शनिवार, 17 अगस्त 2019

डुबाने की लत


इंडिगो की उड़ान में पूरे जतन से आवभगत में लगी एयर होस्टेस को अंदाजा नहीं होगा कि उनकी शानदार (अभी तककंपनी के निदेशक आपस में क्यों लड़ रहे हैंसेबी किस बात की जांच कर रहा हैजेट एयरवेज के 20,000 से अधिक कर्मचारियों को यह समझ में नहीं आया कि उनकी कंपनी के मालिक या बोर्ड ने ऐसा क्या कर दिया जिससे कंपनी के साथ उनकी खुशियां भी डूब गईंआम्रपाली से मकान खरीदने वालों को भी कहां मालूम था कि कंपनी किस कदर हेराफेरी कर रही थी

सरकारी कंपनियों का कुप्रबंधहमारी अकेली मुसीबत नहीं हैभारत अब चमकते ब्रान्ड और कंपनियों का कब्रिस्तान बन रहा हैसत्यमएडीएजी (अनिल अंबानी समूह),वीडियोकॉनसहारामोदीलुफ्तरोटोमैकजेपी समूहनीरव मोदीगीतांजलि जेम्सजेट एयरवेजकिंगफिशरयूनीटेकआम्रपालीआइएलऐंडएफएसस्टर्लिंग बायोटेकभूषण स्टील...यह सूची खासी लंबी हो सकती है...टाटाफोर्टिस और इन्फोसिस के बोर्ड में विवादों या कैफे कॉफी डे में संकट से हुए नुक्सान (शेयर कीमतको जोड़ने के बाद हमें अचानक महसूस होगा कि भारत के निजी प्रवर्तक तो कहीं ज्यादा बड़े आत्माघाती हैं

किसी कंपनी के प्रबंधन या खराब कॉर्पोरेट गवर्नेंस से हमें फर्क क्यों नहीं पड़ता?कंपनियों का बुरा प्रबंधनकिसी खराब सरकार जितना ही घातक हैसरकार को तो फिर भी बदला जा सकता है लेकिन कंपनियों के प्रबंधन को बदलना असंभव है.

भारत में खराब कॉर्पोरेट गवर्नेंस से जितनी बड़ी कंपनियां डूबी हैंया प्रवर्तकों के दंभ और गलतियों ने जितनी समृद्धि का विनाश (वेल्थ डिस्ट्रक्शनकिया है वह मंदी से होने वाले नुक्सान की तुलना में कमतर नहीं है.

दरअसलयह तिहरा विनाश है.

एकशेयर निवेशक अपनी पूंजी गंवाते हैंजैसेकुछ साल पहले तक दिग्गज (आरकॉम,वीडियोकॉनयूनीटेकवोडाफोनसुजलॉनकंपनियों के शेयर अब एक दो रुपए में मिल रहे हैं.

दोइनमें बैंकों की पूंजी (पीएनबी-नीरव मोदीडूबती है जो दरअसल आम लोगों की बचत है और

तीसराअचानक फटने वाली बेकारी जैसे जेट एयरवेजआरकॉमयूनीनॉर.
देश में कॉर्पोरेट गवर्नेंस यानी कंपनी को चलाने के नियम कागजों पर दुनिया में सबसे सख्त होने के बावजूद घोटालों की झड़ी लगी हैकंपनियों के निदेशक मंडलों के कामकाज सिरे से अपारदर्शी हैंइन्हें ठीक करने का जिम्मा प्रवर्तकों पर हैजिनकी बोर्ड में तूती बोलती हैइंडिगो या फोर्टिस में विवाद के बाद ही इन कंपनियों में कॉर्पोरेट गवर्नेंस की कलई खुलीटाटा संस के बोर्ड ने सायरस मिस्त्री को शानदार चेयरमैन बताने के कुछ माह बाद ही हटा दियाइन्फोसिस का निदेशक मंडलकभी विशाल सिक्का तो कभी पूर्व प्रवर्तक नारायणमूर्ति का समर्थक बना और इस दौरान निवेशकों ने गहरी चोट खाई.

वीडियोकॉन को गलत ढंग से कर्ज देने के बाद भी चंदा कोचर आइसीआइसीआइ में बनी रहींयेस बैंक के एमडी सीईओ राणा कपूर को हटाना पड़ा या कि आइएलऐंडएफएस ने असंख्य सब्सिडियरी के जरिए पैसा घुमाया और बोर्ड सोता रहानजीरें और भी हैं.कंपनियों पर प्रवर्तकों के कब्जे के कारण स्वतंत्र निदेशक नाकारा हो जाते हैंनियामक ऊंघते रहते हैंकिसी की जवाबदेही नहीं तय हो पाती और अचानक एक दिन कंपनी इतिहास बन जाती है.

भारतीय कंपनियों के प्रमोटरपैसे और बैंक कर्ज के गलत इस्तेमाल के लिए कुख्यात हो रहे हैंआम्रपाली के फोरेंसिक ऑडिट से ही यह पता चला कि मालिकों ने चपरासी और निचले कर्मचारियों के नाम से 27 से ज्यादा कंपनियां बनाईजिनका इस्तेमाल हेराफेरी के लिए होता थाताकतवर प्रमोटरबैंकरेटिंग एजेंसियों और ऑडिट के साथ मिलकर एक कार्टेल बनाते हैं जो तभी नजर आता है जब कंपनी कर्ज में चूकती या डूबती है जैसा कि आइएलऐंडएफएस में हुआ

प्रवर्तकों के दंभ और गलत फैसलों से हुए नुक्सान की सूची (जैसे टाटा नैनोकिंगफिशर)भी लंबी हैजल्द से जल्द बड़े हो जाने के लालच में भारतीय उद्यमी बैंक कर्ज और रसूख के सहारे ऐसे उद्योगों में उतर जाते हैं जहां न उनका तजुर्बा हैन जरूरतमकान बनाते-बनाते आम्रपाली फिल्म बनाने लगी और अनिल अंबानी समूह वित्तीय सेवाएं चलाते-चलाते राफेल की मरम्मत का काम लेने लगेपश्चिम की कंपनियां लंबे समय तक एक ही कारोबार में रहकर निवेशकों और उपभोक्ताओं को बेहतर रिटर्न व सेवाएं देती हैं जबकि भारत की 80 फीसद ‘ग्रेट’ कंपनियां पूंजी पर रिटर्न गंवाकर या कर्ज में फंस कर बहुत कम समय में औसत स्तर पर आ जाती हैं.

कंपनियों में खराब गवर्नेंस से सरकारें क्यों फिक्रमंद होने लगींउन्हें तो इनसे मिलने वाले टैक्स या चुनावी चंदे से मतलब हैप्रवर्तकों का कुछ भी दांव पर होता ही नहीं.डूबते तो हैं रोजगार और बैंकों का कर्जमरती है बाजार में प्रतिस्पर्धा जाहिर है कि इस नुक्सान से किसी नेता की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता

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