-सरायकेला छऊ ने झारखंड का मान बढ़ाया : शशधर आचार्य
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अशोक सिंह, जमशेदपुर : सरायकेला छऊ समेत भारत के तीन मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत को यूनेस्को द्वारा अतुल्य धरोहर की सूची में शामिल किया गया है। जिसमें राजस्थान के 'कालबेलियाÓ लोक गीत व केरल के मुदियतू को यूनाइटेड नेशन साइंनटिफिक एंड कल्चरल आर्गनाइजेशन (यूनेस्को) की विश्व विरासत की इस वर्ष की सूची में जगह मिली है। भारत सरकार ने सात प्राकृतिक स्मारकों, स्थलों व कलाओं को अक्टूबर 2009 में अतुल्य धरोहर (इनटांजिबल हेरिटेज) के लिए यूनेस्को भेजा था। जिसका यूनेस्को ने मंगलवार को विधिवत घोषणा करते हुए कहा कि भारत की तीन कलाएं छऊ नृत्य, कालबेलिया व मुदियतू अतुल्य धरोहर है।
मूल रूप से सरायकेला निवासी छऊ गुरू शशधर आचार्य ने दिल्ली से फोन पर बताया कि गुरुओं की वर्षों की कड़ी मेहनत व संघर्ष के बाद विश्व के अतुल धरोहरों में झारखंड के छऊ नृत्य को शामिल होना गौरव की बात है। उन्होंने बताया कि भारत संगीत नाट्य अकादमी के सचिव जैन कस्तुवार के नेतृत्व में भारत सरकार ने इन कलाओं को यूनेस्को भेजा था। नेश्नल स्कूल आफ ड्रामा में कार्यरत शशधर आचार्य ने छऊ पर दस मिनट का एक फिल्म बनाया था। जिसका आर्टिस्टिक डायरेक्टर संगुना भुटानी थी। उन्होंने बताया कि पूरे विश्व से इनटांजिबल हेरिटेज के 54 नोमिनेशन हुए थे। जिसमें भारत की तीन कलाओं को अतुल्य धरोहर माना गया। इसकी सूचना यूनेस्को की बेवसाईट पर जारी हो चुकी है। उन्होंने बताया कि भारत संगीत नाट्य अकादमी के सचिव व जमशेदपुर निवासी जैन कस्तुवार ने भी छऊ के लिए काफी मेहनत किया है।
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छऊ नृत्य : झारखंड, उड़ीसा व पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में इसका काफी प्रचलन है। इस नृत्य में नकली मास्क पहनकर मार्शल डांस किया जाता है। उड़ीसा के मयूरभंज के पूर्व रियासत ने छऊ की तीन कलाओं सरायकेला छऊ, मयूरभंज छऊ व पुरुलिया छऊ को विकसित किया था। जिसमें सरायकेला छऊ आज अतुल्य धरोहर बना।
कालबेलिया : यह कला मूल रूप से राजस्थान के सपेरों की समुदाय में काफी प्रचलित है। इस कला के गीतों व नृत्यों के माध्यम से नागों का आह्वन किया जाता है। मुदियतू : यह धार्मिक नृत्य केरल में गर्मियों की फसलों की कटाई के बाद किया जाता है। संभत: यह कला 250 साल पुरानी है।
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