहल्लों में छठ व्रत करने के लिए भीख मांगने वालों की भीड़ बढ़ती जा रही है। पेश है आस्था से जुड़े इस मुद्दे की सच्चाई उजागर करती रिपोर्ट-
भीख मांगकर छठ करने वालों की तादाद खास कर साकची बाजार में काफी देखा जा सकती है। मंगलवार को दोपहर साढ़े बारह बजे गाड़ी रोकते ही हाथ में लाल कपड़े से ढका सूप लिए एक महिला सामने आती है और छठ के नाम पर कुछ पैसे मांगती है। पैसे लेकर वह आगे बढ़ जाती है। तभी अनयास ही मेरे मुंह एक सवाल निकल जाता है, तुम इस पैसे को क्या करोगी, बताने से बचते हुये वह तेजी से आगे बढ़ जाती है। उसकी बच्ची ने बताया कि शाम को इस पैसे से चावल खरीदेंगे। इस तरह से मेरे मन में उत्सुकता हुई, और इसको लेकर और खोजबीन की। एक अधेड़ महिला मिलती है। उसे छठ व्रत के बारे में कुछ भी पता नहीं है। कब से शुरू हो रहा है छठ, किस दिन प्रथम अ‌र्घ्य है। इसका मतलब उसे मालूम नहीं है। लेकिन वह छठ के नाम पर लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रही है। उससे बातचीत करने पर कहीं से नहीं लगा कि वह छठ करने वाली है या कभी की है।
भीख से मिलता है निवाला
पिछले एक माह से भालुबासा के आसपास के क्षेत्रों में छठ के नाम पर भीख मांग रही कामली को छठ की महत्ता को बताने के बाद बताती है कि इसी के सहारे उसके परिवार को निवाला मिलता है। हालांकि कमला का भरापूरा परिवार है पर पति के शराबी होने के चलते परिवार की गाड़ी उसी को खींचनी पड़ती है। अनपढ़ होने के चलते उसे जीविकोपार्जन के लिये भिक्षाटन का सहारा लेना पड़ा है। वैसे तो छठ व्रत से उसका कोई लेना-देना नहीं है पर उसे यह पता है कि छठ व्रत के नाम पर भीख देने से जल्दी कोई इनकार नहीं करता है। यही कारण है कि पिछले एक माह से वह छठ के नाम पर भीख मांग रही है। उसने बताया कि जब वह छठ के नाम पर भीख मांगती है तो उसे अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है और उसके परिवार को दो जून की रोटी मयस्सर हो जाती है।
फोटो---

छठ के नाम पर चल रही इनकी जीविका
जमशेदपुर : छठ व्रत के पावन अवसर पर उगते व डूबते सूरज को अ‌र्घ्य देना महज परंपरा नहीं है वरन इसमें जीवन का महत्वपूर्ण सार छिपा है। शायद इस कारण ही पूरब के इस व्रत को मनाने वाले लोगों की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। सामान्यत: मनोकामना पूरी करने के लिए भीख मांगकर छठ करने की परंपरा रही है। वहीं कुछ लोग अति निर्धन होने के कारण भी भीक्षाटन कर छठ व्रत करते हैं। तो दूसरा पहलू यह भी है कि हाल के वर्षो में छठ आते ही बाजारों व मुहल्लों में छठ व्रत करने के लिए भीख मांगने वालों की तादाद बढ़ जाती है लेकिन अधिकांश मामलों में छठ के नाम पर दो जून की रोटी का जुगाड़ करने की कोशिश होती है। साकची बाजार में मंगलवार दोपहर साढ़े बारह बजे गाड़ी रोकते ही हाथ में लाल कपड़े से ढका सूप लिए एक महिला सामने आती है और छठ के नाम पर कुछ पैसे मांगती है। पैसा मिलते ही आगे बढ़ जाती है। यह पूछने पर कि क्या वास्तव में वह छठ करेगी, वह बिना बोले आगे बढ़ जाती है। तब तक साथ चल रही उसकी बच्ची बताती है कि शाम को पैसे से चावल खरीदेंगे। थोड़ी ही देर में एक अधेड़ महिला मिलती है। उसे छठ व्रत के बारे में कुछ भी पता नहीं है। कब से शुरू हो रहा है छठ, किस दिन प्रथम अ‌र्घ्य है लेकिन वह भी छठ के नाम पर लोगों से पैसे मांग रही है। भीख से मिलता है निवाला
पिछले एक महीने से भालूबासा के आसपास के क्षेत्रों में छठ के नाम पर भीख मांग रही कामली बताती है कि इसी के सहारे उसके परिवार को निवाला मिलता है। हालांकि कमला का भरापूरा परिवार है पर पति के शराबी होने के चलते परिवार की गाड़ी उसी को खींचनी पड़ती है। अनपढ़ होने के चलते उसे जीविकोपार्जन के लिये भिक्षाटन का सहारा लेना पड़ता है। वैसे तो छठ व्रत से उसका कोई लेना-देना नहीं है पर उसे यह पता है कि छठ व्रत के नाम पर भीख देने से जल्दी कोई इनकार नहीं करता। यही कारण है कि पिछले एक महीने से वह छठ के नाम पर भीख मांग रही है। उसने बताया कि जब वह छठ के नाम पर भीख मांगती है तो उसे अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है और उसके परिवार को दो जून की रोटी मयस्सर हो जाती है।