बुधवार, 30 जुलाई 2008
अच्छी मृत्यु या इच्छा मृत्यु
कुछ साल पहले एक जापानी फिल्म में एक मार्मिक मानवीय स्थिति को देखा था। एक परंपरा के अनुसार एक गांव में जब लोग बहुत बूढ़े हो जाते थे, तो उनके परिवार के युवा सदस्य उन्हें एक ऊंचे उजाड़ पहाड़ पर छोड़ आते थे, ताकि वे अपनी मृत्यु तक पहुंच सकें। एक युवक गहरे पसोपेश में है, क्योंकि वह अपने घर के बूढ़े को इस तरह से छोड़ना नहीं चाहता है। लेकिन परंपरा उसे एक आदेश दे रही है कि यह तुम्हारा फर्ज़ है। इन दिनों भारत में लॉ कमिशन यूथेनेसिया (ग्रीक शब्द यानी अच्छी मृत्यु या इच्छा मृत्यु) पर विचार कर रहा है। हॉलैंड, बेल्जियम, स्विट्जरलैंड आदि देशों में यूथेनेसिया के कुछ रूप अब कानूनी तौर पर स्वीकार किए जाते हैं। अक्सर डॉक्टर यह तय करते हैं कि 'टर्मिनली इल' व्यक्ति को यूथेनेसिया का अधिकार दिया जाए या नहीं। स्वयं रोगी को भी कुछ अप्रिय निर्णय लेने पड़ते हैं। लेकिन आधुनिक समय में चिकित्सकों, विचारकों, बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग इस बात के पक्ष में है कि व्यक्ति अगर अत्यधिक पीड़ा में अपने अंतिम दौर से गुजर रहा है (और दवाइयां भी उसे कोई खास राहत नहीं दे पा रही हैं), तो उसे यूथेनेसिया अपनाने का कानूनी अधिकार मिलना चाहिए। वैसे तो पश्चिम की आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था में समय-समय पर दहला देने वाले तथ्य सामने आए हैं। एक नर्स जब अपने तंग करने वाले रोगियों को पहचान लेती थी, तो वह उन्हें इंजेक्शन, दवाइयों की डोज बढ़ा या घटा कर मौत के हवाले कर देती थी। जाहिर है कि व्यक्ति आसानी से मरने की इच्छा नहीं रखना चाहता। स्यूसाइडल टेंडेंसी वाले व्यक्तियों का एक अलग और जटिल मनोविज्ञान है। पर आम तौर पर बहुत बूढ़े व्यक्ति में भी जीने की इच्छा जाग जाती है। बंगला फिल्मकार गौतम घोष की फिल्म 'अंतर्जली यात्रा' में पुराने बंगाल का माहौल था। एक धनी परिवार का बूढ़ा मरने वाला है। उसे गंगा किनारे ले आया जाता है। उसके जवान लड़के इंतजार कर रहे हैं पर अभी बूढ़ा मरने के लिए तैयार नहीं है। मौत आ ही नहीं रही है। कुछ ब्राह्माण इस स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। सती प्रथा का जमाना है। तय किया जाता है कि एक गरीब घर की कम उम्र की लड़की से इस बूढ़े का विवाह करा दिया जाए। इससे काफी पैसा कमाने के अवसर मिलेंगे। मरने की घंटी का किसी भी समय इंतजार कर रहे बूढ़े का विवाह एक लड़की से कर दिया जाता है। अपनी सजी-धजी नई पत्नी को देख कर वह बूढ़ा धीरे-धीरे अपना एक हाथ किसी तरह से ऊपर उठा कर कहता है - 'अति सुंदर!' यह जीने की इच्छा नहीं है - सामाजिक क्रूरता और वासना है। इच्छा मनुष्य में जिजीविषा बढ़ाती है। नब्बे साल की उम्र के करीब पहुंच चुके स्पेन के महान आधुनिक कलाकार पिकासो ने एक इंटरव्यू में एक पुराने दोस्त से मिलने पर कहा था कि तुम्हें देखते ही सिगरेट के लिए मेरा हाथ अपनी जेब में चला गया। मैं अब सिगरेट पीता नहीं हूं, पर इच्छा कहीं न कहीं मन में है। मैं सेक्स कर नहीं सकता पर बुढ़ापे में भी मेरी कला में आज भी एक इरॉटिक संसार मौजूद है। पर जहां तक इच्छा मृत्यु का प्रश्न है, वह मेडिकल तंत्र में सिर्फ तकलीफें झेलने की एक लंबी प्रक्रिया से जुड़ा सवाल है। अगर चिकित्सकों को सचमुच महसूस हो रहा है ( केस की अच्छी तरह से स्टडी के बाद) कि एक व्यक्ति विशेष अपनी मृत्यु का समय तय कर सकता है, तो उसकी मदद की जानी चाहिए। फिलहाल कानूनी अड़चनें मौजूद हैं। वैसे यह किसी से छिपा नहीं है कि भारत सरीखे देशों में ऐसे आध्यात्मिक रास्ते भी मौजूद हैं, जहां व्यक्ति जीने की इच्छा को सजग निर्णय लेकर धीरे-धीरे समाप्त कर देता है। लेकिन यूथेनेसिया की समस्या को आध्यात्मिक और नैतिक प्रश्नों से न जोड़कर मेडिकल साइंस की एक आधुनिक शाखा के रूप में देखना चाहिए। ऐसा निर्णय करना कठिन है, पर असंभव नहीं।
मंगलवार, 29 जुलाई 2008
एक योगी की रहस्य कथा
स्वामी रामदेव का उदय आज के भारत की ऐसी घटना है , जिसका जादू लगभग हर किसी को हैरान कर रहा है। आजादी के बाद शायद यह पहली बार हुआ है कि परंपरा की छाया से घिरी कोई शख्सियत समाज के सोच पर इस कदर हावी हो जाए। वह भी ऐसे समाज में , जहां पॉप्युलैरिटी पर सिर्फ सिने और क्रिकेट स्टार्स की मनोपली रह गई है और जो अपनी लाइफ स्टाइल में लगातार अमेरिका बनता जा रहा है। इक्कीसवीं सदी के भारत में रामदेव एक सितारे की तरह उगे और सूरज की तरह चमकने लगे। इस घटना की तुलना रजनीश जैसे आध्यात्मिक गुरुओं से भी नहीं की जा सकती , क्योंकि अपने असर और चर्चा के बावजूद वे किसी सामूहिक क्रांति के अगुआ नहीं बन पाए। रामदेव के इस अनूठे चमत्कार को हम सिर्फ योग का जादू नहीं कह सकते। योग इस देश में सदियों से है , इस प्राचीन विरासत की थोड़ी-बहुत जानकारी लगभग हर किसी को रही है , लेकिन फिर भी उसकी इमेज एक जटिल विद्या की रही है। योग का मतलब अष्टांग योग है और उसे ईश्वर से जुड़ने का एक तरीका माना गया है। उसकी इस रहस्यमयता को भारतीय गुरुओं ने खूब इस्तेमाल किया , लेकिन ऊंचे दर्जे का यह आध्यात्मिक योग संभ्रांत लोगों के साधना केन्द्रों में सिमट गया और वहां से सीधे अमेरिका चला गया। आम आदमी के लेवल पर इसका जो सबसे निचला रूप -योगासन- था , वह फिजियो थेरेपी के तौर पर इस्तेमाल होता रहा। प्राणायाम की जानकारी भी लोगों को थी , लेकिन इन्हें चमत्कार में बदलने के लिए जिस जादुई स्पर्श की जरूरत थी , वह गायब रहा , जब तक कि मंच पर रामदेव की ऐंट्री नहीं हुई। द ग्रेट रामदेव रेवोल्यूशन का पहला मंत्र यही है- प्राणायाम और योगासन की सामान्य और आसान क्रियाओं को नई चमक से भर देना। यह चमक दो तरीकों से पैदा हुई। एक तो रामदेव ने यौगिक क्रियाओं को सीधे-सीधे सेहत से जोड़ कर पेश किया और दूसरे , उसकी आध्यात्मिकता को उस पर हावी नहीं होने दिया। एक ऐसे देश में , जहां लोग आज भी सस्ते इलाज के लिए तरसते हैं , रामदेव का योग हिट हुए बिना नहीं रह सकता था। मदद के लिए आयुर्वेद और परंपरागत नुस्खों का पिटारा उनके पास मौजूद था , जिसकी कद एलोपैथिक के हमले में भी बची हुई है। रामदेव ने करोड़ों लोगों को छुआ और वे पहली बार आम जनता के बीच योग को पॉप्युलर बनाने में कामयाब हुए , तो इसकी वजह उनकी यही इमेज है , जो आध्यात्मिक गुरु से ज्यादा हेल्थ गुरू की है। लेकिन इस पूरे किस्से के आध्यात्मिक एंगल को रफा-दफा नहीं किया जा सकता। आखिरकार रामदेव एक परंपरागत गुरू ही हैं। योगी का उनका यह वेष उस समाज को बहुत जल्द भरोसे में ले लेता है , जिसकी धार्मिकता काफी मजबूत है। हम देख चुके हैं कि मोहनदास करमचंद गांधी ने भी महात्मा बनकर भारतीय जनता के दिलों में जगह बनाई थी। योग को हैल्थ कैप्सूल बनाना भी किसी ऐसे शख्स के लिए मुमकिन नहीं था , जो जींस पहनता हो और अंग्रेजी में बात करता हो। रामदेव रेवोल्यूशन को हम भारत की पारंपरिकता की मिसाल कह सकते हैं , लेकिन इसे रिवाइव करने के लिए सिर्फ योगी का बाना काफी नहीं होता। योगी तो इस देश में बहुत थे और वे रामदेव से पहले से लगभग वैसी ही बातें कह रहे थे , लेकिन आखिरकार कमान रामदेव के हाथ आई , इसलिए कि पारंपरिक ज्ञान को मॉडर्न संदर्भ में रख पाने की काबिलियत सिर्फ उन्होंने हासिल की। वे पूरे इत्मीनान के साथ दावे करने की हिम्मत रखते थे और इससे भी बड़ी बात , उन्हें आम जनता से संवाद करने का वह हुनर आता था , जो इस देश में सिर्फ नेताओं ने हासिल किया है। आसान भाषा में , खुशदिल अंदाज में , जवां जोश के साथ शब्दों की ऐसी बरसात कर देना- यह स्वामी रामदेव की शख्सियत का सबसे असरदार हिस्सा है। योग सिखाते , लोगों को कोंचते , आलोचकों को चिढ़ाते , बड़े-बड़े दावे करते वे लोगों के साथ आत्मीयता का एक ऐसा पुल बना लेते हैं , जो माकेर्टिंग और मैनेजमेंट के गुरुओं को भी हैरत में डाल सकता है। लेकिन देश भर के घरों , मुहल्लों और पार्कों में सांसों की इस जोश भरी कसरत के बीच कुछ दिलचस्प सवालों के जवाब अभी आने बाकी हैं। माना कि योगासन-प्राणायाम की जुगलबंदी हमें सेहतमंद बनाती है और उम्मीद का जाग जाना भी रोग को मात दे सकता है , लेकिन क्या रामदेव वह हैल्थ रेवोल्यूशन सचमुच ला पाएंगे , जिसका सपना वे देखते हैं ? क्या नए-नए चलनों का मारा यह देश किसी दिन नए गुरु की तलाश में चल पड़ेगा ? क्या भद्रलोक से आम आदमी के बाद अब योग उम्रदराजों से नौजवानों तक पहुंच सकेगा , जो कि किसी भी ट्रेंड के कामयाब होने के लिए जरूरी है ? क्या अपने ट्रेडिशनल तरीकों के बूते रामदेव आयुर्वेद के सुपर स्टार बन सकेंगे , या फिर उन्हें भी नए आइकन और मॉडर्न मार्केटिंग का सहारा लेना पड़ेगा ? क्या उनकी बेमिसाल पॉप्युलैरिटी किसी सियासी रोल में कामयाब साबित होगी , या वही पुराना सिद्धांत जीतेगा कि इस देश में सियासत के पैमाने अलग होते हैं ? मतलब यह कि रामदेव रेवोल्यूशन की अभी शुरुआत ही है। इसका अगला अध्याय भी हमें अपने बारे में जानने का मौका देगा। तब तक आप कपालभाती करते रह सकते हैं , फायदा होगा...
पांच बेहतरीन बातें भारत की
हम दुनिया में कहीं भी रहते हों, हम सब में एक बात कॉमन है। हम लिस्टिंग पसंद करते हैं। वे तमाम लिस्टें, जो हमारी पसंद बताती हैं, मसलन टॉप स्टार्स, टॉप ट्रेंड्स, सबसे पॉप्युलर जगहें, सबसे नामी लोग, सबसे अच्छे देश, बेहतरीन शराबें, बेस्ट फूड... और ऐसा ही सब कुछ। लिस्टिंग में कुछ बात है, जो हमें खींचती है। शायद यह उन चीज़ों को सिलसिलेवार रखने का मज़ा है, जो आम तौर पर बिखरी रहती हैं और जिनका मतलब तय करना मुश्किल होता है। इनसे हमें अपने आइडियाज़ को तरतीब देने में मदद मिलती है। हमारी नज़र साफ होती है और हम कुछ सबसे अहम चीज़ों पर फोकस कर सकते हैं। इनसे हमें ज़िंदगी को आसान बनाने का सुख मिलता है। यहां मेरी कोशिश है उन पांच बातों को पेश करने की, जो भारत के बारे में मुझे सबसे अच्छी लगती हैं। ये पांच चीज़ें हैं, जिन्हें मैं भारत से दूर रहने पर मिस करुंगा। मेरे लिए ये भारत नाम की उस शै का सार हैं, जिससे हम बने हैं। यह एक सब्जेक्टिव लिस्ट है। ज़ाहिर है, हर किसी के लिए भारत के मायने अलग-अलग हो सकते हैं। आप भी अपनी लिस्ट तैयार कर सकते हैं। फिलहाल पेश हैं मेरी नज़र से इंडियाज़ बेस्ट फाइव-
1. डिमॉक्रसी: जी हां, पिछले हफ्ते संसद में हमने जो देखा, उसके बावजूद मेरा मानना है कि डिमॉक्रसी ही वह बात है, जो हमें दसियों दूसरे देशों से खास बनाती है। कोई वजह नहीं थी कि हम आज़ादी के बाद डिमॉक्रसी पर कायम रहते। हमारे यहां पाकिस्तान या दूसरे देशों से कम काबिल लोग नहीं थे, जो डिक्टेटर बन सकते थे। खुद नेहरू ऐसा कर सकते थे। हम कोई विकसित देश नहीं थे, जहां हर किसी को एक वोट की ताकत दी जानी ज़रूरी थी। लेकिन हमने शासन के बेहतरीन मॉडल की नकल की और इसे कायम रखा। मुझे पता है कि डिमॉक्रसी का हमारा तजुर्बा बेहद गड़बड़ है, इसकी आड़ में तमाम तरह की बदकारियां होती हैं और आप चाहें तो इसे डिमॉक्रसी मानने से इनकार कर सकते हैं। लेकिन जैसी भी है, यह है और इसके चलते अराजक होने का जो हक हमें मिला है, वह कोई मामूली बात नहीं है। इसकी कद वही लोग समझ सकते हैं, जिन्हें डिक्टेटरशिप में दिन गुज़ारने पड़े हों। यह हवा की तरह है, जिसकी कीमत हम नहीं जानते।
2. वरायटी : यह अनेकता में एकता का कोई सरकारी नारा नहीं है। सच में जैसी वरायटी इस मुल्क में है, वैसी आपको शायद ही कहीं मिले। इसीलिए कुछ लोग इसे एक मुल्क नहीं, कई मुल्कों का जमावड़ा मानते हैं। इस वरायटी को आप खान-पान और रहन-सहन के उस कोलाज में देख सकते हैं, जिसने हमारी ज़िंदगी को इतना दिलचस्प और रंगीन बना दिया है।
3. हिमालय: बर्फ से लदे पहाड़ दूसरों के पास भी हैं और आल्प्स की खूबसूरती का तो जवाब नहीं, लेकिन कहीं भी पहाड़ इतना बड़ा नहीं होता, कि उसे ईश्वर की तरह देखा जाए। भारतीय आध्यात्मिकता हिमालय के बिना अधूरी होती। भारत का ज़्यादातर हिस्सा मैदानी या पठारी है, लेकिन हिमालय सबके दिल में बसता है। वह भारतीयता का रेफरंस पॉइंट है, जिसके बिना भारत शायद भारत नहीं होता। हिमालय हमें शांति देता है और इसीलिए हमारे देवी-देवता भी फुर्सत के वक्त वहीं पाए जाते हैं।
4. मॉनसून: यह समुद्र से उठने वाली भाप को बहा ले जाने का एक विंड सिस्टम है, जो कुछ दूसरे देशों में भी मिलता है। लेकिन मॉनसून का मतलब तो भारत में ही जाना जा सकता है। हमें इसका इंतज़ार रहता है, जैसे यह कोई सैंटा क्लॉज हो। हमारे पास उसका टाइम टेबल भी है। हमारी ज़िंदगी का बहुत सा वक्त उसके बारे में सोचते बीतता है और जब वह आता है, तो हम हरे हो जाते हैं। वह हमें परेशान भी करता है, हम उससे नफरत करने लगते हैं। लेकिन तभी तक, जब तक कि अगली गर्मियां नहीं आ जातीं। ज़िंदगी की सबसे अहम चीज़ों से हमारा रिश्ता प्यार और नफरत का ही होता है।
5. इंडियन रेलवे : वे गंदी हैं, बदबूदार हैं और उतनी ही गैर भरोसेमंद जितना कि भारत है। लेकिन हमारी रेलें आज भी वही हैं, जिन्हें बापू ने भारत को समझने का ज़रिया माना था। भारत को उसकी तमाम नीचताओं और महानताओं के साथ देखना हो, तो किसी भी ट्रेन पर सवार हो जाइए। रिज़र्वेशन के बिना हो तो बेहतर। ये नीली ट्रेनें हमें अपने मुकाम तक ही नहीं ले जातीं, इस फैसले तक भी ले जाती हैं कि हम इस देश को प्यार करें या इससे पीछा छुड़ा लें। तो यह है मेरी लिस्ट। और आपकी?
1. डिमॉक्रसी: जी हां, पिछले हफ्ते संसद में हमने जो देखा, उसके बावजूद मेरा मानना है कि डिमॉक्रसी ही वह बात है, जो हमें दसियों दूसरे देशों से खास बनाती है। कोई वजह नहीं थी कि हम आज़ादी के बाद डिमॉक्रसी पर कायम रहते। हमारे यहां पाकिस्तान या दूसरे देशों से कम काबिल लोग नहीं थे, जो डिक्टेटर बन सकते थे। खुद नेहरू ऐसा कर सकते थे। हम कोई विकसित देश नहीं थे, जहां हर किसी को एक वोट की ताकत दी जानी ज़रूरी थी। लेकिन हमने शासन के बेहतरीन मॉडल की नकल की और इसे कायम रखा। मुझे पता है कि डिमॉक्रसी का हमारा तजुर्बा बेहद गड़बड़ है, इसकी आड़ में तमाम तरह की बदकारियां होती हैं और आप चाहें तो इसे डिमॉक्रसी मानने से इनकार कर सकते हैं। लेकिन जैसी भी है, यह है और इसके चलते अराजक होने का जो हक हमें मिला है, वह कोई मामूली बात नहीं है। इसकी कद वही लोग समझ सकते हैं, जिन्हें डिक्टेटरशिप में दिन गुज़ारने पड़े हों। यह हवा की तरह है, जिसकी कीमत हम नहीं जानते।
2. वरायटी : यह अनेकता में एकता का कोई सरकारी नारा नहीं है। सच में जैसी वरायटी इस मुल्क में है, वैसी आपको शायद ही कहीं मिले। इसीलिए कुछ लोग इसे एक मुल्क नहीं, कई मुल्कों का जमावड़ा मानते हैं। इस वरायटी को आप खान-पान और रहन-सहन के उस कोलाज में देख सकते हैं, जिसने हमारी ज़िंदगी को इतना दिलचस्प और रंगीन बना दिया है।
3. हिमालय: बर्फ से लदे पहाड़ दूसरों के पास भी हैं और आल्प्स की खूबसूरती का तो जवाब नहीं, लेकिन कहीं भी पहाड़ इतना बड़ा नहीं होता, कि उसे ईश्वर की तरह देखा जाए। भारतीय आध्यात्मिकता हिमालय के बिना अधूरी होती। भारत का ज़्यादातर हिस्सा मैदानी या पठारी है, लेकिन हिमालय सबके दिल में बसता है। वह भारतीयता का रेफरंस पॉइंट है, जिसके बिना भारत शायद भारत नहीं होता। हिमालय हमें शांति देता है और इसीलिए हमारे देवी-देवता भी फुर्सत के वक्त वहीं पाए जाते हैं।
4. मॉनसून: यह समुद्र से उठने वाली भाप को बहा ले जाने का एक विंड सिस्टम है, जो कुछ दूसरे देशों में भी मिलता है। लेकिन मॉनसून का मतलब तो भारत में ही जाना जा सकता है। हमें इसका इंतज़ार रहता है, जैसे यह कोई सैंटा क्लॉज हो। हमारे पास उसका टाइम टेबल भी है। हमारी ज़िंदगी का बहुत सा वक्त उसके बारे में सोचते बीतता है और जब वह आता है, तो हम हरे हो जाते हैं। वह हमें परेशान भी करता है, हम उससे नफरत करने लगते हैं। लेकिन तभी तक, जब तक कि अगली गर्मियां नहीं आ जातीं। ज़िंदगी की सबसे अहम चीज़ों से हमारा रिश्ता प्यार और नफरत का ही होता है।
5. इंडियन रेलवे : वे गंदी हैं, बदबूदार हैं और उतनी ही गैर भरोसेमंद जितना कि भारत है। लेकिन हमारी रेलें आज भी वही हैं, जिन्हें बापू ने भारत को समझने का ज़रिया माना था। भारत को उसकी तमाम नीचताओं और महानताओं के साथ देखना हो, तो किसी भी ट्रेन पर सवार हो जाइए। रिज़र्वेशन के बिना हो तो बेहतर। ये नीली ट्रेनें हमें अपने मुकाम तक ही नहीं ले जातीं, इस फैसले तक भी ले जाती हैं कि हम इस देश को प्यार करें या इससे पीछा छुड़ा लें। तो यह है मेरी लिस्ट। और आपकी?
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