शनिवार, 23 अगस्त 2008

क्षमा की महिमा

नहीं मालूम कि सबसे पहले किसने किस को किस बात के लिए क्षमा किया होगा। पर जब क्षमा किया होगा, तो क्षमाकर्ता इस अहसास से गुजरा होगा कि जैसे उसकी आत्मा पर से कोई बड़ा बोझ हट गया हो। मुमकिन है कि जिस बात के लिए किसी को क्षमा किया जाता है, वह बात समाज की आम रीति में क्षम्य न मानी जाती हो, पर याचना नहीं करने पर भी क्षमा पाने वाला क्षमाकर्ता के प्रति जो कृतज्ञता दर्शाता है, उससे लगता है कि असली मनुष्यता तो क्षमा करने में ही है। कहने को तो कह सकते हैं कि अगर क्षमा इतनी महत्वपूर्ण न होती, तो दुनिया के सारे धर्म क्षमा की स्तुति नहीं गाते, पर क्षमा शायद इससे भी बड़ी चीज है। क्षमा में हार नहीं है, हम समर्पण नहीं कर रहे हैं, बल्कि इस तरह पूरी जीत की तरफ बढ़ा जाता है, शांति हासिल की जाती है और क्या पता, इतिहास में नाम दर्ज कराने का यह एक दुर्लभ मौका हो? अपराधी या शत्रु को क्षमा कर दें, उसे अपना लें और कहें कि भाई, गलती किससे नहीं होती, और देखें कि हमने दुनिया में अचानक कितने मित्र बना लिए हैं।

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