मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

असफलताओं से डरें नहीं

असफलताओं से डरें नहीं, क्‍योंकि जहां गहन अंधकार होता है वहां दीपक की उज्‍जवलता और बढ़ जाती है।


सोमवार, 19 सितंबर 2011

खरनाक होता है सपनों का मर जाना

हर किसी की जिंदगी का एक बड़ा हिस्‍सा सपनों के सहारे कट जाता है। कभी बेहतर भविष्‍य का सपना तो कभी एक अच्‍दी नौकरी की सपना। कभी फर्राटे भरती कार की सवारी की सपना, तो कभी अपने कमाई से जुटाई गई एक अदद छत का सपना तो कभी सपनों को जीत लेने का सपना। कवि अवतार सिंह ने कहा है कि सबसे खतरनाक है सपनों का मर जाना।

दिल दहलाने वाली सुबह की फोन की घंटी


सुबह-सुबह करीब छह बजे फोन की घंटी घनघना उठी। मैं गहरी नींद में था। फोन रीसिव करने की इच्छा नहीं हो रही थी। घंटी दोबारा बजी तो मैंने फोन उठा लिया। उधर से एक हमारे निकट संबंधी का फोन था। वे इससे पहले तक बस कारोबार से जुड़े रहे थे। उन्होंने बताया कि आपको मालूम है कुमार अभय बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई है और काफी लोग मर चुके हैं। दिल दहला देने वाली इस खबर से मेरे रूह कांप उठे। इसका कारण भी था, क्योंकि कुमार अभय बस के मालिक मेरे संबंधियों में से एक रहे हैं। उससे ज्यादा उस बस के चालक, कंडक्टर भी हमारे काम के थे। यदि कुछ घर से मंगाना होता था तो बस के चालक व कंडक्टर से फोन कर मंगवा लिया करते थे। घटना की सूचना मिलने के बाद दिन भर उनके चेहरे और उनके साथ हुई पुरानी बातें याद आने लगी। वाकई यह फोन की घंटी काफी दिल दहलाने वाली थी। ईश्वर इस सड़क दुर्घटना में मारे गए यात्रियों व बस कर्मियों की आत्मा को शांति प्रदान करें।

शनिवार, 22 जनवरी 2011

बैल का काम रहा इंसान

2020 तक विकसित देश बनने की ओर अग्रसर बुलंद भारत की एक तस्वीर यह भी है। यह तस्वीर झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिला स्थित केंदाडीह-चाकुलिया गांव की है। पैसे के अभाव में इस दंपति को हर दिन कुछ इस तरह की जिद्दोजहद करनी पड़ती है।

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

पश्चिम मेदिनीपुर में माओवादी संत्रास विरोधी गण प्रतिरोध मंच नामक एक अज्ञात संगठन ने जगह-जगह बैनर लगाकर पश्चिम बंगाल के राजनीति परिदृश्य में एक नया भूचाल ला दिया है। इस तरह के हाईटेक बैनर पहली बार देखा गया है। बैनर को देख आम जनता के साथ ही राजनीतिक दलों में जिज्ञासा बढ़ती जा रही है। आखिर यह संगठन है क्या। इस का संरक्षक कौन है जो खुलेआम माओवादियों व नेताओं को चुनौती दे रहा है।

कागजों पर शिक्षा का अधिकार

शिक्षा का अधिकार कानून भले ही देश में लागू कर दिया गया है, पर पिछड़े इलाकों के बच्चे पेट की भूख शांत करने के लिए बैल-बकरी ही चरा रहे हैं। पश्चिमी सिंहभूम जिले के गोईलकेरा प्रखंड अंतर्गत चीनीबाड़ी गांव में स्कूल जाने के बजाय बच्‍चों को पशुओं को चराने की ट्रेनिंग दी जाती है।

यही है जरवा सभ्यता

जरवा अंडमान निकोबार द्वीप के मूल जनजाति बताये जाते हैं। पश्चिम मेदिनीपुर जिलांतर्गत घाटाल में शिशु उत्सव दौरान स्थानीय कलाकारों द्वारा इस जनजाति की सभ्यता व संस्कृति को दर्शाते हुये उनके नृत्य को पेश किया गया, जिसमें यह दिखाया गया कि आधुनिक काल में अस्तित्व रहने के बावजूद जरवा जनजाति का रहन-सहन किसी पशु के समान ही है, तभी तो वे आज भी पशुओं के समान ही पानी पीते हैं