बुधवार, 30 जून 2010

..नशा शराब में होता तो नाचती बोतल

मानव सभ्यता की शुरुआत होने के साथ ही किसी न किसी रूप में आम आदमी को नशे की लत होती चली गयी। संसार की इस सबसे पुरानी व गंभीर बीमारी का उतनी ही तेजी से विकास हो रहा है जितनी तेजी से विश्व की आबादी बढ़ रही है। भारत सहित विश्व के लगभग सभी देश इस बीमारी की गिरफ्तर में हैं। नशे के कई रूप हैं। इससे आम लोगों को जागरूक करने के लिए ही पूरे विश्व में 2


जून को नशा उन्मूलन दिवस मनाया जाता है।

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नशा मुक्ति के लिए वरदान है पीबीएसटी

पश्चिम बंगाल के पश्चिम मेदिनीपुर जिले के खड़गपुर शहर में प्रबुद्ध भारती शिशु तीर्थ (पीबीएसटी) उन नशेडि़यों के लिए वरदान साबित हो रहा है, जिनके अंदर इससे दूर होने की भावना जाग्रत होती है। शहर के इंदा रोड पर वर्ष 2003 से यह संस्था समाज कल्याण विभाग के सहयोग से इंटीग्रेटेड रिहैबिलेशन सेंटर फार एडिक्टस नामक एक प्रोजेक्ट चला रही है। इसकी सफलता को इसी बात से समझा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड जैसे सुदूर राज्यों के मरीजों का भी यहां पर उपचार किया गया है और उन्हें लाभ भी हुआ। पश्चिम मेदिनीपुर जिले के साथ ही पूर्व मेदिनीपुर, बांकुड़ा, पुरुलिया, ब‌र्द्धवान, हुगली, हावड़ा सहित अन्य जनपदों से यहां मरीजों का आना लगा रहता है। संस्था के महासचिव चित्त रंजन राज कहते हैं कि इस केंद्र में 15 रोगियों के उपचार की व्यवस्था है। 12 कर्मचारियों की मदद से रोगियों को नशे से मुक्ति दिलाने का प्रयास चल रहा है। आज यह संस्था पूरे जिले में नशा उन्मूलन के खिलाफ सक्रिय रूप से काम कर रही है।

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नशीले पदार्थ व उनका उपयोग :



1. ब्राउन सुगर - चेजिंग, स्मोकिंग व इंजेक्टिंग

2. गांजा : स्मोकिंग

3. चरस : स्मोकिंग

4. कप सीरप : डि्रंक

5. एलएसडी-(केमिकल्स) : ड्रिंक

6. क्लब ड्रग्स : डि्रंक में मिलाकर

डेंडराइट : सूंघ कर

8. एल्कोहल : डि्रंक

9. कोकेन : सूंघ कर

10. आईडीयू : इंजेक्सन द्वारा

11 : तंबाकू : चबाकर, स्मोकिंग

12. स्नैक बाइट : सांप से कटवाना

बताते चलें कि उपरोक्त नशीले पदाथरें में से खड़गपुर में कोकेन उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा सांप से कटाकर नशा करने के मामले भी राजधानी कोलकाता में ही पाये गये हैं। यहां यह भी बताना आवश्यक है कि दृढ़ इच्छा शक्ति के बाद कोई भी व्यक्ति एल्कोहल का नशा सबसे आसानी से छोड़ सकता है।

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कहां से आता है नशे का सामान : पश्चिम मेदिनीपुर जिले का संपर्क यूं तो सड़क व रेल मार्ग के माध्यम से आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा व तमिलनाडु से अधिक है। इसलिए जितनी आसानी से वहां से माल की आपूर्ति हो जाती है उतनी ही आसानी से यहां पर बाहरी पेशेंट भी पाए जाते हैं। इसके अलावा हुगली, बोनगा, सियालदह, बारासात व मुशीरहाट के रास्ते बांग्लादेश से नशीले पदाथरें का जखीरा पूर्व व पश्चिम मेदिनीपुर पहुंचता है। इससे भी अधिक चौकाने वाली बात यह होगी कि जनपद के सबंग प्रखंड में गांजे की खेती भी बहुतायत से होती है।

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केस स्टडी : ड्राइवरी लाइन में सीख लिया पीना

पश्चिम मेदिनीपुर जनपद के माओवाद प्रभावित ग्वालतोड़ थाना क्षेत्र निवासी एके दास ने गाड़ी चलाने के दौरान ही पीने की लत डाल ली। मध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले दास यूं तो ज्वेलरी दुकान में काम करते थे पंरतु सीजन आफ होने पर वहन चलाने लगे। इसी बीच उन्होंने शराब पीनी शुरू कर दी। एक बच्ची के पिता दास की यह लत इतनी अधिक बिगड़ गयी थी कि सुबह आंख खुलने के साथ ही उन्हें बोतल चाहिए थी। घर वालों की मदद से वह खड़गपुर स्थित नशा उन्मूलन केंद्र पहुंचे और यहां पर उनका लगभग 51 दिनों तक उपचार चला। इस बीच उनके अंदर नशा छोड़ने की इच्छा शक्ति काफी प्रबल हो गयी और एक लंबी प्रक्रिया के बाद अब वह शराब से कोसों दूर चले गये। आज वह इलाके में नशेडि़यों के लिए एक उदाहरण बन गये हैं। अपने आसपास के करीब 10 लोगों को नशा छुड़ाने के लिए वह खुद पहल कर चुके हैं।



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परिवार की दूरी से पड़ गयी शराब की लत : खड़गपुर रेलवे सुरक्षा बल में सेवारत ए.क्षेत्री अपने परिवार से दूरी के कारण शराब के नशे में पड़ गये। संपन्न मध्यवर्गीय परिवार के क्षेत्री को नशे से दूर करने के लिए उनके सहयोगियों ने ही पहल की और नशा उन्मूलन केंद्र में भर्ती कराया। फिलहाल वह अब अपने आपको शराब से दूर बताते हैं।

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रईसी ने बना दिया शराबी : कभी-कभी संपन्नता कई प्रकार की बुराइयों को भी पैदा कर देती है। इस तरह का एक मामला प्रकाश में आया खड़गपुर तहसील के केशियाड़ी थाना क्षेत्र निवासी यू.दास का। 28 वर्षीय दास का परिवार इलाके में काफी संपन्न माना जाता है। लंबे कारोबार व ऊंची पहुंच के कारण दास हास्टल में रहने के बाद भी सातवीं कक्षा से अधिक नहीं पढ़ सके। ट्रांसपोर्ट का कारोबार किया और नशे की लग लग गयी। प्रतिदिन चार-पांच हजार रुपये वह अपने इस शौक को पूरा करने में खर्च कर देते। विवाह हुआ पर दास में सुधार नहीं हो सका। परिवार के लोगों की मदद से वह नशा उन्मूलन केंद्र में भर्ती हुए और लगभग 50 दिनों के उपचार के बाद इस बीमारी से अपने को दूर कर सके।

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प्रतिवर्ष बढ़ रही है नशेडि़यों की संख्या : लोगों को नशे से दूर रखने की लाख कोशिशों के बाद भी जनपद में प्रतिवर्ष नशेडि़यों की संख्या में इजाफा हो रहा है। नशा उन्मूलन केंद्र के महासचिव चित्त रंजन राज बताते हैं कि वर्ष 08-09 में जहां उनके यहां 116 मरीज भर्ती हुए वहीं वर्ष 09-10 में यह संख्या 128 तक पहुंच गयी।



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शहरी क्षेत्र की अपेक्षा ग्रामीण रहते हैं फैसले पर अडिग



: नशे से दूर रहने के प्रति लिये गये अपने निर्णय पर शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण इलाकों के लोग अधिक सक्रिय रहते हैं। इसका कारण यह बताया जाता है कि ग्रामीण परिवेश जहां नशा छोड़ने में सहायक होता है वहीं शहरी परिवेश नशीली वस्तुओं को उपलब्ध कराने में। फलस्वरूप केंद्र में उपचार के बाद घर वापस जाने के बाद शहरी क्षेत्र के लोग जहां अपने दोस्तों के साथ रह कर इसकी गिरफ्त में फिर आ जाते हैं वही ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकांश निवासी एक बार नशा छोड़ने के बाद इसकी चपेट में आने से बचते हैं।



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गरीब ही नहीं अमीर वर्ग भी नशे की गिरफ्त में है शामिल : जनपद का गरीब वर्ग ही नहीं बल्कि वह तबका भी नशे की गिरफ्त में बुरी तरह से फंसा हुआ है जिसे समाज में सभ्य व संपन्न माना जाता है। शहर में कई वरीय रेलवे अधिकारियों व बड़े व्यवसायियों के बच्चे आज नशे की गिरफ्त में फंस गये हैं। अपने इस शौक को पूरा करने के लिए वह मोटरसाइकिल, कार, मोबाइल सहित अन्य कीमती वस्तुओं की चोरी भी कर रहे हैं।

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