मंगलवार, 29 जुलाई 2008

एक योगी की रहस्य कथा

स्वामी रामदेव का उदय आज के भारत की ऐसी घटना है , जिसका जादू लगभग हर किसी को हैरान कर रहा है। आजादी के बाद शायद यह पहली बार हुआ है कि परंपरा की छाया से घिरी कोई शख्सियत समाज के सोच पर इस कदर हावी हो जाए। वह भी ऐसे समाज में , जहां पॉप्युलैरिटी पर सिर्फ सिने और क्रिकेट स्टार्स की मनोपली रह गई है और जो अपनी लाइफ स्टाइल में लगातार अमेरिका बनता जा रहा है। इक्कीसवीं सदी के भारत में रामदेव एक सितारे की तरह उगे और सूरज की तरह चमकने लगे। इस घटना की तुलना रजनीश जैसे आध्यात्मिक गुरुओं से भी नहीं की जा सकती , क्योंकि अपने असर और चर्चा के बावजूद वे किसी सामूहिक क्रांति के अगुआ नहीं बन पाए। रामदेव के इस अनूठे चमत्कार को हम सिर्फ योग का जादू नहीं कह सकते। योग इस देश में सदियों से है , इस प्राचीन विरासत की थोड़ी-बहुत जानकारी लगभग हर किसी को रही है , लेकिन फिर भी उसकी इमेज एक जटिल विद्या की रही है। योग का मतलब अष्टांग योग है और उसे ईश्वर से जुड़ने का एक तरीका माना गया है। उसकी इस रहस्यमयता को भारतीय गुरुओं ने खूब इस्तेमाल किया , लेकिन ऊंचे दर्जे का यह आध्यात्मिक योग संभ्रांत लोगों के साधना केन्द्रों में सिमट गया और वहां से सीधे अमेरिका चला गया। आम आदमी के लेवल पर इसका जो सबसे निचला रूप -योगासन- था , वह फिजियो थेरेपी के तौर पर इस्तेमाल होता रहा। प्राणायाम की जानकारी भी लोगों को थी , लेकिन इन्हें चमत्कार में बदलने के लिए जिस जादुई स्पर्श की जरूरत थी , वह गायब रहा , जब तक कि मंच पर रामदेव की ऐंट्री नहीं हुई। द ग्रेट रामदेव रेवोल्यूशन का पहला मंत्र यही है- प्राणायाम और योगासन की सामान्य और आसान क्रियाओं को नई चमक से भर देना। यह चमक दो तरीकों से पैदा हुई। एक तो रामदेव ने यौगिक क्रियाओं को सीधे-सीधे सेहत से जोड़ कर पेश किया और दूसरे , उसकी आध्यात्मिकता को उस पर हावी नहीं होने दिया। एक ऐसे देश में , जहां लोग आज भी सस्ते इलाज के लिए तरसते हैं , रामदेव का योग हिट हुए बिना नहीं रह सकता था। मदद के लिए आयुर्वेद और परंपरागत नुस्खों का पिटारा उनके पास मौजूद था , जिसकी कद एलोपैथिक के हमले में भी बची हुई है। रामदेव ने करोड़ों लोगों को छुआ और वे पहली बार आम जनता के बीच योग को पॉप्युलर बनाने में कामयाब हुए , तो इसकी वजह उनकी यही इमेज है , जो आध्यात्मिक गुरु से ज्यादा हेल्थ गुरू की है। लेकिन इस पूरे किस्से के आध्यात्मिक एंगल को रफा-दफा नहीं किया जा सकता। आखिरकार रामदेव एक परंपरागत गुरू ही हैं। योगी का उनका यह वेष उस समाज को बहुत जल्द भरोसे में ले लेता है , जिसकी धार्मिकता काफी मजबूत है। हम देख चुके हैं कि मोहनदास करमचंद गांधी ने भी महात्मा बनकर भारतीय जनता के दिलों में जगह बनाई थी। योग को हैल्थ कैप्सूल बनाना भी किसी ऐसे शख्स के लिए मुमकिन नहीं था , जो जींस पहनता हो और अंग्रेजी में बात करता हो। रामदेव रेवोल्यूशन को हम भारत की पारंपरिकता की मिसाल कह सकते हैं , लेकिन इसे रिवाइव करने के लिए सिर्फ योगी का बाना काफी नहीं होता। योगी तो इस देश में बहुत थे और वे रामदेव से पहले से लगभग वैसी ही बातें कह रहे थे , लेकिन आखिरकार कमान रामदेव के हाथ आई , इसलिए कि पारंपरिक ज्ञान को मॉडर्न संदर्भ में रख पाने की काबिलियत सिर्फ उन्होंने हासिल की। वे पूरे इत्मीनान के साथ दावे करने की हिम्मत रखते थे और इससे भी बड़ी बात , उन्हें आम जनता से संवाद करने का वह हुनर आता था , जो इस देश में सिर्फ नेताओं ने हासिल किया है। आसान भाषा में , खुशदिल अंदाज में , जवां जोश के साथ शब्दों की ऐसी बरसात कर देना- यह स्वामी रामदेव की शख्सियत का सबसे असरदार हिस्सा है। योग सिखाते , लोगों को कोंचते , आलोचकों को चिढ़ाते , बड़े-बड़े दावे करते वे लोगों के साथ आत्मीयता का एक ऐसा पुल बना लेते हैं , जो माकेर्टिंग और मैनेजमेंट के गुरुओं को भी हैरत में डाल सकता है। लेकिन देश भर के घरों , मुहल्लों और पार्कों में सांसों की इस जोश भरी कसरत के बीच कुछ दिलचस्प सवालों के जवाब अभी आने बाकी हैं। माना कि योगासन-प्राणायाम की जुगलबंदी हमें सेहतमंद बनाती है और उम्मीद का जाग जाना भी रोग को मात दे सकता है , लेकिन क्या रामदेव वह हैल्थ रेवोल्यूशन सचमुच ला पाएंगे , जिसका सपना वे देखते हैं ? क्या नए-नए चलनों का मारा यह देश किसी दिन नए गुरु की तलाश में चल पड़ेगा ? क्या भद्रलोक से आम आदमी के बाद अब योग उम्रदराजों से नौजवानों तक पहुंच सकेगा , जो कि किसी भी ट्रेंड के कामयाब होने के लिए जरूरी है ? क्या अपने ट्रेडिशनल तरीकों के बूते रामदेव आयुर्वेद के सुपर स्टार बन सकेंगे , या फिर उन्हें भी नए आइकन और मॉडर्न मार्केटिंग का सहारा लेना पड़ेगा ? क्या उनकी बेमिसाल पॉप्युलैरिटी किसी सियासी रोल में कामयाब साबित होगी , या वही पुराना सिद्धांत जीतेगा कि इस देश में सियासत के पैमाने अलग होते हैं ? मतलब यह कि रामदेव रेवोल्यूशन की अभी शुरुआत ही है। इसका अगला अध्याय भी हमें अपने बारे में जानने का मौका देगा। तब तक आप कपालभाती करते रह सकते हैं , फायदा होगा...

1 टिप्पणी:

  1. अशोक सिंह जी रामदेव बाबा कोई पैगम्बर या कोई संत नहीं.
    वो तो एक सच्चा क्रांतिकारी है जो भारत माता की पीड़ा को समझा और देशवाशियों को आँखों पर पट्टी बांधे बेतहाशा दौड़ते हुए देखकर उन्हें रोक कर, झिंझोड़ कर जगाने की कोशिश कर रहा है.. वह सिर्फ योग गुरु ही नहीं..
    उसकी तुलना ओशो या और किसी से नहीं की जा सकती.. वो अपने आप में अनूठा है..
    वोह तो भ्रष्टाचार, अन्याय, असत्य और पाप की आंधियों में अडिग होकर जलता हुआ वो चिराग है जो देश में व्याप्त अँधेरे को मिटा देने के लिए इस पथ पर चल पड़ा है..
    "प्रयत्न ही पुरुषार्थ है.. "
    वो पुरुषार्थी प्रयत्न तो कर रहा है..
    रही बात सफलता और असफलता की तो मुझे दुःख है की हम और आप उनके भविष्य का गणित लगाने की व्यर्थ चेष्टा कर रहे हैं..
    क्या होगा और क्या नहीं होगा.. अगर यही सोचा जाय तो कोई रामदेव पैदा नहीं होगा..
    हम और आप तो बस अन्यास ही निरर्थक प्रश्नों को गढ़ते रहेंगे...
    "उनके पसीने के साथ अगर हम अपना रक्त नहीं बहा सकते तो कम से कम पसीना तो बहा ही सकते हैं .. लेकिन देखिये न हम और आप ब्लॉग लिखने में व्यस्त हैं कि उनका अथवा उनके कार्यों का भविष्य क्या होगा...
    "आप एक पत्रकार हैं और हमसे अधिक अनुभवशाली हैं.. आप कि बातों को मैंने गौर से पढ़ा है और इस उम्मीद से ये टिप्पड़ी की है कि आप मेरी बातो का बुरा नहीं मानेंगे.."

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