बुधवार, 3 मार्च 2010

देश की खाद्यान्न समस्या को सुलझाता फ़ेसबुक...

हमारा देश गांवों में बसता है। किसान हमारे देश का आधार है। खेती करना कुछ दिनों पहले तक मुझे बहुत ही कठिन काम लगता था। लेकिन, कुछ दिनों से मैं देख रही हूँ कि ये तो बहुत ही आरामदायक काम है। एसी रूम में कम्प्यूटर के सामने बैठेकर बस माऊस से खेत उगाते जाओ। कभी-कभी गाय का दूध भी दुह सकते हैं। मैं बात कर रही हूँ फ़ार्म विला नाम के नए खेल की। ये खेल शायद फे़सबुक के ज़रिए खेला जाता है। फ़ेसबुक मुझे बहुत ही कठिन चीज़ लगती है। मेरा अकाऊन्ड ज़रूर है पर उसे हैन्डल कैसे किया जाए ये सर के ऊपर से जाता है। खैर, मेरी अज्ञानता की बात अलग करके बात ये कि फ़ेसबुक न सिर्फ़ हमारे समाज को और सामाजिक बना रहा है बल्कि आज के युवाओं को खेती की ओर मोड़ भी रहा हैं। मेरे आसपास मौजूद लगभग हरेक इंसान रोज़ाना भगवान के पाठ की तरह फ़ेसबुक पर लागिन भी करता हैं और खेती शुरु कर देता हैं। मेरे एक साथी ने बताया कि कल रात उसके खेत में बर्फ गिर गई। एक के खेत में जानवर घुस गए थे। इस खेल को खेलनेवाले इसे इतनी गंभीरता से लेते हैं कि कोई अंजान अगर इनकी बातें सुने तो लगेगा कि भाई साहब का सच में कही कोई खेत है जहाँ बर्फ पड़ गई हैं। कभी गांव ना गए मेरे इन साथियों को इतनी तन्मयता से कम्प्यूटर पर खेती करते देख कई बार लगता है कि ये अनाज वर्चुअल ना होकर असल होता। हमारे देश की खाद्यान्न समस्या का हल कितना आसान हो जाता। अगर ऐसा ना भी हो पाए तो भगवान करें कि आगे चलकर हम ही वर्चुअल हो जाए...

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