शनिवार, 23 अगस्त 2008

खुले दरवाजों की ताकत

कल्चर को बचाना है, तो सारे खिड़की-दरवाजे खोल दीजिए। उन तमाम लोगों से सहमत होना मुश्किल है जो इस या उस कल्चर पर बाहरी हमले को लेकर भड़के रहते हैं और चाहते हैं कि बीच में एक दीवार खड़ी कर दी जाए। एक कल्चर पर दूसरी कल्चर का हमला आज की बात नहीं है। जब से सभ्यता शुरू हुई है, यह होता आया है। और हुआ यह भी है कि जिसने अपनी कल्चर को किले में बंद करके घेरना चाहा, वह हमेशा हारता रहा। जैसे संदूक में बंद करके भी कपूर को उड़ने से नहीं बचाया जा सकता, वैसे ही कल्चर भी नहीं बचती। तो हमले से बचने का उपाय है कि निशाना बनने के लिए कुछ छोड़ें ही नहीं। वही कल्चर बची हैं, जो बिना पहरे के छोड़ दी गईं, और इसलिए गंध की तरह दुनिया भर में फैल गईं। उनका किसी से टकराव नहीं हुआ और किसी ने उनका विरोध नहीं किया।

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