--'नहीं तो भूखे मरते'---अपने गांव को कौन नहीं चाहता, अगर वह वहीं रहती तो भूख से मर जाती, सो टाटा चली आयी : आशा-
अशोक सिंह, जमशेदपुर : जब सूरज डूबता है तो सारी दुनिया सो जाती है, सपनों में खो जाती है लेकिन एक दुनिया ऐसी भी है जो रात के अंधेरों में भी चलती है।शहरों की रात की जिन्दगी में किसकी रुचि नहीं होती। इसीलिए सुदूर गांव में रहने वाले लोगों में जिज्ञासा बनी रहती है कि जमशेदपुर में रात कैसे कटती होगी। लेकिन कटु सत्य यह है कि यहां कुछ ऐसे तबके के लोग हैं, जिनकी तमाम जिंदगी फुटपाथ पर ही गुजर जाती है। जेठ की दोपहर हो या फिर माघ-पूस का जाड़ा, उन्हें तो फुटपाथ पर ही रात गुजारनी होती है। गर्मी में तो कोई परेशानी नहीं होती पर सर्दियों में रात काटना उनके लिये दुष्कर हो जाता है। आज जब ठंड अपने चरम पर है तो इन दिनों चल रही पछुआ हवा उनकी जिंदगी को ठिठुरा रही है।स्टेशन सबसे बड़ा आशियानारोशनी से नहाये इस शहर में फुटपाथ पर रहने वाले सबसे ज्यादा रेलवे स्टेशन के आसपास के फुटपाथों पर मिलेंगे। इसके बाद मानगो बस स्टैंड, साकची गोलचक्कर व बिष्टुपुर में लोग रात में बंद दुकानों के सामने सोते मिल जायेंगे। यहां दूर-दराज गांवों से आ कर लोग फुटपाथ को आशियाना बना लेते हैं। क्योंकि स्टेशन व आसपास में भीख मांगकर इनकी रोजी-रोटी चल जाती है। ऐसी ही एक महिला आशा अपने नौ बच्चों के साथ स्टेशन के नजदीक फुटपाथ पर रहती है। इसके सभी बच्चे स्टेशन पर यात्रियों से भीख मांगते हैं। यह पूछे जाने पर कि वह उड़ीसा के बारीपदा से जमशेदपुर क्यों आयी, वह कहती है कि अपने गांव को कौन नहीं चाहता। अगर वह वहीं रहती तो भूख से मर जाती। इसीलिए जमशेदपुर चली आयी।असुरक्षित महिलाएंदूर-दराज के गांवों से आयी महिलाएं अपने आप को काफी असुरक्षित मानती हैं। अपनी बेटी के इलाज के लिए बहरोगाड़ा से आयी एक महिला ने एमजीएम अस्पताल के सामने फुटपाथ पर ही किसी तरह रात गुजार दी। एमजीएम में इलाज के लिए जिले के बाहर से भी लोग आते हैं। गरीबों के लिए यहां आखिरी विकल्प होता है। इस अस्पताल के सामने फुटपाथ पर मरीजों के रिश्तेदार ठंड में भी ठिठुरते मिल जायेंगे। दैनिक जागरण की 'पहल'शहर में दरियादिल लोगों की भी कमी नहीं है। इन दिनों जब शहर में पारा लुढ़का हुआ है तो दैनिक जागरण ने समाजिक सरोकार के तहत फुटपाथ पर ठंड से ठिठुरते गरीबों को कंबल व गर्म कपड़े बांटकर उन्हें राहत पहुंचाने का प्रयास किया है।